जया वैष्णव
स्वयंवर से भूमि में समाने तक का सफ़र
क्या इतना आसान रहा होगा
स्वयं जगतमाता होते हुवे भी
कितने कष्टों को सहना पड़ा होगा
जनकदुलारी सीता का भाग्य
त्रिलोकी श्री राम भी ना बदल पाए
वन वन भटकी सिया माता
राजभवन का सुख कभी ना पाया
वन में रहना क्या कम था दुखदाई
जो रावण हरण कर लंका के आया
श्री राम के वियोग में मैया ने
नींद, चैन और सोने की लंका का राजपाट तक ठुकराया
अश्रु बहे दिन रात वैदेही के
तिनके से स्वयं की इज्जत को बचाया
जब दहन किया श्री राम ने रावण का
तो अग्नि परीक्षा को भी अपनाया
थोड़ा बहुत सुख जब आया रानी सीता के भाग्य में
अयोध्या वालों ने मिथ्या ही लांछन लगाया
निर्दोष होते हुवे भी जनकसुता ने
वन में जाने का मार्ग फिर अपनाया
वाल्मीकि ने वन देवी को बेटी बनाया
जीवन संघर्षों के बीच सुता ने
लव और कुश को जन्माया
कठिन रहा एक रानी का पूरा सफ़र
अंत में भी प्रमाण जब मांगा गया
थक हार कर सीता माता ने
धरती माता का आवाह्न किया
संपूर्ण जीवन अपहरण,वियोग,अग्निपरीक्षा,
,लांछन ओर वनवासी की तरह बिताया
क्या बीती होगी वैदेही पर
जिसके पिता स्वयं जनकराज थे
और पति जिसका तीनों लोकों के स्वामी थे
वह भी उसकी किस्मत को
चाहकर भी बदल ना पाए
जया वैष्णव
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