तुलेश्वर कुमार सेन
चारो कोती चलत हे, अभी बड़ भारी तइयारी।
पूछबे ता कहिथे आवत हे, नवा साल संगवारी।।
कपड़ा,फटाका,कुकरी,बोकरा,दारू बिसावत हे।
पइसा खरचा करत हे फोकट मा सब झन भारी।।
इकतीस दिसम्बर के बारह बजे ले करही बवाल।
दिन अउ रात बजाही डीजे संग अलकरहा धमाल।।
छोकरी छोकरा अउ डोकरी डोकरा के नवा साल।
नइ जानत हे कुछु तहू मन जनवाही अपन चाल।।
फोड़ ही फटाका गा ही बड़ फूहड़पन वाले गाना।
अवइया जवइया सबला कही तहूं तीर मा आना।।
दारू,गाँजा पीके हो ही ख़ुबेच एक दुसर ले झगड़ा।
नइ होय जी मान मनाउवा दुनो पार्टी जाहि थाना।।
अपन सुवारथ बर कतरोकन बेजान ला मार ख़ाही।
करके नशा कइ झन दुर्घटना के शिकार हो जाही।।
दाई बाबू गुरु के आशीष ले कोनो मन बाँच जाहि।
इखर लपरवाही के चक्कर मा कतको झन जाहि।।
अंग्रेजी कलेंडर वाले मन हा तो बवाल मचावत हे।
नवा कुछु नइ होवत हे ये हिन्दू पंचांग बतावत हे।।
अपन भाषा,संस्कृति,संस्कार ला सब जानव गा।
दूसरे मन हा तो केवल हमन ला बुद्धू बनावत हे।।
सलोनी राजनांदगांव
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