इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

घोर बरसा के मारे

टिकेश्वर ध्रुव


अब तो थिराले ग बरसा अउ कतेक बरसाबे 
नदियां, नरवा घलो थकगे तैं कब सिराबे।


रही-रही के चिखला होथे, सबो के जी कऊहागे 
घर म पानी, बाहिर पानी, छत म सिहर आगे।


तोर मारे कुछु काम नई होवै, मन म कोढ़ीयई हमागे
जाये के रहिस एति-वोती, फेर बइठ के दिन पहागे।


खेत-खार म टनटन ले पानी, मेड़ पार ह बोहागे
दीदी ह फँसगे तीजा म आजे, याहा दे पूरा आगे।


अतेक पानी म कोंन बाँचे, तरिया-नदियाँ सरबटागे
मछरी काहत हे कती तऊँरों, लागथे रस्ता भुलागे।


दिन निकलगे, रात पहागे, तीसर बिहनियाँ आगे
पानीच-पानीच चारो मुड़ा, लागथे बादर बइहागे।


छानी-परवा ह चूहे ल धरलिस, पानी घर म हमागे
घर ल छोड़ के कहॉं जावन, गुन के उदासी छागे।


लईका काहत हे पढ़ेल नई जांव, पानी म वहु छनागे
देख के बरसा के रुप ल आजे, मन म डर समागे।


अब तो थिराले ग बरसा अउ कतेक बरसाबे
नदियां, नरवा घलो थकगे, फेर तैं कब सिराबे।


अमलीभांठा, हसदा न.1
मगरलोड, धमतरी (छ.ग)

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