जसवीर त्यागी
मित्र के चले जाने के बाद
मैं उसके घर गया
मिला उसके परिवार से
देखते ही मुझे
किसी फव्वारे से फूट पड़े वे
मेरे अंदर रह - रहकर
घुमड़ता रहा बादलों - सा कुछ
लेकिन! बरस नहीं सका
मित्र की पत्नी को
मैं कुछ कह न पाया
उसके बच्चों से आँख न मिला सका
आने - जाने वाले
दुनियादारी के व्यावहारिक वाक्यों से
पोंछते रहे उनके आँसू।
होनी को कौन टाल सकता है?
समय ही बलवान है
सभी को जाना है देर - सबेर
जरूरत हो तो
याद कीजिएगा जरूर
हम सब हैं
मैं खामोशी के कुएँ में फसा खड़ा रहा
मृत्यु पर क्या कहा - सुना जाये?
बस यही सोचता रहा।
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