हरिकिशोर गोस्वामी
जीवन बड़ा विराट है,जीवन एक प्रवाह।
ज्ञान,ध्यान,सत्कर्मों का,विस्तृत सिन्धु अथाह।।
स्वार्थ में सब मिट गया, विद्या,विनय,विवेक।
दृष्टि बाधित,शेष अब, हिंसा का अतिरेक।।
कोलाहल का दौर है,तर्क शून्य संवाद।
सत्य समाया गर्त में, हर निर्णय अपवाद।।
मत पंथों के भंवर में,धर्म खड़ा है मौन।
सबकी ओर निहारता, रक्षक है अब कौन ?
ह्रदय में एक आग है, ह्रदय में संताप।
हमने सब कुछ खो दिया,गौरव और प्रताप।।
धर्म ध्वजा जब तक रहे, लहराती हर ओर।
तब तक ही अस्तित्व है, सुदृढ़ जीवन डोर।।
मन्त्र निरुत्तर हो गए,शब्द हुए निःसार।
अर्थहीन इस जगत का, ये कैसा विस्तार?
मनुर्भव आदेश है, यह नैतिक सन्देश।
मानव से मानव कभी,करना नहीं विभेद।।
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