मधुकर वनमाली
मधुवन की मुस्कान खिली जब
डाली गुड़हल फूल खिला
आह! मगर मुरझाया देखो
गिर कर पथ में धूल मिला।
मधुकर आंसू रोक सके जो
पल्लव भी रोते सुन ले
स्वप्न सुहाने टूट गए सब
कैसे अब फिर से बुन लें
भूल नहीं पाता है अब मन
रोया भ्रमर उपवन पिघला।
ओस बड़ी रहती जब तन पर
भीग सुमन सुंदर लगता
आज सुबह थी सूनी नजरें
दिखता बस खाली तिनका
प्यास हमारी अँखियों की अब
कौन बुझाए यही गिला।
फूलों की मीठी सी चितवन
गंध अभी तक ना भूला
मुखरित मेरे प्राण हुए जब
पुष्प पवन के संग झूला
जाने कब फिर से खिल पाए
फूल मेरा जो धूल मिला।
मुजफ्फरपुर बिहार
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