विजेन्द्र कुमार वर्मा
खीस-खीस दाँत निकाल के हाँसे ले काम नइ चलय।
खुशी मा दर्द छिपे हे उहू ला दिखाय ले पड़ही।
कब तक पर भरोसा म तीन परोसा खात रइही।
रीत रिवाज अउ दुनियादारी तको बताय ले पड़ही।
अपन मरे बिना इहाँ सरग नइ दिखे संगवारी हो।
नकाब ओढ़े हे तेकर मुख ले पर्दा हटाय ले पड़ही।
प्यार हमदर्दी जज्बात इंसानियत सब बजारू होगे।
काय करबे जान के तको भरोसा जताय ले पड़ही।
जमाना अइसे हे सच बोले म जिनगी नइ चलय विजय।
जेती हवा चलत ओकरे दिशा मा आज जाय ले पड़ही।
नगरगाँव (धरसीवांँ)
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