डॉ पद्मा साहू पर्वणी
साँझ के समय रहिस। नीता प्रसव के पीरा ले कहरावत रहिस। तीन दिन पहिली ले रुक-रुक के पीरा उठत रहिस फेर आज वोकर प्रसव पीरा हा बाढ़गे रहिस। नीता के हालत ला देख के श्याम गाँव के दाई ला बुला के लईस। सुनीता के हाथ-नाड़ी, पेट-मुड़ी ला देख के श्याम ला कहिस –
“बेटा ये घर में नइ निभ सके। येला लघियाँत अस्पताल ले जाय बर पड़ही।”
दाई के बात ला सुनके श्याम तुरते 102 नंबर के गाड़ी ला फोन लगाइस। थोरिक समे बाद गाड़ी अइस। श्याम अउ दाई नीता ला गाड़ी मा बइठइन। गाड़ी झट ले तीर के शहर के अस्पताल मा पहुँचगे। डॉक्टर नीता के जाँच करिस अउ श्याम ला कहिस –
“इसकी स्थिति नाजुक है। बच्चा और माँ दोनों को खतरा है सर्जरी करना पड़ेगा।”
श्याम कहिस – “देरी झन करौ मैडम। आप तुरते सर्जरी के तियारी करौ। आप ला महतारी अउ लइका दोनों ला बचाना हे।”
श्याम ला एकठन फार्म मा दसखत कराके नर्स मन नीता ला स्ट्रेचर मा सोवा के ऑपरेशन थिएटर मा लेगिन। डॉक्टर ऑपरेशन शुरू करिस। नीता के सर्जरी होवत ले श्याम ऑपरेशन थिएटर के बहिरी मा बइठे-बइठे भगवान ले बिनती करत रहिस कि – “ हे भगवान मोर बाई अउ लइका ला बने-बने रखबे।”
“बेटा ये घर में नइ निभ सके। येला लघियाँत अस्पताल ले जाय बर पड़ही।”
दाई के बात ला सुनके श्याम तुरते 102 नंबर के गाड़ी ला फोन लगाइस। थोरिक समे बाद गाड़ी अइस। श्याम अउ दाई नीता ला गाड़ी मा बइठइन। गाड़ी झट ले तीर के शहर के अस्पताल मा पहुँचगे। डॉक्टर नीता के जाँच करिस अउ श्याम ला कहिस –
“इसकी स्थिति नाजुक है। बच्चा और माँ दोनों को खतरा है सर्जरी करना पड़ेगा।”
श्याम कहिस – “देरी झन करौ मैडम। आप तुरते सर्जरी के तियारी करौ। आप ला महतारी अउ लइका दोनों ला बचाना हे।”
श्याम ला एकठन फार्म मा दसखत कराके नर्स मन नीता ला स्ट्रेचर मा सोवा के ऑपरेशन थिएटर मा लेगिन। डॉक्टर ऑपरेशन शुरू करिस। नीता के सर्जरी होवत ले श्याम ऑपरेशन थिएटर के बहिरी मा बइठे-बइठे भगवान ले बिनती करत रहिस कि – “ हे भगवान मोर बाई अउ लइका ला बने-बने रखबे।”
फेर वोकर मन मा एकठन बात घुमरत रहिस, वो घेरी-भेरी काहत रहिस– “हे भगवान ये बखत मोला बेटा दे देबे। में तोर नाम ले पूरा गाँव मा भंडारा कराहूँ।”
श्याम के मन मा एक बेटा के आशा रहिस। येकर बर वो कतको मन्नत, पूजा-पाठ के संकल्प करे रहिस।
श्याम ला चिंता मा देखके दाई कहिस– “सब बने होही बेटा। भगवान ऊपर बिश्वास रख।”
घंटा भर बीते के बाद डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर ले निकलिस। श्याम लपक के वोकर तीर मा गिस अउ कहिस– “डॉक्टर साहब, सब बने हे न।”
डॉक्टर कहिस – “सब ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं है।”
श्याम के मन मा एक बेटा के आशा रहिस। येकर बर वो कतको मन्नत, पूजा-पाठ के संकल्प करे रहिस।
श्याम ला चिंता मा देखके दाई कहिस– “सब बने होही बेटा। भगवान ऊपर बिश्वास रख।”
घंटा भर बीते के बाद डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर ले निकलिस। श्याम लपक के वोकर तीर मा गिस अउ कहिस– “डॉक्टर साहब, सब बने हे न।”
डॉक्टर कहिस – “सब ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं है।”
श्याम – “अउ मोर लइका…..
डॉक्टर कहिस– “बधाई हो तुम्हारी बेटी हुई है।”ये सुनके श्याम के चेहरा मा उदासी छागे।
श्याम ला उदास देखके डॉक्टर कहिस– “ क्यों, बेटी होने पर खुशी नहीं हुई?”
श्याम – “नइ डॉक्टर साहब, अइसन बात नइ हे।”
थोड़ी देर में जनरल वार्ड में शिफ्ट होगी। आप अपने बीवी और बच्चे को देख लेना। कहिके डॉक्टर साहब चल दिस।
दाई कहिस – “सब भगवान के मर्जी हे बेटा।”
श्याम– “हाँ दाई, सब भगवान के मर्जी हे। मोर तीन झन देवी जइसे बेटी भार्गवी, रमा, अन्नपूर्णा हें। मोर मन मा ये बखत आशा रहिस के जीवन के आखिरी बेरा मा काँधा दे बर भगवान एक झन बेटा दे देतीस। फेर ईश्वर के इच्छा मोला मंजूर हे। ये चौथा बेटी घलो मोर बर देवी समान हे।
“बेटा भाग्य ले मिलथे अउ बेटी सौभाग्य ले। अपन सौभाग्य ला संहरा बेटा श्याम।”
श्याम – “हाँ दाई तें सिरतोंन काहत हस।”
येती नर्स मन स्ट्रेचर मा सुनीता ला धर के जनरल वार्ड मा शिफ्ट करिन। श्याम अउ दाई नीता के तीर मा गिन। जच्चा-बच्चा ला स्वस्थ्य देख के दूनों के मन मा उछाह भरगे। सुनीता बेसुध रहिस। रात गजब होगे रहिस। दाई, लइका अउ सुनीता के तीर मा सोगे। श्याम अपन सोय के दूसर जघा बेवस्था करिस।
दूसर दिन बहनिया 8 बजे श्याम, दाई अउ सुनीता बर चाय बिस्कुट धर के अइस। दाई चाय पी के लइका के मालिश करे धर लिस। नीता, श्याम ला देखके अपन मुँह ला फेर लिस।
श्याम, नीता के तीर मा बइठ के कहिस – “नीता तैं मोर ले काबर मुँह फेरत हस?”
नीता– “आप जो चाहत रेहेव में वो नइ दे सकेंव। मोला छमा कर दौ।”
“धत् पगली, कइसे बोलत हस?”
“मैं जानत हँव जी, आप ये दरी अपन मन मा एक बेटा के आशा रखे रेहेव। अउ में वोला पूरा नइ कर सकेंव।” नीता कहिस श्याम ले।
श्याम – “भार्गवी के माँ, तें मोला 12 बछर मा अतके समझे। अरे पगली! मैं अपन बेटी मन ला बेटा बरोबर समझथों। बेटा-बेटी मा कोनो भेद नइ करौं। फेर महूँ तो इंसान हरौं न, मन मा बेटा के आशा जाग गे रहिस।”
नीता – “ हमन एक दूसर ला समझथन तभे तो हमर मनके जिनगी खुशी ले बीतत हे जी।”
श्याम डॉक्टर साहब ला आवत देखके नीता ला इशारा ले चुप करावत कहिस– “नीता, वोती देख डॉक्टर साहब आवत हे राउंड मा।”
नर्स – “श्याम जी, चलो आप बहिरी निकल जाव। डॉक्टर साहब राउंड मा आवत हे।”
डॉक्टर साहब सबके चेकअप करके नीता कर जाके पूछथे – “नीता रात को नींद आई न।” ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा है। बच्ची रात में परेशान तो नहीं करी।”
नीता – “सब ठीक हे डॉक्टर साहब फेर बच्चा……
दाई लइका ला डॉक्टर ला देखाथे अउ कहिथे – “ये रात भर कुरुर-कुरुर करे हे डॉक्टर साहब। हमन ला रात भर सोवन नइ दे हे। अभी येकर मालिश करे हों। ये दे टुकुर-टुकुर देखत हे।”
डॉक्टर साहब (नन्ही बच्ची के गाल को छूते हुए)
– “ठंड बहुत है न इसलिए रात को कुरुर-कुरुर कर रही थी। अब दिन में सोएगी। क्यों रे लक्ष्मी?”
लक्ष्मी नाम सुन के नीता डॉक्टर कोती अचरज ले देखथे देखिस अउ मुस्कइस।
“क्यों नीता, सही नाम रखी हूँ न लक्ष्मी?” काहत डॉक्टर साहब चल दिस।
जउन नाम ला में सोचत रहेंव उही नाम ला डॉक्टर साहब कहिस कतका संयोग के बात आय। नीता मने मन सोचे लगिस।
दाई येकर दवई पानी ला बेरा-बेरा मा देबे। अब डॉक्टर रात को आही राउंड मा। अउ हाँ तुँहर दू दिन मा छुट्टी हो जही। नर्स कहिस अउ चल दिस।
श्याम, डॉक्टर अउ नर्स के बात ला सुनत रहिस। अइस अउ नीता ला कहिस – “बस दू रात अउ पहाना हे इहाँ वोकर बाद अपन घर चल देबो।”
गुरुवार के अस्पताल ले छुट्टी होय के बाद बिहनिया दस बजे श्याम मन अपन घर जाय बर गाड़ी मा निकलिन। फेर वोकर मन मा ये विचार घुमड़त रहिस कि–
“मोर महतारी के मन मा का भाव होही। में फोन मा तो सब बात ला बता डरे हों फेर वोकरो मन मा ये दरी एक झन बेटा के आशा रहिस।”
नीता श्याम कोती ला देखके वोकर मन के भाव ला समझ जथे। गाँव जादा दूरिहा नइ रहिस। थोरिक देर मा गाड़ी झट ले घर मा पहुँचगे।
गाड़ी ले उतरके दाई लइका ला धर के घर के डेहरी पार करइया रहिस वोतकेच बेर नीता के सास दसोदा दाई ला आवत देख के चिल्लईस – “उही कर रुक, आघू झन आ।” दाई अतका ला सुन के जिही कर रहिस उही च कर डर के मारे रूकगे। नीता अउ श्याम के पाँव घलो थमगे। दसोदा अपन बड़े पोती भार्गवी ला कहिस– “बेटी भार्गवी आरती के थारी ल ला।”
भार्गवी आरती के थारी ल लइस। संग मा भार्गवी के मनझली बहिनी रमा अउ छोटे अन्नपूर्णा अइन।
दसोदा दाई ला कहिस – “आना दाई, काबर रुक गेस? मोर पोती ल ला वोकर आरती करहूँ। मोर घर के लक्ष्मी हरे वो हर। श्याम अउ नीता तहूँ मन आव। तुमन काबर रुक गे हो गा ?”
लइका संग श्याम अउ नीता के दसोदा आरती उतारिस, तिलक चंदन लगइस। सब झन भीतरी मा गिन। अपन छोटे बहिनी ला देख के भार्गवी, अन्नपूर्णा अउ रमा वोकर संग खेले मा मगन होगे। दाई चाय नाश्ता करके काली बिहनिया आहूँ दसोदा अब तोर पोती ला सम्हाल अउ सेंक चुपर में जावत हों कहिस।
दसोदा, श्याम अउ नीता के उदास सकल ला देख के श्याम ला कहिस– “बेटा में एक औरत हरों अउ अपन बहू ला समझथों। महूँ पढ़े लिखे हों। का होइस नौकरी मा नइ हों? बेटी होइस ता येमा नीता के का दोस हे? अउ बेटा, अब जमाना बदलगे हे। बेटा-बेटी मा अब अंतर नइ हे। देख अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, मदर टेरेसा, प्रतिभा पाटिल, भारतीय वायु सेवा के विंग कमांडर व्योमिक सिंह जइसन कतकोन हें, यहू मन तो बेटी हरे। इनकर आज दुनिया मा नाम हे। अउ एक बात हे, जेकर बेटा हे ना वहू मन आज कतको झन मन रोवत हें घिरलत हें।”
श्याम – “हाँ दाई, हमरो बेटी भार्गवी, रमा अउ अन्नपूर्णा ला इनकर मन जइसे बनाबो। हमरो बेटी मन तो बहुत गुनवती मिहनती हें। हमन वोमन ला अब्बड़ मया करथन। वोमन हमर मन बर बेटा ले कोनों कम नइ हें।”
नीता श्याम कोती ला देखके वोकर मन के भाव ला समझ जथे। गाँव जादा दूरिहा नइ रहिस। थोरिक देर मा गाड़ी झट ले घर मा पहुँचगे।
गाड़ी ले उतरके दाई लइका ला धर के घर के डेहरी पार करइया रहिस वोतकेच बेर नीता के सास दसोदा दाई ला आवत देख के चिल्लईस – “उही कर रुक, आघू झन आ।” दाई अतका ला सुन के जिही कर रहिस उही च कर डर के मारे रूकगे। नीता अउ श्याम के पाँव घलो थमगे। दसोदा अपन बड़े पोती भार्गवी ला कहिस– “बेटी भार्गवी आरती के थारी ल ला।”
भार्गवी आरती के थारी ल लइस। संग मा भार्गवी के मनझली बहिनी रमा अउ छोटे अन्नपूर्णा अइन।
दसोदा दाई ला कहिस – “आना दाई, काबर रुक गेस? मोर पोती ल ला वोकर आरती करहूँ। मोर घर के लक्ष्मी हरे वो हर। श्याम अउ नीता तहूँ मन आव। तुमन काबर रुक गे हो गा ?”
लइका संग श्याम अउ नीता के दसोदा आरती उतारिस, तिलक चंदन लगइस। सब झन भीतरी मा गिन। अपन छोटे बहिनी ला देख के भार्गवी, अन्नपूर्णा अउ रमा वोकर संग खेले मा मगन होगे। दाई चाय नाश्ता करके काली बिहनिया आहूँ दसोदा अब तोर पोती ला सम्हाल अउ सेंक चुपर में जावत हों कहिस।
दसोदा, श्याम अउ नीता के उदास सकल ला देख के श्याम ला कहिस– “बेटा में एक औरत हरों अउ अपन बहू ला समझथों। महूँ पढ़े लिखे हों। का होइस नौकरी मा नइ हों? बेटी होइस ता येमा नीता के का दोस हे? अउ बेटा, अब जमाना बदलगे हे। बेटा-बेटी मा अब अंतर नइ हे। देख अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, मदर टेरेसा, प्रतिभा पाटिल, भारतीय वायु सेवा के विंग कमांडर व्योमिक सिंह जइसन कतकोन हें, यहू मन तो बेटी हरे। इनकर आज दुनिया मा नाम हे। अउ एक बात हे, जेकर बेटा हे ना वहू मन आज कतको झन मन रोवत हें घिरलत हें।”
श्याम – “हाँ दाई, हमरो बेटी भार्गवी, रमा अउ अन्नपूर्णा ला इनकर मन जइसे बनाबो। हमरो बेटी मन तो बहुत गुनवती मिहनती हें। हमन वोमन ला अब्बड़ मया करथन। वोमन हमर मन बर बेटा ले कोनों कम नइ हें।”
यसोदा– “हाँ बेटा, आज नोनी मन समाज सेवा, अंतरिक्ष विज्ञान, शिक्षा, राजनीति, स्वास्थ्य, सुरक्षा जम्मों क्षेत्र मा मिशाल खड़ा करके अपन नाम कमावत हें। बेटा मन के बरोबरी करत हें अउ उनकर ले जादा घलो नाम कमावत हें। ये सब ला चिंतन करके में ये दरी मोर पोता आय रहितिस ये भाव ला अपन मन ले निकाल डरे हों श्याम। अब दुनिया के नजरिया बदलत हे बेटा।”
इही बीच गाँव के पटइल बहोरन अइस जेन इनकर बात ला सुन डरे रहिस वो कहिस– “श्याम, दुनिया कतको कहे रे फेर हमर समाज मा अभी घलो नोनी बाबू मा अंतर हे। ये अंतर कभू नइ मिट सके। जीवन के आखरी बेरा मा काँधा बेटाच हा देथे, बेटी हा नइ देवय। येला सुरता रखबे।”
श्याम– “ का कका? बदलत समय के ये बेरा मा लोगन बेटी मन के प्रति नजरिया बदलत हे। अब तहूँ अपन बिचार ला बदल। अब बेटी मन घलो अपन दाई-ददा ला जीवन के आखरी यात्रा मा काँधा देवत हे। श्मशान मा आगी देवत हे। देखे हस ना हमर गाँव मा गोवर्धन भैया के पाँच बेटी हे। गोवर्धन घर के भउजी खतम होईस ता वोकर बेटी मन पूरा क्रियाकरम ला करिन हें। गुरुप्रसाद के सात झन बेटी हें। वोकर बेटी मन पूरा वोकर खेतीबाड़ी देख-रेख, ईलाज-पानी सबो करत हें। अब बेटी मन बेटा के बीड़ा उठाय बर सीखगे हें। अब समे अलग हे कका।”
बहोरन पटइल – “तभो ले रे बेटा मन नाम अउ बंश चलाथें।”
दसोदा – “देखत तो हावन तुँहर बेटा मन कतका तुँहर नाम अउ बंश चलावत हें। तीन झन तो तीन हाल हें। वोमन ला पहिली बेटी महतारी के सनमान करे बर सिखाव तुमन।”बहोरन पटइल भड़क के – “का कहेस…?”
श्याम – “का कका? तें अभी जा बाद में आबे। हमूँ मन नहाबो खाबो अस्पताल ले आय हन”
बहोरन पटइल– “जावत हों रे।”
बहोरन पटइल के जाय के बाद दसोदा मँझनिया के जेवन पानी तियार करिस। नीता के सेवा जतन करिस।
सोलह बछर के भार्गवी सबला खाना परोसिस।
श्याम खावत-खावत अपन महतारी ला कहिस – “दाई नीता ला सम्हले मा महीना भर लगही। नामकरन ला बाद मा कराबो।”
दसोदा – “बन जही बेटा। तब तक हमन जोरा कर लेबो कार्यक्रम के।”
दसोदा नीता ला कहिस – “मैं अपन पोती मन ले बड़ खुश हों नीता। अब तो ये छोटे मोर सबले जादा मयारू बनही।”(अपन छोटे पोती ला देख के कहिस)
नीता– “हाँ माँ, तैं मोला समझथस अउ मैं तोला। तभे तो हमन ला सब सास-बहू नहीं महतारी-बेटी कहिथें।”
महीना भर बीते के बाद नीता अउ लइका फ़ुन्नागे। अब नामकरन कार्यक्रम बर श्याम सब सगा सहोदर मन ला निमंत्रन दिस। सब सगा मन आइन। नामकरन कार्यक्रम मा पूजापाठ होइस। एक दूसर ले सब मेल मिलाप करिन। चार लोगन के चार गोठ होइस।
श्याम के फूफा कहिस – “भगवान एक झन बेटा दे देतीस तोला ता का होतिस?”
श्याम के ममाससुर कहिस – “ बेटी मन ससुरार जाही तहान तुँहर डेहरी मा दीया बरइया कोनों नइ रही गा श्याम।”
श्याम कहिस – “फूफा सब भगवान के किरपा हरे। अउ ममा हमर बेटी मन हमर सौभाग्य हे गा। हमर डेहरी मा दीया इही मन बारही।”
“एक झन अउ नइ देख ले रहितिस नीता हा।” दसोदा के काकी सास दसोदा ले कहिस। दसोदा चुप रहिस।
अउ सब सगा मन ला कहिस– “चलो सब भोजन-पानी करौ। रामायन मंडली आगे हे। सब ला रामायन सुनना हे।”
अब चरबज्जी रामायन के तियारी होइस। रामायन शुरु होवैया रहिस वोतकीच बेर श्याम माइक ला धर के कहिस– “सुनव! सुनव! येती सुनव।”
श्याम के आवाज ला सुनके सब सगा सहोदर मन तीर मा आगे। श्याम के माँ, वोकर बाई अउ लइका मन घलो अइन।
श्याम के आवाज ला सुनके सब सगा सहोदर मन तीर मा आगे। श्याम के माँ, वोकर बाई अउ लइका मन घलो अइन।
सब ला देखके श्याम– अब में एक ठन बात काहत हों तेला धियान धर के सुनव कहिस – “बेटा के आशा सबके मन मा रहिथे फेर बेटा भाग्य ले मिलथे अउ बेटी सौभाग्य ले। में अउ नीता बड़ सौभाग्यशाली हन कि हमन ला दुर्गा देवी जइसे बेटी भार्गवी जेन मिहनती गुणवती हे, अन्न के देवी जइसे सरल सहज बेटी अन्नपूर्णा, हमर सौभाग्य बढ़इया बेटी रमा अउ सुख-समृद्धि, धन के बरसा करइया बेटी लक्ष्मी मिले हे। इही मन हमर गुरुर, मान-सनमान आय। आज बेटा मन ले जादा मिहनती बेटी मन होवत हें। हर क्षेत्र मा अपन माँ-बाप के नाम रोशन करत हें। हमन ला अपन बेटी मन ऊपर गरब हे। हमर बेटा नइ हे ता कोनो बात नइ हे। हमर ये बेटी मन बेटा के बरोबर हें। बेटी कुल तारक हे।”
श्याम के बात ला सुनके नीता के आँखी ले झरझर-झरझर आंँसू बहे लगिस। छोटे बेटी ला धरे-धरे दसोदा रोय लगिस। भार्गवी, रमा, अन्नपूर्णा अपन पापा ला जाके पोटार लीन। चारो मुड़ा ले ताली बजे लगिस। सब ला देखके श्याम के आँखी भरगे।
श्याम के सास-ससुर कहिन – “धन्य हे मोर बेटी दमांद जेन ला सीता, मांडवी, उर्मिला, श्रुतकीर्ति जइसन बेटी मिलेहे। इनकरे ले मोर बेटी दमांद राजा जनक अउ सुनैना कस समाज मा नाम कमाही।”
रामायन मंडली वाले मन कहिन – “आज हमर समाज मा अइसने अच्छा सोच के होना जरूरी हे जेन बेटी मन ला मान दे। श्याम जी तुंँहर अँगना मा तुंँहर बेटी मन कोईली कस कुहकत रहे, भगवान ले इही बिनती हे।”
बहोरन कहिस– “ तै बड़ा किस्मत वाले हस श्याम। आज मोर वो भरम टूटगे कि बेटा मन बेटी ले जादा……”
श्याम– “सोंच बदलना जरूरी हे कका।”
श्याम– “सोंच बदलना जरूरी हे कका।”
अब रामायन शुरु होइस। सब रामायन ला आखरी तक सुनिन। सब मिलके सोहर गइन। अब टीकाकार मंडली श्याम अउ नीता के छोटे बेटी के नाम धरइन “कमला”।
डॉक्टर तो वोकर पहिली ले नाम लक्ष्मी कही दे रहिस। वोला घर के मन लक्ष्मी कहें।
धीरे-धीरे पढ़े-लिखे श्याम अउ नीता कस वोकर बेटी मन पढ़-लिखके अपन परिवार के नाम ला रोशन करिन। सबों झन संस्कारी, रूपवती, गुनवती रहिन। बड़े बेटी भार्गवी शिक्षिका, मंझली बेटी रमा अकाउंटेंट, अन्नपूर्णा वेटनरी डॉक्टर बनगे। छोटे बेटी कमला कलेक्टर बने बर पढ़ई के तियारी मा लग गे। परिवार सुख समृद्धि के संग आगू बढ़त गिस। श्याम अउ नीता के परिवार पढ़े-लिखे, संपन्न रहिस। श्याम अउ नीता गाँव बर उदाहरन बनगे। वोमन सब ला कहे– “हमर बेटी मन हमर बेटा आय।”
खैरागढ़
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