तुलेश्वर कुमार सेन
आन बान शान कहिके फिजूल खर्ची करत हे।
नोनी बाबू दुनो अपन _अपन अकड़ मा मरत हे।।
आखिर कब तक चल ही मोर संगवारी हो....?
ये बाढ़े उमर अउ समझौता के बिहाव ले डरत हे।।
नोनी मन हा घर काम करत बढ़ पढ़ लिख डरे हे।
बाबू मन हा पढ़ाई लिखाई ला छोड़ काम धरे हे।।
जब आथे हाथ माँगे के पारी शरम लगथे काबर।
नोनी वाले मन हा बाबू मन ला रिजेक्ट करे हे।।
फैशन अउ नशा आज हर घर परिवार मा चलत हे।
नोनी मन ला कोन कहे बाबू मन घलो जलत हे।।
दिखे दिखाए के चक्कर मा ये दुनियां वाले मन।
चकाचौंध मा फंस के एक दुसर ला भारी छलत हे।।
घर परिवार, समाज अउ रिश्तेदार मन काय कही।
पता चलही ता हमर मन के काय इज्जत रही जही।।
बने _बने कहत अउ देखत समय हा पूरा निकलगे।
साबित करत निकलगे कोन गलत हे कोन सही।।
काय करबे बने पति, सास, बहू,दमाद नइ मिलिस।
जइसन खिलना रीहिस बगिया मा फूल नइ खिलिस।।
पति पत्नी दुनो करत हे नउकरी कमावत हे पइसा।
करत गिला शिकवा एक दुसर ले जिनगी जिलीस।।
समय के राहत ले करो सब झन बने काम धाम।
उमर हे अठारह ले बीस येला झन करो बदनाम।।
उन्नीस बीस हो बे कर थे कोनो नइ होय संपूर्ण।
पहिली ले कर लो समझौता बाद मा होथे नाम।।
सलोनी राजनांदगांव
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