पढ़ती पथ पर
बस अधिकारों की बात नहीं
पहचान मेरे यह होने की
पढ़ती पथ पर मै जाती हूं
अरमान मुझे नभ छूने की।
जो बैठी सड़क किनारे हूं
रस्ते का होता भान मुझे
कल सरपट दौड़ लगानी है
अभी ले लेने दो ज्ञान मुझे।
कुछ काम करुँ, मजबूरी जो
श्रम सीकर से पथ गीला है
पढ लिख थोड़ा कुछ बन लूं तो
आगे सब कुछ चमकीला है।
तुम जोर लगा कर देखो तो
नही उलझा सकते ध्यान मेरा
मै गुरुवर की प्यारी शिष्या
वो भी करते हैं मान मेरा।
मधुकर वनमाली
मुजफ्फरपुर बिहार
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