सुमीत दहिया
उसके भावनारहित चेहरे का बिखरा आवेदन
सबसे पहले मुझ तक पहुंचता है
वीरान सन्नाटों और हांफती बेचैनी को खुद में समेटे हुए
कई ध्वस्त पड़ावों को पार करता हुआ
परिणामों से बेखबर
कई ध्वस्त पड़ावों को पार करता हुआ
परिणामों से बेखबर
एक परिचित मुद्रा में विराजमान
टपकती रेत से मांगता है अपने प्राण
सुनता है वह ध्वनि जो बताती है कि
इस कविता के अंश मौजूद है
उस प्रत्येक कण में जहां से गुजरी है
हमारे संक्षिप्त प्रेम की निरंतर यात्रा
टपकती रेत से मांगता है अपने प्राण
सुनता है वह ध्वनि जो बताती है कि
इस कविता के अंश मौजूद है
उस प्रत्येक कण में जहां से गुजरी है
हमारे संक्षिप्त प्रेम की निरंतर यात्रा
उम्रदराज कोलाहल और विवश बूढ़ी
मानसिकता से बचकर
ठोस बर्फ को तोड़ती हुई
वक्त की नब्ज के बहाव से
वह बनाती है वह मार्ग या पगडंडी
जो अंततः मुझ तक पहुँचती है
क्योंकि प्रेम ही प्रेम की आखिरी मंजिल है
वह आज तक कभी इकट्ठा होकर
पूरी नहीं आई,नहीं आ सकती
किसी क्षणिक बातचीत का अंश
उसकी आँखों से बहकर
अचानक भेदता है मेरा अक्स
मानो जैसे नदी तलाशती हो
सागर तक पहुँचने का मार्ग
बिना किसी औपचारिक शिक्षा के
ऊफन - ऊफनकर तोड़ती जाती है
रास्ते की सभी रुकावटें और चट्टानें
एक प्रवाहमान विस्तार को संकुचित करते हुए
वो जानती है मेरा ह्रदय उसके आंसुओ का निर्माण है
और उसके चेहरे के हाव- भाव
मेरी लरजती आवाज़ की अभिव्यक्ति
सागर तक पहुँचने का मार्ग
बिना किसी औपचारिक शिक्षा के
ऊफन - ऊफनकर तोड़ती जाती है
रास्ते की सभी रुकावटें और चट्टानें
एक प्रवाहमान विस्तार को संकुचित करते हुए
वो जानती है मेरा ह्रदय उसके आंसुओ का निर्माण है
और उसके चेहरे के हाव- भाव
मेरी लरजती आवाज़ की अभिव्यक्ति
मुझसे मिलने से पहले
कोई काँपती हुई प्रार्थना
एकदम से फुट पड़ती है उसके शब्दों से
किसी अंजान उत्तेजना का स्पर्श
धुंधला देता है सभी सामाजिक नियम
वह थूक देती है,
सभी ताज़ा और बासी पारिवारिक समीकरणों के मुंह पर
मुझसे मिलने से पहले
बागी हो जाता है उसका विवेक
चरणबद्ध थिरकती है पैरों की थकान
सुबकियां भरती है नई डिग्री
समानांतर चलता है हमारे बीच संवाद
और मंै इसी बीच उससे कहता हूं
इस अमर रिश्ते का सिलसिला
तुम्हारी पांच इंच लंबी जीभ पर निर्भर है
मेरे जेहन पर गिरती
कोई काँपती हुई प्रार्थना
एकदम से फुट पड़ती है उसके शब्दों से
किसी अंजान उत्तेजना का स्पर्श
धुंधला देता है सभी सामाजिक नियम
वह थूक देती है,
सभी ताज़ा और बासी पारिवारिक समीकरणों के मुंह पर
मुझसे मिलने से पहले
बागी हो जाता है उसका विवेक
चरणबद्ध थिरकती है पैरों की थकान
सुबकियां भरती है नई डिग्री
समानांतर चलता है हमारे बीच संवाद
और मंै इसी बीच उससे कहता हूं
इस अमर रिश्ते का सिलसिला
तुम्हारी पांच इंच लंबी जीभ पर निर्भर है
मेरे जेहन पर गिरती
तुम्हारी उस प्रथम चालाकी का परिणाम
इस अमरता का निर्णायक अंत भी हो सकता है
सरकारी छुट्टी पर आए मूर्ख पिता के मादा अवकाश
देखो मंै तुम्हे उस वक्त भी महसूस कर रहा हूं
जब ट्रम्प की रिपब्लिकन भीड़
कैपिटल को उधेड़ने में लगी हुई है
और देसी वैक्सीन की पहली खेप
इस अमरता का निर्णायक अंत भी हो सकता है
सरकारी छुट्टी पर आए मूर्ख पिता के मादा अवकाश
देखो मंै तुम्हे उस वक्त भी महसूस कर रहा हूं
जब ट्रम्प की रिपब्लिकन भीड़
कैपिटल को उधेड़ने में लगी हुई है
और देसी वैक्सीन की पहली खेप
टेलीविजन के बाहर लगभग गिरने ही वाली है
और बताना चाहता हूं
मुझसे मिलने से पहले
हर असंभव को पीछे धकेलकर
चुन लो अपना पसंदीदा विषय
और उस विषय की अंतिम पंक्ति में घटेगा
हमारे बीच महामिलन।।
और बताना चाहता हूं
मुझसे मिलने से पहले
हर असंभव को पीछे धकेलकर
चुन लो अपना पसंदीदा विषय
और उस विषय की अंतिम पंक्ति में घटेगा
हमारे बीच महामिलन।।
हाउस नं. 7सी, मिस्ट होम सोसाइटी,
हाइलैंड मार्ग, जीरकपुर : 140603 मोहाली, पंजाब
मोबाइल : 9896351814
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ईमेल – dahiyasumit2116@gmail.com
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