ज्योति व्यास
राखी का कार्यक्रम समाप्त हो चुका था। चाय के दौर के बाद सभी बहन बेटियां अपने अपने घर जाने की तैयारियां कर रहीं थीं।
पुराणिक जी का परिवार एक वट वृक्ष के समान है। चार पीढ़ियों की राखी एक साथ बंधती है। भुआजी ,भैया ,भाभी ,बहने ं,भतीजे ,बहुएँ ,भतीजियां ,भांजियाँ और उनके बेटे - बेटियाँ!
इतना शोर शराबा,मस्ती आनंद, खिलखिलाहट, ठहाके सब चलते और राखी बंधने का कार्यक्रम बदस्तूर चलता रहता था। सभी भाई - बहन और उनके बच्चे एक दूसरे को उपहार दे कर और ले कर खूब खुश होते। इस वर्ष भी राखी का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
सभी के झोले नारियल, मिठाई और उपहारों से भरे हुए थे। सबसे छोटी गुड़िया जो भाई के घर के पास ही रहती थी अपना भरा हुआ झोला वहीं छोड़ गई।
छियासी वर्षीय माताजी पूरे कार्यक्रम पर नजर रखे हुए थीं। किस बहन ने और किस भाई ने किसको कितने उपहार दिये। दिया तो उसका कितना मूल्य था। यदि नहीं दिया तो क्या कारण था आदि आदि ...
जैसे ही उन्होंने गुड़िया का झोला देखा वे चिंतित हो गईं और कमरे में हर आने जाने वाले व्यक्ति से झोला गुड़िया के घर भेजने की गुहार लगा रहीं थीं।
भुआजी अपनी भाभी का यह व्यवहार देख रही थीं। मन ही मन आश्चर्य चकित भी हो रही थीं। विचार आ रहा था - सभी बच्चे बुढ़ापे की ओर अग्रसर हैं। उनके बच्चों के भी बच्चे हो चुके हैं। सब अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। आखिर भाभी को इतनी चिंता करने की क्या आवश्यकता है ?
आगे सोचने लगी - भाभी के जीवन में अभी भी बहुत सारे अल्पविराम हैं। न जाने कब शांति और संतोष का पूर्ण विराम लगेगा ?
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