कुलदीप सिन्हा "दीप"
नारी हे तब नर हे जग मा,
नर हे तब तो नारी जी।
दोनों हावे गा एक बरोबर
करो न कखरो चारी जी।।ध्रुव पद।।
जग गाये हे नारी के महिमा,
नर के गा कब गाही जी।
इहाँ एक दूसर के बिना दोनों,
पहिचान कहाँ ले पाही जी।
का होही गा दुनिया मा जब,
सब रहि जाही ब्रम्हचारी जी।।1।।
जम्मो नारायण होये हे पैदा,
नारी के गा तन ले जी।
फेर बिन नर के कइसे होही,
वो पैदा नारी मन ले जी।
तब काबर कहिथे दुनिया हा,
नारी ले देवता हारी जी।।2।।
सती सावित्री अनुसुइया जइसे,
अउ होये हे कतको नारी जी।
फेर इंखरे मन ले मिले हवे गा,
नारी मन ला चिन्हारी जी।
उही समय ले होये हे जग मा,
नारी के महिमा उजयारी जी।।3।।
नर नारी दोनों मिल के संगी,
सृजन सृष्टि के गा करे हे।
तब ले ज्यादा नारी के किस्सा,
सद्ग्रंथ मन मा जी भरे हे।
एखरे सेती सोंचत हे नर मन "दीप"
इहाँ कब आही हमरो बारी जी।।4।।
कुकरेल ( सलोनी )
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