वीरेन्द्र बहादुर सिंह -
भारतीय
रंगमंच का इतिहास अनेक कलाकारों की दिग्विजयी यात्रा का साक्षी रहा है
लेकिन यह विडम्बना है कि जवानी के दिनों में नागर और लोक मंच पर अपनी
प्रतिभा से हजारों दर्शकों को चमत्कृत कर देने वाले अधिकांश कलाकारों की
सांध्य बेला अर्थाभाव और लगभग गुमनामी में बीत जाती है। प्रख्यात रंगकर्मी
हबीब तनवीर के सानिध्य में अपनी कला प्रतिभा को परिमार्जित कर उसे
विश्वस्तरीय मंचों पर स्थापित कर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करने वाले भी दीपक
विराट की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी। अपना लगभग समूचा जीवन कला मंचों को
समर्पित करने वाले श्री दीपक विराट पिछले कुछ वर्षों से पक्षापात से पीडि़त
थे। अर्थाभाव और बीमारी से संघर्ष करते हुए जैसे-तैसे वे अपनी पत्नी और
ख्यात लोककलाकार एवं गायिका श्रीमती पूनम विराट के साथ जिंदगी की गाड़ी को
खींच रहे थे। लगभग दो वर्ष पूर्व उन्हें प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी
अवार्ड (पुरस्कार) से नवाजा गया था।
लोग महीने दो महीने से रोज लोगों को चरणदास चोर व
हवलदार का रोल करते देख रहे थे और हवलदार और चरणदास चोर का अभ्यास मेरे घर
की छत में कभी-कभी हम लोग कर लेते थे। दीपक विराट ने चरणदास किया।
इस
तरह नये चरणदास चोर ने जब कलकत्ता में अपना पहला शो किया और लोगों ने दीपक
की एक्टिंग को वहाँ कबूल कर लिया। फिर तो दीपक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसके पूर्व कलकत्ता में चरणदास चोर यानी गोविंदराम
निर्मलकर ही लोगों की धारणा में बसे हुए थे। गोविन्दराम की चोर की छवि
लोगों के दिलों में गहरे पैठ गई थी। कलकत्ता के दर्शक बिना गोविन्दराम के,
हबीब तनवीर कैसे चरणदास चोर कर पाते हैं ? देखने बड़ी तादाद में पहुँचे थे ।
जितनी पब्लिक हाल में थी उससे दुगनी बाहर थी। अपने पहले शो में ही दीपक
ने कलकत्ता के दर्शकों का दिल जीत लिया। दीपक विराट कलकत्ता के शो के अंतरराष्ट्रीय
ख्याति प्राप्त रंगकर्मी हबीब तनवीर के नया थियेटर से एक-एक कर जब सभी बड़े
अभिनेता विविध कारणों से विदा लेे रहे थे तब नया थियेटर की मशाल को दीपक
विराट ने अपने हाथों में थामा था।
रायपुर के वरिष्ठ
रंगकर्मी और दीपक विराट के अभिन्न मित्र योग मिश्र बताते हैं कि चरणदास चोर
को मंच पर जीवंत करने वाले दिग्गज अभिनेता गोविन्दराम निर्मलकर जी नया
थियेटर छोड़कर जा चुके थे। विख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर साहब को कलकत्ता
में शो करना था। वे नया चरणदास तलाश कर रहे थे। रायपुर शहर के बहुत से
अभिनेताओं को वे आजमा चुके थे। एक दिन हबीब साहब हम लोगों की तरफ अपनी पाईप
से खेलते हुए आये। रविशंकर विश्वविद्यालय स्टेडियम में मैं और दीपक साथ
गैलरी में ही बैठे थे। उन्होंने अपनी पाईप के इशारे से दीपक को कहा- "तुम
चरणदास करो तो जरा?" हमबाद
रंगमंच का स्टार बन गया था। एक ऐसा स्टार जिसका रंगमंच में नाम बढ़ने लगा
था पर नामा कभी नहीं बढ़ा।
समीक्षकों के अनुसार नाट्य
मंच पर दीपक विराट की हर अदा निराली होती थी। वे पात्र को आत्मसात कर जाने
में प्रवीण थे। वे न केवल भाव प्रणव अभिनेता थे बल्कि उनके स्वर में गजब
का आकर्षण, आवाज में सम्मोहन और शरीर में गजब की लचक थी। उनकी यही खासियत
उनके विश्व स्तरीय अभिनेता होने का अकाट्य प्रमाण था।
दीपक विराट के पहले हबीब तनवीर के चरणदास चोर के मुख्य पात्र का अभिनय प्रख्यात अभिनेता लालू राम, मदन निषाद और पद्मश्री गोविंदराम निर्मलकर ने किया था। इनमें लालू राम ने प्रसिद्व रंगकर्मी श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी फिल्म चरण दास चोर में भी मुख्य पात्र की भूमिका निभायी थी। श्री विराट ने चरणदास चोर को बरसों मंच पर जीवंत किया। इस क्रम में दीपक विराट हबीब तनवीर के चौथे चरणदास चोर के रूप में मंच पर उतरे और अपनी नैसर्गिक अभिनय क्षमता के बल पर कई बार अपने पूर्ववर्तियों को भी पीछे छोड़ गए। यह सुखद संयोग है कि हबीब तनवीर के चरणदास चोर नाटक में अभिनय करने वाले चारों शीर्ष अभिनेता राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) के थे। बाद में चैतराम यादव और ओंकारदास मानिकपुरी ने भी नया थियेटर के मंच से चरणदास चोर के मुख्य पात्र की भूमिका को साकार किया।
नया थियेटर ग्रुप में अपने लगभग दो
दशक के जुड़ाव के दौरान दीपक विराट ने हबीब तनवीर के अन्य प्रमुख नाटक लाला
शोहरत राय, मिट्टी की गाड़ी, आगरा बाजार, कामदेव का अपना बसंत ऋतु का
सपना, देख रहे हैं नैन, हिरमा की अमर कहानी, जमादारिन, बहादुर कलारिन और
गांव का नाम ससुराल मोर नांव दामाद में भी मुख्य पात्र का अभिनय करते हुए
अपनी छाप छोड़ी।
अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त
अभिनेता दीपक विराट का चयन अखिल भारतीय संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार 2017
के लिए मणिपुर के इंफाल में जून 2018 में आयोजित जूरी की बैठक में किया
गया। उन्हें अभिनय के क्षेत्र में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार देने की घोषणा की
गई। उल्लेखनीय है कि अकादमी द्वारा हर साल रंगमंच के क्षेत्र में यह
सम्मान दिया जाता है। अभिनय के क्षेत्र में पूरे देश में सिर्फ 8 लोगों को
यह सम्मान दिया गया था। दीपक विराट को अभिनय के क्षेत्र में अकादमी
पुरस्कार मिलना उनकी सुदीर्घ कलायात्रा का सम्मान था । छह फरवरी 2019 को
नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में महामहिम राष्टपति भी रामनाथ कोविंद ने
विलक्षत्र अभिनय क्षमता और थियेटर में अभिनय कला में अप्रतिम योगदान के लिए
दीपक विराट को जब 2017 का संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया और
उसे ग्रहण करने के लिए गंभीर रूप से अस्वस्थ श्री विराट जब व्हील चेयर पर
आये तो समूचा सभागृह करतल ध्वनियों से गूंज उठा था । लंबे समय से बीमार
परंतु जीजीविषा से लबरेज भी विराट को व्हील चेयर पर देखकर राष्टपति
प्रोटोकाल को तोड़कर अपने स्थान से उठकर आये और इस कला साक्षक को सम्मानित
किया। इस गौरवपूर्ण क्षण में श्री विराट की आंखें खुशी से छलक उठी, लेकिन
ये अभिनय नहीं वास्तविक ,खुशी के आंसू थे।
रंगमंचों
में दीपक विराट के नाम से सुपरिचित इस कलाकार का वास्तविक नाम दीपक तिवारी
था । उनका जन्म 29 अक्टूबर 1959 को दुर्ग जिले के ग्राम मोहलाई में हुआ।
उन्होंने बीए प्रथम वर्ष तक की शिक्षा प्राप्त की। भी तिवारी ने अपनी
कलायात्रा की शुरूआत तरंगिभी सांस्कृतिक संस्था बिलासपुर के साथ गायक के
रूप में की। बाद में उनका रूझान अभिनय की ओर हुआ। संस्कृत नाटक ‘स्वप्र
वासवदत्ता’ में अपने छात्रा जीवन में अभिनय करने वाले भी विराट ने दहेज
प्रथा पर आधारित एक नाटक में बूढ़े व्यक्ति के पात्र का अभिनय कर अपनी
अभिनय यात्रा शुरू की थी। श्री विराट ने रेखा वर्मा के निर्देशन में
‘परमात्मा का कुत्ता’, विमल मुखर्जी के निर्देशन में ‘तुगलक’, अलखनंदन
द्वारा निर्देशित ‘बकरी’ और मनहर चौहान के साथ ‘कसाईबाड़ा’ नाटकों में
अभिनय कर अपनी प्रतिभा को और परिमार्जित किया।
सन्
1981 में जनसंपर्क विभाग में सहायक फोटोग्राफर के पद पर उनकी नौकरी लगी।
रायपुर (छत्तीसगढ़) में नौकरी के दौरान उनकी मुलाकात सुपरिचित रंगकर्मी
मिर्जा मसूद के साथ हुई। उन्होंने उनके साथ ‘जुलूस’ और ‘आदमी’ नामक नुक्कड़
नाटक में काम किया। नौकरी करने के साथ-साथ वे इप्टा से भी जुड़ गये और
जलील रिजवी द्वारा निर्देशित ‘एक और द्रोणाचार्य’, नीलम मेधानी द्वारा
निर्देशित ‘मिस पाटला पासा’, प्रदीप चटर्जी द्वारा निर्देशित ‘आषाढ़ का एक
दिन’ एवं ‘काकनगरी’ नामक नाटकों में अपनी अभिनय प्रतिभा का जौहर दिखाया।
अपने रायपुर प्रवास के दौरान भी विराट ने छोटे-बड़े 50 से ज्यादा नाटकों
में अभिनय किया।
विराट 1984 में प्रख्यात रंगकर्मी
हबीब तनवीर के संपर्क में आये और उनके नया थियेटर ग्रुप के साथ जुडक़र उनके
लगभग सभी नाटकों में अभिनय कर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। भारत
महोत्सव के अंतर्गत 1986 में उन्हें हबीब तनवीर के नया थियेटर ग्रुप के साथ
मास्को (रूस) और स्वीडन जाने का अवसर प्राप्त हुआ। छत्तीसगढ़ की लोक कला
को विदेशी धरती में काफी सम्मान मिला। स्वीडन और रूस में छत्तीसगढ़ी लोक
कला और संस्कृति का परचम लहरा कर जब वे वापस रायपुर लौटे, जब तक जनसंपर्क
विभाग की उनकी नौकरी छिन गयी थी।
नौकरी से हाथ धोने के बाद श्री विराट ने मुंबई जाकर अपने लिए संभावनाएं तलाशी लेकिन महज आश्वासन के सिवा कुछ न मिला। 1995 में उन्होंने जब पुन: प्रयास किया तब उन्हें कल्पना लाजमी द्वारा निर्देशित कला फिल्म ‘दरमियां’ में अभिनय करने का अवसर मिला। उन्होंने टीवी सीरियल फर्ज, ये शादी नहीं हो सकती, बाम्बे ब्लू, नया दौर, राजा रेंचो और हादसा में भी अभिनय किया। मुंबई प्रवास के दौरान उन्होंने विभा मिश्रा निर्देशित टलीफिल्म ‘फरार’ में भी काम किया। सन् 2000 में जब भी हबीब तनवीर ने भोपाल में रहकर पुन: अपना गु्प शुरू किया तो उन्होंने न जाने क्यों दीपक विराट और उनकी पत्नी पूनम विराट को आमंत्रिात नहीं किया। स्वाभिमानी दीपक विराट ने भी अपनी ओर से कोई पहल नहीं की।
आर्थिक परिस्थितियों से जूझते हुए अनत: दीपक विराट ने अपनी रंगकर्मी पत्नी और छत्तीसगढ़ शासन द्वारा दाऊ मंदराजी सम्मान से सम्मानित श्रीमती पूनम विराट के साथ मिलकर राजनांदगांव में ‘रंग छत्तीसा’ नामक ग्रुप का निर्माण किया। ‘रंग छत्तीसा ने धीरे-धीरे’ छत्तीसगढ़ में अपनी पहचान बना ली और छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों में उसका सफलतापूर्व प्रदर्शन भी शुरू हो गया था लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। रंग छत्तीसा के गठन के कुछ ही समय बाद 2008 मेंं श्री विराट को पक्षाघात हुआ और मंच का सिरमौर यह कलाकार अब केवल एक पलंग में सिमटकर रह गया था। उनकी पत्नी श्रीमती पूनम विराट ने पूरे हौसले के साथ परिस्थितियों का मुकाबला किया और बाद में उनके बच्चे भी इस ग्रुप को संभालने में लग गये। छत्तीसगढ़ में रंग छत्तीसा आज भी अपनी मौलिक प्रस्तुति देने के लिए विख्यात है।
नौकरी से हाथ धोने के बाद श्री विराट ने मुंबई जाकर अपने लिए संभावनाएं तलाशी लेकिन महज आश्वासन के सिवा कुछ न मिला। 1995 में उन्होंने जब पुन: प्रयास किया तब उन्हें कल्पना लाजमी द्वारा निर्देशित कला फिल्म ‘दरमियां’ में अभिनय करने का अवसर मिला। उन्होंने टीवी सीरियल फर्ज, ये शादी नहीं हो सकती, बाम्बे ब्लू, नया दौर, राजा रेंचो और हादसा में भी अभिनय किया। मुंबई प्रवास के दौरान उन्होंने विभा मिश्रा निर्देशित टलीफिल्म ‘फरार’ में भी काम किया। सन् 2000 में जब भी हबीब तनवीर ने भोपाल में रहकर पुन: अपना गु्प शुरू किया तो उन्होंने न जाने क्यों दीपक विराट और उनकी पत्नी पूनम विराट को आमंत्रिात नहीं किया। स्वाभिमानी दीपक विराट ने भी अपनी ओर से कोई पहल नहीं की।
आर्थिक परिस्थितियों से जूझते हुए अनत: दीपक विराट ने अपनी रंगकर्मी पत्नी और छत्तीसगढ़ शासन द्वारा दाऊ मंदराजी सम्मान से सम्मानित श्रीमती पूनम विराट के साथ मिलकर राजनांदगांव में ‘रंग छत्तीसा’ नामक ग्रुप का निर्माण किया। ‘रंग छत्तीसा ने धीरे-धीरे’ छत्तीसगढ़ में अपनी पहचान बना ली और छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों में उसका सफलतापूर्व प्रदर्शन भी शुरू हो गया था लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। रंग छत्तीसा के गठन के कुछ ही समय बाद 2008 मेंं श्री विराट को पक्षाघात हुआ और मंच का सिरमौर यह कलाकार अब केवल एक पलंग में सिमटकर रह गया था। उनकी पत्नी श्रीमती पूनम विराट ने पूरे हौसले के साथ परिस्थितियों का मुकाबला किया और बाद में उनके बच्चे भी इस ग्रुप को संभालने में लग गये। छत्तीसगढ़ में रंग छत्तीसा आज भी अपनी मौलिक प्रस्तुति देने के लिए विख्यात है।
बहरहाल जीवन की
सांध्य बेला में भी दीपक विराट को प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
मिलना उनकी कला साधना का सम्मान था परंतु यह पुरस्कार उन्हें डेढ़ दशक पहले
तब मिल जाना था, जब वे अपने अभिनय के शीर्ष पर थे। श्री विराट का 9 अप्रैल
2021 को राजनांदगांव निधन हो गया।
4/5 बल्देव बाग, वार्ड नं. 16
बालभारती स्कूल के पीछे, राजनांदगांव
मो. 94077-60700
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