विज्ञान व्रत
( 1 )
मैं जब ख़ुद को समझा और
मुझमें कोई निकला और
यानी एक तजुरबा और
फिर खाया इक धोखा और
होती मेरी दुनिया और
तू जो मुझको मिलता और
मुझको कुछ कहना था और
तू जो कहता अच्छा और
मेरे अर्थ कई थे काश
तू जो मुझको पढ़ता और
( 2 )
आप कब किसके नहीं हैं
हम पता रखते नहीं हैं
जो पता तुम जानते हो
हम वहाँ रहते नहीं हैं
जानते हैं आपको हम
हाँ मगर कहते नहीं हैं
जो तसव्वुर था हमारा
आप तो वैसे नहीं हैं
बात करते हैं हमारी
जो हमें समझे नहीं हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें