इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

बड़े दिनों के बाद

रविशंकर पाण्डेय

बड़े दिनों के बाद खिली बगिया
महका आंगन बहका मन का कोना
बड़े दिनों के बाद बही पुरवाई
ले अंगड़ाई छूकर रूप सलोना
बड़े दिनों के बाद कुकी कोयल
बैठी डाली छिपकर सुंदर पात
बड़े दिनों के बाद महकी अलसी
बहकी कलसी पाकर फगुनाहट वात
बड़े दिनों के बाद खिला महुआ
बौराया आम मधुमय हुआ पराग
बड़े दिनों के बाद फुला सेमल
हँसा पलाश होकर सरस सराग
बड़े दिनों के बाद लहराया गेंहू
फूला मटर श्वेत बैगनी - नीला
बड़े दिनों के बाद खिला सरसों
मधुरस लेकर सुंदर पीला -पीला
बड़े दिनों के बाद चहका गुंजन
महका आंगन बहका मन का कोना
बड़े दिनों के बाद जागा राग भाया फाग
सब कुछ लगा सलोना।


रंका बौलिया,गढ़वा (झारखण्ड )

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