जय प्रकाश भाटिया’ सागर’
गुड़गुड़ करते हुक्का जब दे मूॅंछों पे ताव ,
संसद जमती चौपालें चलो हमारे गाँव ।
पनघट करती बतकहियाँ छम छम करते पाँंव ,
यह सब जो हो देखना चलो हमारे गाँव ।
पूरी होती मनौती भोपा लेते भाँव,
इच्छाएं मत रोकना चलो हमारे गाँव ।
सोना निपजाती धरा बैल चड़स अर लाव,
प्रकृति संग जीना हो तो चलो हमारे गाँव।
हिलमिल रहते है सभी करते नहीं दुराव,
मेलजोल जो देखना चलो हमारे गाँव ।
बिरजीस अचकन जूतियां, माथे पे सरपाव,
बन्ना जी को देखना चलों हमारे गाँव ।
ताल सरोवर व नदियां पीपल देते छाँव,
लेना हो आनन्द तो चलो हमारे गाँव ।
मल्हम मलते ये सदा देते नहीं घाव ,
दिल कोमल सबके यहां चलो हमारे गाँव।
घरण घरण घट्टी चले चप्पू चलते नाव,
गूंजे अलगोझे यहां चलो हमारे गाँव ।
कोयल मीठा बोलती कौवे करते कांव
कड़वे खारे हैं सभी चलो हमारे गाँव ।
कुरान और रामायण सबकी तरफ झुकाव
आके परखो देवता चलो हमारे गाँव।
दिल का रकबा बहुत है चून भले ना पाव ,
अतिथि है भगवान यहां चलो हमारे गाँव।
संसद जमती चौपालें चलो हमारे गाँव ।
पनघट करती बतकहियाँ छम छम करते पाँंव ,
यह सब जो हो देखना चलो हमारे गाँव ।
पूरी होती मनौती भोपा लेते भाँव,
इच्छाएं मत रोकना चलो हमारे गाँव ।
सोना निपजाती धरा बैल चड़स अर लाव,
प्रकृति संग जीना हो तो चलो हमारे गाँव।
हिलमिल रहते है सभी करते नहीं दुराव,
मेलजोल जो देखना चलो हमारे गाँव ।
बिरजीस अचकन जूतियां, माथे पे सरपाव,
बन्ना जी को देखना चलों हमारे गाँव ।
ताल सरोवर व नदियां पीपल देते छाँव,
लेना हो आनन्द तो चलो हमारे गाँव ।
मल्हम मलते ये सदा देते नहीं घाव ,
दिल कोमल सबके यहां चलो हमारे गाँव।
घरण घरण घट्टी चले चप्पू चलते नाव,
गूंजे अलगोझे यहां चलो हमारे गाँव ।
कोयल मीठा बोलती कौवे करते कांव
कड़वे खारे हैं सभी चलो हमारे गाँव ।
कुरान और रामायण सबकी तरफ झुकाव
आके परखो देवता चलो हमारे गाँव।
दिल का रकबा बहुत है चून भले ना पाव ,
अतिथि है भगवान यहां चलो हमारे गाँव।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें