कमल नारायण मेहरोत्रा Kamal Narain Mehrotra
प्रस्तुति: डी एस शुक्ला
यह प्रश्न एकाएक भारतीय जनमानस में जाने कहाँ से पूँछा जाने लगा। इसके पहले कभी राम के अस्तित्व पर प्रश्न नहीं लगा। लोग सुबह ‘राम-राम’ कहते उठते, मिलते तो राम-राम कह जुहार करते, कष्ट में ‘हाय राम’ पुकारते, राम नाम की सौगंध उठाते और अंतिम प्रयाण में ‘राम नाम सत्य है’ के जैकारे के साथ चिता पर लेट जाते। फिर एकाएक राम नाम पर संशय कैसे?
आइंस्टीन ने गांधी के बारे में कहा था से “आज से 500 साल बाद लोग विश्वास नहीं करेंगे कि गाँधी जैसा हाड़-माँस का कोई व्यक्ति इस धरा पर चला होगा”। फिर राम तो हजारों वर्ष पहले हुए थे। अतः एक तटस्थ विचारक या साधारण जिज्ञासु के मन में भी द्विधा होना अस्वाभाविक नहीं है। किन्तु संस्कारों को नकारने को आधुनिकता समझने वाले दुराग्रही विचारकों द्वारा राम को मात्र मिथक अथवा कवि की कोरी कल्पना सिद्ध करने का प्रयास मन-मानस को उदद्वेलित करता है। लगता है कि प्राचीन संस्कृति को जड़ से समाप्त करने का षड्यंत्र चल रहा है।
भारतीय संविधान की मूल प्रति में महाभारत, गीता और रामायण के चित्र भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अंकित हैं। फिर भी जब भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार राम के अस्तित्व को नकार राम-सेतु को नष्ट करने का शपथ-पत्र देने लगे; तो प्रतीत होता है कि उनका भारत की अस्मिता एवं संविधान पर भी विश्वास नहीं रहा।
ऐसी विचारधारा मात्र भारत में ही संभव है। अन्य देश अथवा धर्मों में नहीं।
आदिकवि कवि वाल्मीकि की ‘रामायण’ मानव रचित साहित्य की सर्व प्रथम रचना है। वाल्मीकि राम के समकालीन थे। सीता के जीवन का एक बड़ा भाग वाल्मीकि आश्रम में ही बीता। राम के दोनों पुत्र कुश और लव इस कथा के प्रथम वाचक एवं गायक थे। अतः वाल्मीकि रचित रामायण राम कथा की सबसे विश्वसनीय कृति है। इसी कारण हम भारतीय इसे इतिहास ही मानते हैं। वाल्मीकि रामायण के नायक राम अवतारी अथवा देव पुरुष नहीं हैं। वाल्मीकि ने उन्हें एक आदर्श शासक और आदर्श पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया जो अपने सुकृत्यों से महमानव बन कर निखरा।
वाल्मीकि ने अन्य कवियों की भांति केवल राम कथा ही नहीं कही। उन्होंने अयोध्या, सिद्धाश्रम, विशाला, मिथिला आदि स्थानों का व सरयू, गंगा, शोण आदि नदियों के संगम का जो विवरण दिया है वह आज भी यथावत विद्यमान है। रामायण में आदिकवि ने राम के विचरण स्थानों के मार्ग और भौगोलिक संरचनाओं को भी बताया है, जिन्हें प्राचीन मान-चित्रों के अलावा आधुनिक मान-चित्रों से परिपुष्ट भी किया जा सकता है परिशिष्ट में दिये मान चित्र दृष्टव्य हैं।
यही नहीं राम कथा कि प्रमुख घटनाओं का वर्णन करते समय वाल्मीकि ने आकाशीय ग्रहों कि स्थिति का भी वर्णन किया, जिन्हें कि आधुनिक विज्ञान की सहायता से परखा जा सकता है।
सर्वमान्य तथ्य है कि खगोलीय पिण्ड एक समय में एक निश्चित स्थान पर ही स्थित होते हैं। ग्रहों की एक स्थिति विशेष की पुनरावृत्ति की संभावना करोड़ों वर्ष तक नहीं हो सकती। अतः ग्रहों की स्थिति से उसके (ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार) समय का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अमरीका के नासा प्रयोगशाला में ‘प्लेनेटेरियम साफ्टवेयर’ विकसित किया है जिसके द्वारा किसी भी दिन की खगोलीय पिंडों की स्तिथि बताई जा सकती है और ग्रहों की खगोलीय स्तिथि से उसका ‘ग्रेगेरियन कलेंडर’ के अनुसार समय एवं दिनांक ज्ञात किया जा सकता है।
इस सॉफ्टवेयर में जब वाल्मीकि रामायण में वर्णित ग्रहों की स्थिति डाली गई तो निष्कर्ष निकला-
राम का जन्म 10 जनवरी 5114 BCE में अपरहान 12:30 पर हुआ। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वह चैत्र माह की नवमी में पुनर्वसु नक्षत्र हुआ। भरत का जन्म 11 जनवरी 5114 को प्रातः 5:30 , राम वानवास के समय राम की आयु 25 वर्ष आँकी गई।
वास्तविकता है कि जिन स्थलों का वर्णन वाल्मीकि रामायण में आज से हजारों साल पहले किया जा चुका है वह स्थल हिमालय से दक्षिण सागर तक आज तक विद्यमान हैं। सागर पार लंका में भी राम रावण कथा से जुड़े स्थल हैं और वहाँ की सरकार द्वारा पर्यटक स्थल घोषित हैं।
‘तथाकथित ज्ञानी’ लोगों का कुतर्क हो सकता है, कि गंगा किनारे निवसित वाल्मीकि को वहीं बैठे-बैठे, इन सुदूर स्थलों और वहाँ घटित घटनाओं का ज्ञान कैसे हुआ?
पूरी संभावना है कि, लंका विजय के बाद राम के साथ आए उनके वनवास के सहयोगियों द्वारा जनसाधारण को ज्ञात हुआ होगा। राम के राजतिलक में आए ऋषि मुनियों में महर्षि अगस्त्य भी थे। अगस्त्य का राम की विजय में बहुत योगदान था। ‘रघुवंश’ के अनुसार ऋषि अगस्त्य ने राज दरबार में राम के संघर्ष एवं दुष्ट-दलन के बारे में विस्तार से बताया।
गर्भवती साध्वी सीता लव-कुश के जन्म के बाद कुमारों के किशोर होने तक वाल्मीकि आश्रम में रहीं थीं। निश्चित है कि सीता ने अपने प्रवास के दौरान वाल्मीकि को सारी कथा विस्तार से बताई होगी। पूरी संभावना है कि क्रौंच पक्षी की मृत्यु से आहत कवि, सीता की पीड़ा से द्रवित होकर रामायण की रचना कर बैठा।
अन्य साक्ष्य-
अंग्रेजों के भारत आने के 500 वर्ष पूर्व अलबरूनी ने 1336 ईस्वी में अपनी पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ में राजा दशरथ के पुत्र राम का ज़िक्र किया जिसने दक्षिण में ‘सेतुबंध’ बनवाया।
हमीदा बानो (सम्राट हुमायूँ की पत्नी तथा राजा अकबर की माँ) द्वारा बनवाए राम कथा के तैल चित्र वर्तमान में ज्यूरीच के संग्रहालय में संग्रहीत हैं। सम्राट अकबर द्वार बनवाए गए राम कथा-चित्र सवाई मान सिंह संग्रहालय में आज भी देखे जा सकते हैं।
जिस राम का होना भारत में नकारा जा रहा है उस राम के लंका विजय के बाद विमान से वापस लौटने का उल्लेख ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की ‘बेनहर’(BEN-HUR: A TALE OF CHRIST page 318-321) नाम की कथा में भी आया है।
प्राचीन मिस्र के फैरो अपने को सूर्यवंशी मानते थे। उनका एक फैरो इतिहास में ‘राम्से’ नाम से प्रसिद्ध है।
इन्डोनेशिया एक मुस्लिम बाहुल्य देश होते हुए भी वहाँ राम की बहुत मान्यता है। थाईलैंड के ‘चक्री वंश’ के राजा सदियों से अपने टाइटिल ‘राम’ रखते हैं। वहाँ के वर्तमान राजा आज भी राम ixth (9वें) नाम से प्रसिद्ध हैं।
अयोध्या के उत्तर पूर्व मिथिला से लेकर उत्तर प्रदेश, छत्तीस गढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं तमिलनाडु से आगे लंका तक राम कथा में वर्णित स्थल आज भी सरकारों द्वरा पर्यटक केंद्र रूप में विकसित है।
वाल्मीकि रामायण के कथानक को यदि तर्क (लॉजिक) की छन्नी लगा कर उसमे से काव्यगत अतिशयोक्ति, अन्योक्ति आदि को छान कर अलग कर दें तो, तो राम कथा का विशुद्ध इतिहास (इतिहास= इति+हा+आस = ऐसा+ही (निश्चयात्मक)+था) देख सकेंगे।
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