इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

चट्टानों पर बैठकर


व्ही. व्ही. रमणा "किरण"

पानी की आवाजों को जेहन उतारना
सूखे पत्तों पर चलते हुए चुपचाप रहना
तने को काटते हुए सिर्फ़ देखते रहना
बार बार सूखी नदी में नदी को नहाते हुए महसूस करना
अब उनके आदतें हैं
उनका कहना है नदी तो नदी होता है
बहते पानी को कहीं भी महसूस कर लेगें
रूके हुए पानी के पास बैठकर भी
पानी को महसूस करने जाये क्यों
सरयू के तट पर...
वो और लोग होतें हैं
जिन्हें आम नींबू बेर में भी
नारी की काया दिखती है
अब ये सरयू के तट जायेंगे ही क्यों?
भैय्या जी कि बात अलग है
सड़क पर तितली को मरे देखते हैं तो
विचलित हो जाते हैं
पर उनको
आज के रावण के साथ
अभी कुछ दिन और बैठकर कविताएँ लिखना है सुनना सुनाना है कविताएं
संवेदना की कविताएं
सरयू के जलतरंग को महसूसने
वे भी नहीं जायेंगे सरयू के तट पर...
अब कौन लोग हैं
जाते हैं सरयू के तट पर
देव दनाव किन्नर सतयुग में जा चुके हैं
सरयू के तट पर
आदमी वहाँ वास करते थे सतयुग मे
बात कलयुग का है
आज कौन जायेगा कौन नहीं जायेगा सरयू के तट पर
राजनीति हलकों में बातचीत चिलचिपो जारी है
पर विश्व के बच्चे जाना चाहते हैं
देखना चाहते हैं
महसूस करना चाहते हैं
सरयू के तट को
अपने दोस्त को
सरयू को तट पर
अपने दोस्त से मिलने
दोस्त के आराध्य को देखने
अपने दोस्त के आराध्य को महसूस करने
बहुत सारे बच्चे दुनिया भर के बच्चे
जो ख़ुद में बचपना महसूस करते हैं
वे पहुँच रहे हैं सरयू के तट पर...
सबको प्यारा होता है माँ का आंचल
माँ का गोद
माँ के हाथों का खाना
अपने दोस्तों के साथ खेलना
पिता के बातों को मानना
माताओं के चारों तरफ़ दौड़ना
सबको अच्छा लगता है बचपने को याद करना याद रखना
मैं जा रहा हूँ सरयू के तट पर
आओ बच्चों सरयू के तट पर...
व्ही. व्ही. रमणा "किरण"
बिलासपुर छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें