इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 14 दिसंबर 2025

कब तक चल ही ...?

          तुलेश्वर कुमार सेन 

आन बान शान कहिके फिजूल खर्ची करत हे।
नोनी बाबू दुनो अपन _अपन अकड़ मा मरत हे।।
आखिर कब तक चल ही मोर संगवारी हो....?
ये बाढ़े उमर अउ समझौता के बिहाव ले डरत हे।।

नोनी मन हा घर काम करत बढ़ पढ़ लिख डरे हे।
बाबू मन हा पढ़ाई लिखाई ला छोड़ काम धरे हे।।
जब आथे हाथ माँगे के पारी शरम लगथे काबर।
नोनी वाले मन हा बाबू मन ला रिजेक्ट करे हे।।

फैशन अउ नशा आज हर घर परिवार मा चलत हे।
नोनी मन ला कोन कहे बाबू मन घलो जलत हे।।
दिखे दिखाए के चक्कर मा ये दुनियां वाले मन।
चकाचौंध मा फंस के एक दुसर ला भारी छलत हे।।

घर परिवार, समाज अउ रिश्तेदार मन काय कही।
पता चलही ता हमर मन के काय इज्जत रही जही।।
बने _बने कहत अउ देखत समय हा पूरा निकलगे।
साबित करत निकलगे कोन गलत हे कोन सही।।

काय करबे बने पति, सास, बहू,दमाद नइ मिलिस।
जइसन खिलना रीहिस बगिया मा फूल नइ खिलिस।।
पति पत्नी दुनो करत हे नउकरी कमावत हे पइसा।
करत गिला शिकवा एक दुसर ले जिनगी जिलीस।। 

समय के राहत ले करो सब झन बने काम धाम।
उमर हे अठारह ले बीस येला झन करो बदनाम।।
उन्नीस बीस हो बे कर थे कोनो नइ होय संपूर्ण।
पहिली ले कर लो समझौता बाद मा होथे नाम।।

                         सलोनी राजनांदगांव

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