पाँच साल की बेटी मेरी
अपने हमउम्र तीन-चार सहेलियों के साथ
गुड्डा-गुड़िया,टैडी वियर, डॉक्टर सेट,किचन सेट जैसे
तमाम प्रकार के खिलौनों को बिखराए
आने-जाने के रस्ते को घेरे हुए
अपने खेल में रहती है मशगूल
वह अपनी माँ के पुकारे जाने की आवाज़ नहीं सुनती
वह आने-जानेवाले किसी को देखती भी नहीं
उसे बिलकुल भी चिंता नही है किसी काम की
उसे समय के गुज़र जाने का डर नहीं
उसे आगे बढ़ती घड़ी की सुइयाँ परेशान नहीं करती
उसे कहीं वक़्त पर पहुँचने की जल्दी नहीं
उसके आँखों में सपने या फिर कोई हसीन खयाल भी नहीं
वह जब खेलती है तो बस खेल में ही रहती है
और हम हैं कि एक काम करते हुए कई कामों में बंटे होते हैं
हम एक समय में एक काम में नहीं होते
और एक काम भी ठीक से नहीं कर पाते
हम सबका देखते हैं सुनते हैं पर अपना कभी देख सुन नहीं पाते
मुझे अक़्सर चिढ़ा जाती है
मेरी बेटी की बेपरवाह बातें और उसकी मासूमियत भरी हँसी।
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
अपने हमउम्र तीन-चार सहेलियों के साथ
गुड्डा-गुड़िया,टैडी वियर, डॉक्टर सेट,किचन सेट जैसे
तमाम प्रकार के खिलौनों को बिखराए
आने-जाने के रस्ते को घेरे हुए
अपने खेल में रहती है मशगूल
वह अपनी माँ के पुकारे जाने की आवाज़ नहीं सुनती
वह आने-जानेवाले किसी को देखती भी नहीं
उसे बिलकुल भी चिंता नही है किसी काम की
उसे समय के गुज़र जाने का डर नहीं
उसे आगे बढ़ती घड़ी की सुइयाँ परेशान नहीं करती
उसे कहीं वक़्त पर पहुँचने की जल्दी नहीं
उसके आँखों में सपने या फिर कोई हसीन खयाल भी नहीं
वह जब खेलती है तो बस खेल में ही रहती है
और हम हैं कि एक काम करते हुए कई कामों में बंटे होते हैं
हम एक समय में एक काम में नहीं होते
और एक काम भी ठीक से नहीं कर पाते
हम सबका देखते हैं सुनते हैं पर अपना कभी देख सुन नहीं पाते
मुझे अक़्सर चिढ़ा जाती है
मेरी बेटी की बेपरवाह बातें और उसकी मासूमियत भरी हँसी।
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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