इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शनिवार, 28 अगस्त 2021

इनकी भी तो सुनो

डॉ आर बी भण्डारकर


      पुस्तकों के एक पैकेट को चिपकाना था सो दादा जी सैलो टेप का छोर ढूंढ रहे थे,जो ऐसा चिपक गया था ,कि मिल ही नहीं रहा था।
      नाखून की सहायता से सब जगह आजमा लिया;छोर नहीं मिला सो नहीं ही मिला।
      उनके पास में बैठी हुई उनकी ढाई वर्षीय पोती बीच बीच में कुछ कुछ बोल रही थी,जिस पर अपनी धुन में मस्त दादा जी ध्यान ही नहीं दे रहे थे।
      दादा जी को उपाय सूझा। कैंची के एक किनारे से टेप के बंडल को एक जगह पर हलके से खुरचा। बस छोर मिल गया इसी के सहारे; वे टेप को इच्छानुसार निकालने लगे।
      पोती बोली "मैं तो कब थे यही बोल लही थी आप थुन ही नहीं लहे थे,अपनेहहहह ही काम में लदे थे।"

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