इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 29 अगस्त 2021

पूर्ण विराम

ज्योति व्यास
      राखी का कार्यक्रम समाप्त हो चुका था। चाय के दौर के बाद सभी बहन बेटियां अपने अपने घर जाने की तैयारियां कर रहीं थीं।
      पुराणिक जी का परिवार एक वट वृक्ष के समान है। चार पीढ़ियों की राखी एक साथ बंधती है। भुआजी ,भैया ,भाभी ,बहने ं,भतीजे ,बहुएँ ,भतीजियां ,भांजियाँ और उनके बेटे - बेटियाँ!
      इतना शोर शराबा,मस्ती आनंद, खिलखिलाहट, ठहाके सब चलते और राखी बंधने का कार्यक्रम बदस्तूर चलता रहता था। सभी भाई -  बहन और उनके बच्चे एक दूसरे को उपहार दे कर और ले कर खूब खुश होते। इस वर्ष भी राखी का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
      सभी के झोले नारियल, मिठाई और उपहारों से भरे हुए थे। सबसे छोटी गुड़िया जो भाई के घर के पास ही रहती थी अपना भरा हुआ झोला वहीं छोड़ गई।
      छियासी वर्षीय माताजी पूरे कार्यक्रम पर नजर रखे हुए थीं। किस बहन ने और किस भाई ने किसको कितने उपहार दिये। दिया तो उसका कितना मूल्य था। यदि नहीं दिया तो क्या कारण था आदि आदि ...
      जैसे ही उन्होंने गुड़िया का झोला देखा वे चिंतित हो गईं और कमरे में हर आने जाने वाले व्यक्ति से झोला गुड़िया के घर भेजने की गुहार लगा रहीं थीं।
      भुआजी अपनी भाभी का यह व्यवहार देख रही थीं। मन ही मन आश्चर्य चकित भी हो रही थीं। विचार आ रहा था - सभी बच्चे बुढ़ापे की ओर अग्रसर हैं। उनके बच्चों के भी बच्चे हो चुके हैं। सब अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। आखिर भाभी को इतनी चिंता करने की क्या आवश्यकता है ?
      आगे सोचने लगी - भाभी के जीवन में अभी भी बहुत सारे अल्पविराम हैं। न जाने कब शांति और संतोष का पूर्ण विराम लगेगा ?

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