इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 30 दिसंबर 2024

वसीभूत

मुरारी लाल साव 

 

 एक दिन अपन घर के आघू म बैठे रहेंव l एक करिया कुकुर तीर म आथे अउ टुकुर टुकुर देखथे l ओखर आँखी म लालच के पुतरी एक टक देखत रहिस l अपन हाथ ला बार -बार खीसा म डारंव अउ निकालत रहेंव l
कुकुर अउ निटोर के देखय एकर सेती कुछु न कुछु दिही l
ओकर लालच अउ बढ़गे l ए दफे मय मुठा भर ला निकाले के आघू म रखेव l कुकुर अउ तीर म ऊं ऊं ऊं करत आगे l मुट्ठा ला खोल देंव कुछु नइ गिरिस l कुकुर के जी चुरमुरागे l एक बार फ़ेर हाथ ला खीसा म डारेव अउ निकालेंव मुठा ला नइ खोलेंव अउ दूसर डहर ला देखे के नाटक करेंव l करिया कुकुर धीरे धीरे सूंघियावत आगे l मुठा ला खोलत ओकर मुड़ी ला खजुवाये ला धर लेंव l कुकुर अपन मुड़ी ला पूरा दता दीस l खजुवाना ओला बने लागिस l तब लालच नइ रहिस ओकर आँखी म बल्कि दूनो आँखी ला मुँद लीस बेफिक्री होगे l शायद जान डरिस देवय नहीं त मारे भगावे तको नहीं l
कुकुर के भीतर जागे मया भरोसा ला तोड़े के महूँ कोनो उदिम नइ करेंव l ओकर मुड़ी ला छुवत खजूवावत दस मिनट होगे रहिस होही l बिन हांत -हुत के चुप चाप उठ के दूसर कोती रेंगे ला धर लेंव l कुकुर मोर पीछू पीछू आये ला धर लीस l कुकुर के हिम्मत बढ़गे मोर संग आये ला l दूसर कुकुर मन देख के भूके ला धरिस l करिया कुकुर मोर आघू पाछू घूमत दूसर कुकुर ला ज़वाब दे वत रहिस - " मुठा बंधाये हे अभी नहीं तो कभी भी खोलही मोर हिस्सा हे मोर आदमी हे एखर पाछू संग ला नइ छोड़व l"
करिया कुकुर ला मोर कुकुर नइ कह पांवत हँव
काबर -"मया अउ लालच म कभू भी ककरो संग ककरो पाछू भाग सकत हे l"
दूसर दिन फ़ेर अउ अउ बैठेव l
ए दफे पूरा साहस के साथ मोर गोड़ ला चूमे ला धर लीस l अपन आँखी ला मुँद के लोर्घयाये ला धर लीस l सोचेंव थोकिन मया म अतका अपना पन कुकुर के मन म आ गेहे l डउकी लइका म नइ दिखय l ओमन तो कुकुर ले जादा मतलबी स्वार्थी होथे l कुकुर के तीर म आये आदत परगे फ़ेर तीर म रहिके डउकी लइका धुरिहा धुरिहा रहिथे l मौका आही त पूछय नहीं l

मुरारी लाल साव
कुम्हारी

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