सुरेन्द्र कुमार
मुर्दे ने मिट्टी से कहा, मैं मिट्टी का पुतला हूं,
छोटी सी संसार थी मेरी,मैं जिससे अब उजड़ा हूं।
जीवन भर नफ़रत में जला था,अब मैं तेरी गोद जलूँ,
वैर - द्वेष तन मन में पला था,मैं मिट्टी था मिट्टी में मिलूँ।
तिनका तिनका तन धन खातिर,जीवन भर मैं भटका हूं,
जब टूट गया सांसों का तार,आज अर्थी में मैं लटका हूं।
मैं अपना - अपना कहता था,तब जीवन सारा अपना था,
तन मन धन सारा छोड़ चला,जो जीवन देखा सपना था।
मुर्दे ने मिट्टी से कहा मैं मिट्टी का पुतला हूं,
वस्त्र बदल कर प्राणों का,मैं मिट्टी में मिलने आया हूं।
मैं सृष्टि का कठपुतला था,जो खेल दिखाने आया था,
जीवन के इन अल्पकाल में, किरदार निभाने आया था।
मौत मिला जब जीवन में, तब सत्य बताने आया हूं,
कर्म किया क्या मैंने जीवन,अब अन्त दिखाने आया हूं।
ईमान,सादगी,जीवन जी ले, फर्ज निभाने आया हूं,
प्राण मिला है मिट जाएगा, शमशान दिखाने लाया हूं।
औरंगाबाद (बिहार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें