इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 28 दिसंबर 2025

धारणा

प्रिया देवांगन "प्रियू"
 
आज बहुत देर हो गई विशाल, मुझे जल्दी जाना था। उनके घर कल बहुत सारे मेहमान आए थे; घर तो चिड़िया का घोसला बना होगा, काम तो पूछो ही ना.....!
जाते ही बुढ़िया की डाँट सुनो सो अलग;  ये मालकिन लोग कहाँ किसी की बातें समझते हैं?
रीना अपने पति विशाल से बातें करते–करते काम पर जाने की तैयारी कर रही थी।
रीना प्लीज़..... आज मत जाओ न। विशाल बोला।
"रीना..... क्या आज भी तुम झूठे बर्तन साफ करोगी?" 
हाँ..... रीना दो टूक बोल शांत हो गई और स्लीपर पहन घर से निकल गई।
पूरे रास्ते रीना को बस एक ही सवाल दीमक की तरह खाए जा रहा था; आज तो मेरी खैर नहीं। हे प्रभु! कृपया आज डाँट खाने से बचा लीजिएगा। बड़बड़ाती हुई रीना बुढ़िया के घर पहुँची।
          ट्रिन...... ट्रिन..... बेल बजते ही बुढ़िया दरवाजा खोली और ऊपर से नीचे रीना को घूरने लगी। रीना सर नीचे झुका कर बोली सॉरी आंटी आज.... थोड़ी.....!
 हम्म.... अंदर आओ। कुछ बोलने से पहले ही बुढ़िया ने रीना को शांत करा दिया।
रीना को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि आज बुढ़िया शांत क्यों है! अब सुनने को तैयार हो जा रीना....रीना खुद से बातें करने लगी। ये खडूस बुढ़िया से कोई नहीं बचा पाएगा। 
रीना खुसफुसाती हुई रसोई में गई और देखते ही भौंचक रह गई।
अरे.....ये क्या चमत्कार हो गया? 
आंटी जी! रसोई का सारा झूठा बर्तन कहाँ हैं और आज घर भी बहुत साफ– सुथरा लग रहा है; कल मेहमान नहीं आए थे क्या? 
आए थे चले गए। बुढ़िया बोली। 
चले गए मतलब....?
"तुम्हें क्या लगा रीना आज मैं तुमसे हमारे झूठे बर्तन साफ करवाऊँगी?  नहीं.....नहीं.......मुझे अच्छे से पता है कि आज तुम्हारा पहला करवा चौथ का व्रत है इसलिए मैं और मेरी देवरानी मिल कर सारा काम खत्म कर दिए ताकि तुम्हारे निर्जला व्रत में कोई कष्ट ना हो।"
लेकिन आंटी जी....रीना धीमे स्वर में बोली।
हाँ रीना, तुम भी तो अपने घर की लक्ष्मी हो न और आज तो अपने पति के लिए निर्जला व्रत भी रखा है तुमने। अगर तुम हमारे झूठे बर्तन साफ करोगी तो मुझे पाप लगेगा। 
रीना को ऐसा लगा जैसे कोई साॅंप सूॅंघ गया हो। हैरानी से बुढ़िया को एक टक निहारती रही।
बातें सुन रीना की आँखों में आँसू की दो बूँदें झलकने लगीं।
       तुम्हारे आते ही मैंने चेहरा पढ़ लिया था। ऐसे ही धूप में बाल सफेद नहीं किए है मैंने। रीना स्टैच्यू की तरह खड़ी रही।
तभी बुढ़िया बोली– "रीना, देखो ये मेरी साड़ी और ये मेकअप किट; तुम पर बहुत अच्छी लगेगी।
   पर आंटी जी इसकी क्या जरूरत.....!
नहीं री.....ये रखो मेरा आशीर्वाद समझ लो।  बुढ़िया की बात नहीं मानेगी?
बुढ़िया मुस्कुराती हुई बोली।
मुझे माफ कर दीजिए आंटी जी, मैंने आपके बारे में न जाने कैसी गलत धारणा बना ली थी। रीना मायूस हो कर बोली।
अच्छा आंटी जी, मैं चलती हूँ कल समय से आ जाऊँगी।
न....न....कल तुम आराम करना, परसों मिलते हैं। 
जी आंटी जी।
रीना सुनो....।
रीना झट से पीछे मुड़ी।
बेटा मैं तो तुम्हें देख नहीं पाऊँगी, ये साड़ी और मेकअप में; तो फिर....??
कोई बात नहीं आंटी जी मैं आपको व्हाट्स एप पर फोटो शेयर कर दूँगी।
फिर क्या था....... दोनों की हँसी घर में गूँजने लगी; और रीना भगवान को धन्यवाद करती हुई आगे बढ़ चली।
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

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