इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 11 अप्रैल 2021

सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी,

 

पद्मा मिश्रा


गोल घिरते जिन्दगी के व्यूह इतने,
हर मोड़ पर ज्यों घूमती है गोल रोटी
फिर भी कोई आस मन की अनबुझी सी,
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी,
मै घुमाती हूँ समस्याओं के पट पर,
उलझनें आटे सी कोमल और गीली,
भूख सी फैली हुई है आंच मन की,
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी,
कल फिर खिलेगा क्षुधा का विकराल सूरज,
फिर सजेगा घर का कोई एक कोना,
थालियों में सज उठेंगी कामनाएं,
फिर कोई सपना दिखाती प्यास होगी,
सब्जियों सी काटती हूँ,दर्द की हर रात बीती,
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी.
दाल पकती ज्यों कोई भूली कहानी,
हास हल्दी का.., नमक सी पीर जग की,
प्रार्थनाएं छौंक सी बेवक्त उठतीं,
घुट रही साँसों में जीवन की उदासी.
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी.

यह रसोईं है मेरे सपनो की दुनिया ,
मधुरता कविता में निशि दिन घोलती हूँ,
चाकुओं को धार देती सोचती हूँ
,कर रही हूँ धार पैनी अक्षरों की ..
और गढ़ रही हूँ गीत कोई स्वप्नदर्शी .
सिंक. रही हैं भावनाएं रोटियों सी .

प्रकृति- पर्व के गीत


पद्मा मिश्रा

धूप के नन्हे नन्हे टुकड़े
चितकबरे से,,
जैसे खेलते लुकाछिपी का खेल
कुछ शरारती बच्चे,,
झर रही है नीम की पत्तियां,
सर सर मर मर‌,,,,
बदलते मौसम के गीत गाती प्रकृति
और भावनाओं का तपता सूरज
उतर रहा धरती के हरित अंचल पर
धीरे ,,,धीरे,, धीरे,,!
पिघलती,,बिखरती धूप के मृगछौने,
बतिया रहे हैं,, जहां तहां,,
और थरथराती शीत गुम हो रही है
धरती कुछ और संवरती
गुनगुनाती सी,,तप‌ उठती है
युगों से वहीं खड़ी,, प्रिय सूरज के
स्वागत में
युगों से,, युगों तक?


--1-फसलों की रानी ओढे चूनर धानी
मन की पतंग उडे नील-आसमानी
झूमे धरती -लहरे नदिया का पानी
आओ सखी सपनों की दुनिया बसायें
मांदर के बोलों पर झूमे नाचे गायें
आज मकर संक्रांति बेलासुहानी
नाच उठा तनमन -जागीं सुधियां पुरानी
आओ सखी अनुरागी चूनर सजाये
मांदर के बोलों पर झूमे नाचे गायें
(२)
झूम उठी धरती की मोहक अंगडाई हैं
मांदर के ताल पर पुरवा लहराई हैं
गुड की मिठास लिये रिश्तोंको सजने दें
सखी आज मौसम को जी भर संवरने दें
नदिया के तट किसने बांसुरी बजाई हैं
झूम उठी धरती की मोहक अंगडाई हैं
हरियाली खेतों की,धानी चूनर मन की
भींगे से मौसम में साजन के आवन की
थिरक रहे नूपुर ज्योंगोरी शरमाई हैं
झूम उठी धरती की मोहक अंगडाई हैं
टुसू का परब आज नाचे मन का मयूर
मतवारे नैनों में प्रीत का नशा हैं पूर
सूरज की नई किरऩ लालिमा सी छाईहै
झूम उठी धरती की मोहक अंगडाई हैं
बहक रही मादकता ,जाग रही चंचलता
घुंघरु के बोल बजे,बिहु के गीत सजे
घर आंगन वन उपवन जागी तरुणाई हैं
झूम उठी धरती की मोहक अंगडाई हैं,,,,
पद्मा मिश्रा

3)

प्रकृति के आंगन में
शीत से कांपती सहमी दीवारों पर
धूप के नन्हे नन्हे टुकड़े
चितकबरे से,,
जैसे खेलते लुकाछिपी का खेल
कुछ शरारती बच्चे,,
झर रही है नीम की पत्तियां,
सर सर मर मर‌,,,,
बदलते मौसम के गीत गाती प्रकृति
करती है स्वागत-नये सूरज का,
और भावनाओं का तपता सूरज
उतर रहा धरती के हरित अंचल पर
धीरे ,,,धीरे,, धीरे,,!
पिघलती,,बिखरती धूप के मृगछौने,
बतिया रहे हैं,, जहां तहां,,
और थरथराती शीत गुम हो रही है
धरती कुछ और संवरती
गुनगुनाती सी,,तप‌ उठती है
युगों से वहीं खड़ी,, प्रिय सूरज के
स्वागत में
युगों से,, युगों तक?

जमशेदपुर झारखंड

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