रोशन साहू
नइ तो पायेन नइ तो खायेन, बढ़ोना के खई खजाना।
गोठकारिन भौजी मारे, हमर भइआ ला बड़ ताना।।
धान-पान सब लुवा-मिंजागे, नइ दिखिस एको भारा।
नांगर-कोटेला चोर-खटिया,नइ दिखिस सुकवा तारा।।
रास-दाब ना फरा-चीला, मोर चूड़ी-पाठ कब चघही।
सोंचे परेतिन बोइर बइठे,मोर मान-गउन कब करही।।
गांव बनई घलो भुलागिन, ठाकुर दइय्या बर न भारा।।
नरियर- फाटा अउ परसादी, नइ पाइन पड़ोसी पारा।।
नइ रचावय ब्यारा मा अब, नइ दिखय रे छेना खरही।
बेरा चघे देवरानी उठय, काय जेठानी झगरा करही।।
अंटिवायय न पेरा डोरी, मुँहू फूलोवय न सूपा-चरिहा।
घर मा बइठे देखत टी.वी, जेन काली रिहिन सपरिहा।।
दांत निपोरे अब न दतारी,अब नइ कल्हरय रे कलारी।
दंदरय न रे खरेरा-बाहरी, हे भाग मा उँकर बियारी।।
रेंगिस न दंउरी बरिस न भुर्री, मुड़ धरे बेलन गाड़ा।
घुन्ना खागे अब टेकनी-धुरी, सुन्ना बिन बने बियारा।।
गोठकारिन भौजी मारे, हमर भइआ ला बड़ ताना।।
धान-पान सब लुवा-मिंजागे, नइ दिखिस एको भारा।
नांगर-कोटेला चोर-खटिया,नइ दिखिस सुकवा तारा।।
रास-दाब ना फरा-चीला, मोर चूड़ी-पाठ कब चघही।
सोंचे परेतिन बोइर बइठे,मोर मान-गउन कब करही।।
गांव बनई घलो भुलागिन, ठाकुर दइय्या बर न भारा।।
नरियर- फाटा अउ परसादी, नइ पाइन पड़ोसी पारा।।
नइ रचावय ब्यारा मा अब, नइ दिखय रे छेना खरही।
बेरा चघे देवरानी उठय, काय जेठानी झगरा करही।।
अंटिवायय न पेरा डोरी, मुँहू फूलोवय न सूपा-चरिहा।
घर मा बइठे देखत टी.वी, जेन काली रिहिन सपरिहा।।
दांत निपोरे अब न दतारी,अब नइ कल्हरय रे कलारी।
दंदरय न रे खरेरा-बाहरी, हे भाग मा उँकर बियारी।।
रेंगिस न दंउरी बरिस न भुर्री, मुड़ धरे बेलन गाड़ा।
घुन्ना खागे अब टेकनी-धुरी, सुन्ना बिन बने बियारा।।
सचमुच आज की पीढ़ी खेती किसानी की पारंपरिक विधाओं से अनजान हैं....
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