संजीत कुमार
आज क्या होने वाला है क्या आज कुछ खास है आज में इतना खुश क्यों हूं
क्यों मेरे पांव जमीन पर नहीं है। मन के अन्दर एक अजीब सा तूफान ढाढे मार
रहा है पांचू पूरी रात सौ नहीं पाया है, करवटे बदलते रहे सारी रात हम आप की
कसम । मगर ये आप की कसम गाने तक ही सीमित थी असल में तो पांचू की पूरी
जिंदगी झण्ड थी । पांचू भी बड़ा हिम्मती था जिन्दगी की झण्ड को बड़ी शान के
साथ ढोता था। कई बार पांचू सोचता खेर अभी यह बात छोड़ो पांचू क्या सोचता है
इस पर थोड़ी देर बाद बात करेगे ं पहले में आपको यह बता दूं की पांचू का असली
नाम क्या है तो गोया पांचू का असली नाम तो अभी तक हमारे दिमाग में भी नहीं
आया है हांलाकि ऐसे बेकार स्लमडाग का कोई भी आलतू फालतू इत्यादि नाम हो
सकता है। खेर पांचू अक्सर सोचता है यार मेरी जिन्दगी भगवान ने आखिर किस पेन
से लिखी है लिखी भी है या नहीं । अच्छा भला बाप तिलकधारी था जो दिल्ली की
किसी फेक्टरी में काम करता सुबह जाता था शाम को आता था साथ में अपना पव्वा
लाना नहीं भूलता था । ऐसे वेसे बेवड़ो की तरह नहीं था जो लिया क्वाटर एक ही
सांस में गटक और फोरन थोड़ा नमक चाट लिया चलो भइया हो गया काम बाकायदा
पुलिया पर बेठे रमजान भाई चिकन साप वाले से स्पेषल मुर्गे के पंजे , पोटा
एवं कलेजी भी साथ लाता था । फिर आराम से बेठकर शाम रंगीन और रात फंगीन करता
था। इनके हिसाब से सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन तभी तक जब तक फेक्टरी मालिक
अचानक से दिल्ली वालो के फेंफड़े जवाब देने लगे तो सुर्पीम कोर्ट एवं
दिल्ली सरकार को पर्यावरण की गंभीर चिंता सताने लगी सरकार तो खेर अब भी
नहीं जागती पर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी का डंडा था तो आनन फानन में कई
निर्णय लिए गए जिनमें से दिल्ली से फेक्टिरियों का स्थानानतरण भी था । इसी
में पांचू के बापू की नौकरी भी चली गई । तिलकधारी के पास अब बस एक ही काम
था काम ढूंढना ।फिलहाल तिलकधारी जी अब धर्म कर्म की चर्चा में व्यस्त रहने
लगे है । घर के पास ही एक कपड़े प्रेस करने वाली का एक ठइया है जंहा मुहल्ले
में रहने वाले अपने कपड़े प्रेस कराते है यही तिलकधारी जी का परमानेंट ठइया
है । यहीं तिलकधारी जी धर्म कर्म मोक्ष कीर्तन आदि पर लंबी लंबी चर्चाओ
में व्यस्त रहते है हालांकि तिलकधारी जी कम्युनिस्ट पाटी आफ इण्डिया
त्रिलोक पुरी शाखा के महासचिव भी रह चुके है मार्क्स लेनिन को गाहे बगाहे
कोट भी कर देते है।
खेर दिन
चढ़ रहा है पांचू अब लगभग जाग चुका है । रात को टीवी किसी ने बंद नहीं किया
सो चल ही रहा है । बगल में नंगे बदन बाप तिलकधारी लुंगी पहने सो रहा है ,
लंुगी अस्त व्यस्त है लट्ठे वाला कच्छा और नाड़ा लुंगी से बाहर आने की फिराक
में है। दूसरी बाजू में मां है और मां के बाजू में तीन बहने लिबड़ जिबड़
होकर इतमिनान से सो रही है। रात को आपस में तीनों बहनों में अच्छी दुआ सलाम
हुई है, एक की चौटी दूसरे और दूसरे की चौटी तीसरे की हाथ में थी। अगर मां
बीच में न आई होती तो मामला और गंभीर हो सकता था खेर ये कोई एक दिन की बात
नहीं थी । साढ़े सात बज गए थे दूरदर्शन पर चिरपरिचित धुन बजी और सत्य शिवम
सुन्दरम वाला लोगो नमूदार हुआ इसी धुन के बीच बाहर गली में लगी अंगीठीयों
की धुंआ कमरे में आ रही थी । बापू को दमें की शिकायत थी जैसे ही उनके
फेंफड़ों में हवा गई लगे खांे खों करने अबे किस बेहन के भाई ने अपनी ऐसी
तेसी कराई है जाइयों पांचू देख कोन चुतियां है मादरचोदो को जरा भी किसी की
परवाह नहीं कोई मरे तो मरे इनकी बला से । पांचू पहले से ही जानता था की कोन
है कोन होगी होगी वहीं चमन चाची कितना भी बोल दो अंगीठी हमारे दरवाजे के
सामने ही लगाएगी। चमन का घर उनके घर के सामने ही था वह भी बहुत बड़ी वाली थी
चाहती तो अंगीठी को थोड़ी दूर खाली जगह है वहां भी लगा सकती है पर
जानबुझकरनहीं लगाती।
सभी
झुंझलाकर नई सुबह में आ गए थे । पांचू सबसे पहले बाहर गया बातो बातों में
तिलकधारी ने अपना 502 न. बीड़ी का बण्डल उठाया और लगा सूतने तिलकधारी की आदत
थी कि जब तक चार पांच बीड़ी न सूत ले तब तक उसका हाजमा नहीं होता था ।
इसी बीच छोटू आ गया छोटू का असली नाम कोई नहीं जानता था सब उसे छोटू
ही कहते थे छोटू भी अब अपना असली नाम भूल चुका था । पास ही के सार्वजनिक
पार्क का टूटा फूटा मंदिर छोटू का ठिकाना था। वह किसी के काम की मना नहीं
करता था मुहल्ले भर के छोटे मोटे काम छोटू कर देता था बदले में मोहल्ले
वाले छोटू को बचा कुचा खाना चाई आदि दे देते थें। तिलकधारी जानता था छोटू
क्यों आया है उसने चुपचाप एक बीड़ी छोटू की तरफ बढ़ा दी छोटू की आदत थी की
बीडी को पीने से पहले थोडा दांत से काटता था। उसने दांत से काटकर बीड़ी जला
ली ।
इसी बीच कालका पांचू की
मां दो कपो में चाय लेकर आ गई छोटू ने टूटी ठंडी वाला कप अपने आप उठा लिया
छोटू जानता था बदले में कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा । कालका बोली ओ भाई जाए
तो ये बिस्तर घड़ी कर दियो। छोटू बोला अच्छा अम्मा कर दूंगा। चाय और बीड़ी की
डोज ले चुकने के बाद तिलकधारी ने सीधा डिब्बा उठााया और सार्वजनिक शोचालय
की लाईन में लग गया। आज शोचालय की सफाई हो रही थी गटर औपन थे उनमे ं एमसीडी
के ठेके के कर्मचारी घुसे हुए थे सुबह सुबह सभी टाईट थे , क्योंकि बिना
टाईट हुए वे इस काम को कर भी नहीं सकते थे। विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश
होगा जंहा मानव का मल मानव ही ढो रहा हो । शरीर पर सिर्फ जांघिया ही था।
गटर का मुहाना इतना ही बड़ा था कि एक कर्मचारी उसमें खड़ा हो सकता था और एक
छोटी बाल्टी उसमें जाती थी । वह बाल्टी उठाता मल उसमें भरता और बाहर खड़े
दूसरे साथी को हेण्डओवर करता , दूसरा तीसरे को दे देता वह इसे पास ही खड़ी
ट्राली में भरता इस तरह गंगा की सफाई हो रही थी।
डिब्बा दो या तीन ही थे पांचू की बहने भी नित्यकर्म से निवृत होने चली
गई थी । पांचू बापू का इंतजार कर रहा था उससे रूका नहीं गया शाम को मनपंसद
कड़ी चावल बने थे तो दबा कर लपेट दिए थे अब मलबा बाहर आने की जबरदस्त
स्थिति में था। पांचू ने पॅालीथीन में ही पानी भर लिया और निकल पड़ा
धर्मयुद्ध को । रास्ते में उसके जेहन में वे सफेद कीड़े रेंगनें लगे जो
सार्वजनिक शोचालय में विचरते है और चप्पल की सीमा रेखा पार कर पावों तक चढ़
आते थे। पांचू ने सार्वजनिक शोचालय से पहले ही कट ले लिया और निकल गया पास
ही डीडीए की खाली पड़ी जमीन की झाड़ियों में । यहां कम से कम वो लिजलिजे और
गिजगिजे कीड़े नहीं थे। न थी वह भयावह सड़ांध जो गांड की टट्टी भी उपर चढ़ा
देती थी। बल्कि पास ही एक बड़ी झील थी जिससे मोसम खुश्गवार बना रहता था। सभी
लोग सुबह की जंग जीत चुके थै।
पंाचू 12 पास कर आज पहली बार महाविद्यालय में जा रहा था वो बात अलग थी
कि उसके मार्क्स इतने नहीं आ पाए थे कि उसका दाखिला अच्छे महाविद्यालय में
हो जाता फिर भी खेर अब वो बाकायदा दिल्ली विश्वविद्यालय का छा़त्र बन चुका
था। विश्वविद्यालय के बारे में उसे थोड़ा बहुत ज्ञान था । ये ज्ञान उसे उसके
चाचा चौरंगी से मिला था जो कि उनके घर से विश्वविद्यालय जाने वाले पहले
सख्स का खिताब पा चुके थे वो बात अलग है कि वो लगातार तीन बार प्रथम वर्ष
भी उर्त्तीण नहीं कर पाए । चाचा चौरंगी हालांकि अपनी असफलता का ठिकरा घर की
आर्थिक स्थिति को देते रहै पर घर वाले दबी जुबान में उनकी नई नई बनी
सहेलियों पर इसका इल्जमा लगाते रहे । पर जो होना था हुआ अब चाचा चौरंगी
इतिहास का विषय हो गए है । अब पांचू जी विश्वविद्यालय पंहुच गए है पांचू
अपने चाचा चौरंगी से थोड़ा जागरूक ज्यादा है लेकिन फिर भी तितलियां उसको भी
अच्छी लगती है। पांचू को चिन्ता थी कि उसके वार्डरोब में एक भी कपड़ा
रेडीमेड नहीं है और कॉलेज में तो सभी रेडीमेड पहन कर आते है ऐसा उसको पता
था इतना भी बड़ा सुतिया नहीं था पांचू।
शाम अब होने ं को है , सूरज भी जैसे थक चुका था रोशनी देते देते अब
थोड़ा अवकाश चाहता था , पंछी भी झुण्डों में अपने गतंव्य पर पंहुच रहे है,
शाम जवान होके अब गहराना चाह रही थी । पांचू घर से थोड़ा दूर पुलिया पर
चिंतामग्न बेठा है , लगातार एक उधेड़बुन उसके मन में चल रही है। पास ही कुछ
गंजेड़ी बेठे है , गंजेड़ी बड़ी ही तल्लीनता के साथ कश पर कश मार रहे है जैसी
आत्मा का परमात्मा से मिलन करवा रहे हो । उनके द्वारा छोड़ा गया धुआं आसपास
फिजाओं में घुल रहा है । पांचू के ठीक पीछे सुअरों का एक दल अपना पसंदीदा
डिनर ढंूढ रहा है। गंजेडियों में से एक से एक पत्थर मारकर उन्हे भगा देता
है। दूसरा गंजेड़ी कहता है देखो साले सूअर इनकी भी कोई जिन्दगी है साले नाली
में मुंह मारते फिरते है। पांचू उनकी इस बात को सुन मुस्करा देता है। मन
ही मन सोचता है जैसे सालो तुम्हारी जिन्दगी बड़ी राजपाट वाली चल रही है न।
इधर वो बेठा बेठा कुछ सोच ही रहा था कि इधर उसके तीन मित्र उसकी
तन्हाई में खलल डालने आ पंहुचे । सुर्दशन , विशाल और रूप तीनो के नाम मां
बाप ने यह सोच कर रखे थे कि बच्चा नाम के अनुसार ही तरक्की करता है लेकिन
जो सुर्दशन था वो ऐसा था जेसे भगवान ने बहुत जल्दबाजी में बना दिया हो ।
विशाल नाटे कद का था इटे ंलेक्चुअल लगने के लिए जीरो नंबर का चश्मा लगाता
था लेकिन विशाल जैसा उसके शरीर में कुछ नहीं था। कमीज ऐसे लगती थी जैसे
किसी ने हंेगर पर टांग दी हो, वंही रूप का रंग ऐसा था आप उसे चमकीला काला
कह सकते हो। आते ही विशाल ने मसखरी करते हुए कहा हां भाई मंगू यहां क्यंू
बेठा है , बाकि दोनो उसके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे । मंगू ने कहा क्यंू
भाई यहां क्यां तूने रजिस्टरी करा ली है जो में यहां नहीं बेठ सकता ।
सुर्दशन बीच में मंग्गू को टोकते हुए अबे क्या हुआ क्यों इतनी हिटिंग ले
रहा है मंग्गू या पांचू जो भी आपको अच्छा लगे दोनो हैं एक ही आदमी के नाम
हैं उबल पड़ा । अबे यार बाप से बोला रूप बीच में ही टोकते हुए किससे
तिलकधारी से हां अब साले तेरे बाप से तो मांगूगा नहीं ना अगर मांग भी लिये
तो तेरा बाप देगा कंहा से लिदल अटैक के बाद से तो तेरा बाप काम पर तो गया
ही नहीं।
; ‘लिदल अटेक‘ की
कहानी भी कम रोचक नहीं रूप का बाप डालचन्द छोटी-मोटी ठेकेदारी कर घर चला
रहा था, लेकिन जिम्मेदारी ज्यादा थी और आमदनी कम सोमा जो सबसे बड़ी बेटी थी
उसकी शादी करनी थी । अशोक और बसंत स्कूल छोड़ चुके थे लेकिन अशोक गुमसुम ही
रहता था और बसंत सारी कोशिश करने के बाद भी कुछ खास कमा नहीं पाता था। इधर
डालचन्द के शोक भी कम नहीं थे शाम को जब तक एक अध्धा और खरोड़े मेन्यू में न
हो उसे चेन नहीं आता था। डाल चन्द कारीगर गजब का था लेकिन थोड़ा मूडी था
बात बात पर मातहतो को बिना बात की सलाह और उंगल करने में उसे ज्यादा ही मजा
आता था । ऐसे में मातहत भी कब तक उसकी सुनते एक दिन तंग आकर फावड़े और डंडो
से डाल चन्द की भरपूर मज्जमत कर दी और भाग लिए। डालचन्द अब आइसीयू में थे ,
अशोक और बसंत को ज्यादा उम्मीद नहीं थी बचने की उन्हे बस इस बात की चिन्ता
थी कि डालचन्द जी ने कर्जा ज्यादा कर लिया था अब चुकाना उन्हे पड़ेगा। खेर
इस अटेक से डालचन्द जी बच तो गए लेकिन काम पर फिर कभी नहीं गए। और अपने एक
कमरे के मकान के आंगन में बिछे तख्त पर जम गए और ऐसे जमे की फिर कभी काम पर
जाने का नाम नहीं लिया । सिमरिया रूप की मां अब ज्यादा नहीं बोलती अब वो
बेटो की ज्यादा सुनने लगी है।द्ध अबे हां चल ये तो बता महामहीम तिलकधारी जी
ने क्या फरमाया । मंग्गू फरमाया घदी की ़.......... कहा ऐसा है जितना हम
कर सकते थे उतना कर दिया अब हमसे ज्यादा उम्मीद नही पालना हमारे बाप ने तो
हमें पांचवी तक भी नहीं पढ़ने दिया था तुम शुक्र बनाओं की हमने तुम्हे इतना
पढ़ा दिया इतना भोत है। साला हमने हमने ऐसे कहता है जैसे कहीं का रजवाड़ा हो ।
लेकिन यार फिर...... में ये सोचता हूं कि यार वो गलत कया कह रहा है आखिर
है ही क्या हमारे पास । गांव में कोई जमीन नहीं , सारा गांव बेजमीन कोई
खेती नहीं , मजदूरी करो या ईंट के भट्टे में घुस गए तो कब निकलोगे ये पता
नहीं । कम से कम उस जलालत से तो ये शहर की गरीबी कहीं ठीक है।
अच्छा छोड़ ये बता कि दिक्कत क्या है विशाल ने पूछा पांचू के पास जवाब
तैयार था कि दिक्कत , दिक्कत क्या , दिक्कत तो यही है कि हम इस दुनियां मे
मोजूद है अगर नहीं होते तो कोई दिक्कत ही नहीं होती , किसी को भी नहीं होती
। अच्छा छोड़ ये बता आजकल बापू कुछ कर रहा है या नहीं । ये मार्के का
प्रश्न था पांचू बोला साले डेली मिलते तो हो फिर मुझसे क्यों पूछते हो ।
अरे इसका मतलब ये नहीं था सुर्दशन ने टोका मतलब ये कहना चाह रहा है कि
वो बापू ने जो पकोड़ो की दुकान खोली थी उसका क्या हुआ। हम वहीं से आ रहे है
, दुकान तो बंद पड़ी है क्या हुआ सब ठीक तो है। यार एक बात बोलू अगर आपकी
तशरीफ फटी हो तो सलामी तोप से नहीं लेनी चाहिए , मगर हमारे बापू को तो
सलामी तोप से लेने की आदत है । अब एक बात बता भई आपको पकोड़ो की दुकान खोलने
की क्या जरूरत थी , चलो खोल भी ली तो कोई बात नहीं पर बीस साल से जमे जमाए
गुप्ता जी के बगल में खोलने की क्या जरूरत थी , चलो गुप्ता जी के बराबर
में खोल भी ली तो उनसे कम्पटीशन करने की क्या जरूरत थी, गुप्ता जी जो ब्रेड
पकोड़ा पांच रूपए का बेच रहे थे बापू ने तीन रूपए का कर दिया, गुप्ता जी ने
ढाई रूपए का कर दिया इन्होने ं अपना दाम एक रूपए कर दिया, अब जो जमा पूजी
थी वो भी उसमें घुस गई और मजबूरन वो दुकान भी अब बंद कर देनी पड़ी।
सुर्दशन बोला यार ये तो वही बात हो गई आ बेल मेरी गांड में घुस , अबे
गुप्ता के बगल में जरूरत ही क्या थी दुकान खोलने की कहीं और खोल लेता , खेर
छोड अब ये बता अब बापू कर क्या रहा है। पंाचू बोला कर क्या रहा है अब बस
झुनझुना बजा रहा है । झुनझुना ........ तीनों एक साथ आश्चार्य से बोल उठे
हां झुनझुना .... क्या हुआ क्या झुनझुना बजाना कोई काम नहीं हो सकता साले
चोंक तो ऐसे रहे हो जैसे तुम्हारे बाप कहीं के क्लेकटर लगे हो।
अच्छा... अच्छा उसी ठरकी रामोतार शर्मा की कीर्तन पार्टी में विशाल ने
कहा । पांचू बोला नहीं यूएसऐ के वाईट हाउस में झुनझुना बजाने का काम मिला
है । विशाल बोला यार चल एक तो काम हुआ की बापू का काम सेट हो गया , अब यहां
वहां खाली पीली नहीं घूमना पड़ेगा बापू को । तिलकधारी का नियम था नहाने
धोने के बाद मार्क्स-लेनिन की तस्वीर के आगे अगरबत्ती जलाना फिर कुछ समय
रामायण का पाठ करना। तिलकधारी अपना पाठ खत्म कर ही रहा था कि पत्नी ने टोक
दिया क्या आज भी कही बुकिंग है तुम्हारी पार्टी की ?
तिलकधारी ने अनमने भाव से प्रतिप्रश्न किया क्यों तुम्हे क्या मतलब है
बुकिंग से ? मेंने तुम्हे कितनी बार कहा है कि पजामें से ज्यादा बाहर न
निकला करो। एक तुम ही नहीं चला रहे इस घर को, और तुम्हे ये गलतफहमी क्यों
हैं कि तुम और तुम्हारे झुनझुने से ये घर चल रहा है । पता नहीं क्या खाकर
पेदा किया तुम्हारी मां ने एक भी काम ढंग का नहीं सीखा और सीखा भी तो क्या
झुनझुना बजाना। इस झुनझुने से घर का राशन भी पूरा नहीं पड़ता है। तीन तीन
बेटियां छाती पर बेठी हुई है कुछ होश भी है तुमको। बस आ जाते हो झुनझुना
बजाकर बगल में अध्धा दबाकर। मेरे तो करम ही फूट गए है, हरामजादे खुद तो मर
गए बांध गए मुझे इस नकारा के साथ। कितनी बार कहा है कि कीर्तन में जाओं तो
चीनी-वीनी ले आया करो पता भी है कितनी मंहगी है चीनी ़..... और तुम्हे पता
भी क्यूं होगी हां तुम्हे ये तो पता होता है दारू पर कितने पैसे बढ़ गए है,
चखना कितने का आता है , कभी-कभी पनसारी की दुकान और सब्जी मार्केट भी घूम
आया करो तो पता चल जाएगा... खेर तुम क्यों जाओगे में जो हूं घर का काम भी
करू , बाजार में बेचने को लिफाफे भी बनाउ, साग सब्जी भी में ही खरीद कर
लाउं, लाटसाहब झुनझुना बजाकर आए तो उनके लिए थाली भी सजाउ।
कहते हैं रास्ते में अगर सांप खड़ा हो तो उस रास्ते जाने का दुस्साहस
नहीं करना चाहिए बल्कि रास्ता बदल लेना चाहिए, तिलकधारी ने मक्खी के छत्ते
में हाथ डाल दिया था , वो जानता था यहां वो जीत नहीं सकता सो चुपचाप पतली
गली पकड़ कर निकल लिया।
खेर ये
गलती उसकी थी भी नहीं कीर्तन में सामान का बंटवारा पार्टी प्रमुख रामोंतार
शर्मा किया करते है। अब उनके हाथ में होता है कि किसको चीनी दे , किसको
अच्छे-ताजे फल दे, किसको मेवा मिष्ठान दे और किसको सड़े-गले फल दे दे ।
तिलकधारी भी मन ही मन उन लोगो को गाली देता है जो कीर्तन में भगवान को
चढ़ाने के लिए सड़े-सड़ाए फल नारियल ले आते है। अब उसने सोच लिया आगे से वो इस
तरह का दोयम दर्जे का सामान घर पर लाएगा ही नहीं। रामोतार शर्मा का ये कम
एहसान था कि तिलकधारी को मुफलिसी के दिनो ं में अपनी कीर्तन पार्टी में
झुनझुना बजाने का काम दे दिया था।
गरीब
कोन होना चाहता है , सभी चाहते हैं कि उनका जीवन टंटावीहीन हो लेकिन लाईफ
में टंटे लगे ही रहते है, लाईफ है तो टंटे भी रहेगें ये अलग बात है किसी के
टंटे बड़े होते है किसीके छोटे। लेकिन टंटे तो होंगे ही ऐसा हो ही नहीं
सकता कि आपकी लाईफ में कोई टंटा हो ही नहीं । अगर आपकी लाईफ में कोई टंटा
नहीं है तो ये भी एक टंटा है।
जैसे
किसी की शादी हो गई है और उनकी लाईफ में कोई प्राब्लम अथवा टंटे ही नहीं
है तो ये भी एक टंटा है कि टंटा क्यूं नहीं है । लेकिन तिलकधारी की लाईफ
में तो टंटे ही टंटे थे। तिलकधारी तो खुद ही एक बड़े वाला टंटा थे तिलकधारी
जी ने जब अवतार लिया हां उन्होनें अवतार लिया था क्योंकि सब पेदा होते है
लेकिन उन्होंने ं अवतार लिया था। जब उन्होने ं अवतार लिया तो उनकी मां
चक्की पर आटा पीस रही थी, उन्हे अचानक अहसास हुआ कि कुछ तो हुआ है। उनके
पहले उनके चोदह भाई बहन और भी हुए थे ये पन्द्रहवे अवतार थे। ये अलग बात है
उनमे ं से कुछ ही जिन्दा बचे डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत के तहत
‘फिटेस्ट इज सर्वाइव‘। मां भी सर्वाइव करने की स्थिति में नहीं बची थी सो
वो भी इनके अवतार के बाद चल बसी । मासूम बालक का हाथ थामा मोसी ने।
मोसी
के कोई था नहीं सो वो इनको लेकर अपने घर दिल्ली आ गई। मोसी जब इस मासूम को
लेके दिल्ली पंहुची तो चोदहवे दिन ही मोसी की एकमात्र भेंस रहस्मय बीमारी
से मर गई । मोहल्लेवालों में चर्चा हो गई की लोंडे का पेर भारी है पेदा
होते ही मां को खा गया अब चोदहवे दिन भेंस की भी बली ले ली। लेकिन मोसी ने
तिलकधारी को छोड़ा नहीं और सार्मथ्य के अनुसार उसकी परवरिश की। पड़ोस के
मंदिर के पण्डित जी ने मोसी को हवन करवाने की सलाह दी मोसी के पास मोसा जी
की दी हुई कानों की झुमकी एकमात्र संपत्ति बची थी वो कजोड़ लाला के पास
गिरवी रखी गई और हवन कराया गया। जाते-जाते पण्डित जी ने मोसी को कहा कि
बालक पर कई ग्रह भारी है इसके बचाव के लिए रोज सुबह नहलाकर इसको तिलक लगाना
न भूलना, मोसी जब तक जिन्दा रही वो इस काम को बिना नागा करती रही । मोसी
के बाद ऐसा नहीं है कि मोसी ने तिलकधारी को पढ़ाने लिखाने की कोशिश नहीं की ।
उन्होने ं पास के ही खेराती स्कूल में तिलकधारी का नाम लिखा दिया था ।
लेकिन तिलकधारी को गुल्ली डंडा और लट्टू नचाने में विशेष मजा आता था
पांचू
के कुछ दोस्त जो उससे एक दो साल बढ़ े थे पहले ही कालेज में प्रवेश पा चुके
थे इस चिंता का समाधान भी उसने ढूंढ लिया था लाल किले का मशहूर चौर बाजार
उसके और उसके दोस्तों केरेक्टर तिलकधारी: एक नंबर का दारूबाज , कामचोर
मक्कार बस चले तो काम पर जाए ही नहीं पांचू: लोंडियाबाज पर कोई सेटिंग होती
ही नहीं गूगल: सारे मोहल्ले की लड़कियों और आंटियों की जन्मकुण्डली उसके
पास हैं लवगुरू लल्लन: सेटिंग कराने में माहिर एक से एक नए आइडियाज सुनिल:
पांचू का दोस्त है सारे उल्टे काम करता है जैसे सट्टा, कपल रेस्टोरे ंट में
हाथ आजमाता है। रेस्टोरे ंट खोलता है ।
छोटूः मुहल्ले का मुफत का कर्मचारी
वो पगली
वो पगली जो स्टैशन पर अचानक
धमक पड़ती थी
कोई नहीं जानता
कहां की थी वो कोई अपना था भी या नहीं धूप में जलकर ताम्र हुआ बदन
बाल उसकी जिदंगी की तरह उलझे हुए
कभी यहां तो कभी वहां दिखाई पड़ना उसकी नियति थी
कुछ मिला तो खा लिया
नहीं मिला तो उसका करम
सांप से विशष्े ा डरती थी
अचानक नींदो से जाग सांप सांप चिल्लाती
रात को जो सोई जगी नहीं बगल में नवजात भी था
आसमां को ताकता
साले
बिहारियों के देख कितने मजे है , केम्पस में सालों को हास्टल मिल जाता है
रहने को हमे देख साला कमरा न होने की वजह से कितनी प्रेमिकाए बिना कुछ किए
चली गई । इनको देखो साले बन्दी पटाते है हास्टल में बजाते है।
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