राहु-केतु घर मोरे आगिन, मैंहर जावौं काकर डेरा।
सात जनम बर ले ली दूनों, ए भुइयाँ मा हामन फेरा।।
लहुँट-लहुँट के घर ला आहा, जनमभूमि मा ममता बसथे।
शपथ महूँ ला अपनो भुइयाँ, मनखे अपनो समता रखथे।।
रिहा एकला कोन्हों नीहीं, रिहा जइसने सबझन केरा।
सात जनम बर ले ली दूनों, ए भुइयाँ मा हामन फेरा।।
घाम जनावे अबड़ सँवरिया, आरो पाके तैंहर आबे।
तन-मन मिलके जीव जुराबे, मोरे ऊपर छइयाँ छाबे।।
काम मार के भोला चलदिन, रति रोवाई दिल ला पेरा।
सात जनम बर ले ली दूनों, ए भुइयाँ मा हामन फेरा।।
भोग जगत् मा जादा करिही, जनम कुकुर के लेना परिही।
करम जइसने तैंहर करबे, फलो वइसने मिलबे करिही।।
का लेके तैं आए जग मा, काल सबो ला हावय घेरा।
सात जनम बर ले ली दूनों, ए भुइयाँ मा हामन फेरा।।
-सीताराम पटेल 'सीतेश'
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