पूर्णिमा सहारा
वे एहसास
जो दबे पाँव
चुपके - चुपके
आ जाते हैं
दिल के भीतर
बहुत शोर करते हैं,
मचाते हैं उत्पात
लड़ते रहते हैं
पूर्वग्रहों,
आदर्शों,
संस्कारों,
नैतिकता- अनैतिकता से
करते हैं ह्रदय में
तोड़ -फोड़
और किसी रोज़
निकल भागते हैं
सौंपकर
एक काम
टूटी फूटी किर्चों को
चुनने का
समेटने का
हर समय
हर पल
उम्र भरण ...
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