सपनों का प्रयास से मेल कर
स्वयं को और दृढ़ बनाएँगे अंधेरा छोड़ कर उजाला पाएंगे।
प्रतिकूलता में भी नहीं रूककर
अपने पराक्रम से देंगे हम उत्
दुख-अवसाद के ये क्षण भी बीतें
जीवन के हर संग्राम में हम जीतें
बल बनाकर आती विपदाओं को
पूरा करेंगे अपनी तमन्नाओं को
परिस्थितियों से चाह प्रबल होगी
तब हमारी तपस्या सफल होगी। जीवन के रण नित लड़ा करेंगे टूटे मन को फिर से खड़ा करेंगे जो भी विघ्न हमारे समक्ष आएंगे इनको भी हम हौंसला दिखाएंगे।
पीड़ाओं का लेकर यह वरदान
बनाएँगे स्वयं की हम पहचान
सारे संकटों को सर्वदा हराएंगे
अपनी जय का उत्सव मनाएंगे। जुनून में ढालकर प्रयास को सच्चाई बना देंगे विश्वास को पुरुषार्थ के गीत अनेक गाएँगे मंज़िलों को कदमों तक लाएँगे।
निराशा में हो क्षण भी बर्बाद
बीते हुए की सताएगी क्याद नहीं
प्रतिकार करेंगे संघर्ष की पुका
जवाब देंगे चुनौती की ललकार का
रोने से क्या होगा
अकर्मण्यता काल समाप्त हुआ मिटी अँधियारे की भी परछाई पाकर अवलंबन आकाश का प्रभात ने ओढ़ ली है तरुणाई।
सुषुप्त मनों जो जाग्रत करती
पहली किरण भूमि पर पड़ी
नए दिन का हुआ नया आरंभ
आ गयी कर्मरत होने की घड़ी। हो निश्चेष्ट मींचकर नयनों को व्यर्थ ही ऐसे सोने से क्या होगा? आँसू पोंछ डालो अपने हाथों से आखिर यूं रोने से क्या होगा?
समय तुरंग होता तीव्रगामी
करता नहीं किसी का इंतज़ार
उस तुरंग के साथ है चलना
अत: बैठ मत पथ में थक-हार। प्रत्येक मानव का अपना संघर्ष होती है कष्टों की अपनी कहानी अपनी स्थिति न दुर्लभ समझ तू उन्हें पाने वाला तू न पहला प्राणी।
जब समर में धर दिये हैं पग
फिर दुर्बल होने से क्या होगा?
प्रलाप से दया मिले, जय नहीं
आखिर यूं रोने से क्या होगा? दिशा का ज्ञान हुआ करता तभी ठोकर लगती जब कोई एकाध लड़खड़ा कर गिरने में दोष नहीं किन्तु न उठ पाने में है अपराध।
जब पथ पर भरे हुए हो कंटक
तो कोई और विकल्प क्या शेष है?
जीवन संग्राम जब जाता है लड़ा
तो सहने पड़ते अनेक क्लेश है। जो सुख-चैन फिसलते रेत जैसे तो थोड़ा और खोने से क्या होगा? जो बीत गयी सो बात गयी आखिर अब यूं रोने से क्या होगा?
kshitijjain415@gmail.com
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