रविशंकर पाण्डेय
बड़े दिनों के बाद खिली बगिया
महका आंगन बहका मन का कोना
बड़े दिनों के बाद बही पुरवाई
ले अंगड़ाई छूकर रूप सलोना
बड़े दिनों के बाद कुकी कोयल
बैठी डाली छिपकर सुंदर पात
बड़े दिनों के बाद महकी अलसी
बहकी कलसी पाकर फगुनाहट वात
बड़े दिनों के बाद खिला महुआ
बौराया आम मधुमय हुआ पराग
बड़े दिनों के बाद फुला सेमल
हँसा पलाश होकर सरस सराग
बड़े दिनों के बाद लहराया गेंहू
फूला मटर श्वेत बैगनी - नीला
बड़े दिनों के बाद खिला सरसों
मधुरस लेकर सुंदर पीला -पीला
बड़े दिनों के बाद चहका गुंजन
महका आंगन बहका मन का कोना
बड़े दिनों के बाद जागा राग भाया फाग
सब कुछ लगा सलोना।
रंका बौलिया,गढ़वा (झारखण्ड )
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