मुट्ठी में आक्रोश
उसने
घड़ी देखी। आफिस बंद हो चुका था। सारे स्टाफ जा चुके थे। वह भी उठने ही
वाला था कि ..बॉस का काल....। पिऊन आवाज देकर जा चुका था।
आखिर बात
क्या है ? ऑफिस बंद होने पर कभी बॉस ने बुलाया नहीं। वैसे भी उसका कार्य
निष्पादन इतना परफेक्ट होता है कि बॉस को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती ।
बह सोचते-सोचते बॉस के सामने था।
-' परेश जी, आप आ गये। आज आप को एक
कष्ट दे रहा हूं। संकोच हो रहा है......क्या कहूँ ? आज मेरा ड्राइवर नहीं
आया है और यह बुजुर्ग पिऊन ठीक से चल भी नहीं पाता। मेरे लिए ...दो सिगरेट
ले आइए प्लीज...यहीं बगल से।'
परेश को बुरा लगा फिर भी बॉस का विनम्र अनुरोध था, कैसे टाल देता!
-' कोई बात नहीं सर। मैं अभी लाया ।'
सिगरेट पाकर बास 'थैंक यू' का जैसे वह माला जपने लगा।
दो दिनों बाद....फिर वही समय....बॉस का वैसा ही काल।
अन्यमनस्क सा परेश केबिन में दाखिल हुआ। इस बार बास के भाव-भंगिमा में अंतर था।
-' परेश जी, ये लीजिए पैसे , दो सिगरेट ले आइये। '
सिगरेट होठों के बीच दबा कर बॉस ने जाने क्या कहा .....परेश को लगा, बॉस ने थैंक्स कहा है।
अगले दिन फिर वही समय....वही काल.....
-' दो सिगरेट लाना....जरा जल्दी ...मीटिंग शुरू होने वाली है।'
यह
बॉस का आदेश था। आदेशात्मक लहजे ने परेश के तापमान को जैसे उफान बिन्दु पर
पहुँचा दिया। लेकिन अगले ही पल वह ठण्डा भी हो गया। उसकी कसी हुईँ
मुट्ठियाँ ढीली हो गईं। बीवी-बच्चों के चेहरे नजर के सामने नाचने लगे ।
द बिगनिंग
ग्यारह
बजते ही उसने टीवी आफ कर दिया। साथ बैठी श्रीमती जी तमक उठीं- ' क्यों बंद
कर दिया? सावधान इण्डिया दे रहा है। मुझे देखना है?'
उसका छोटा सा परिवार था- वह,उसकी पत्नी और दो बच्चे। बड़ा बेटा पंद्रह वर्ष का साल का और बेटी भाई से तीन वर्ष की छोटी।
बेटी
सो चुकी थी। पिछले दस दिनों से बेटा देर से घर आने लगा था। उसके इंतजार
में मियाँ - बीवी ड्राइंगरूम में टीवी देखते रहते हैं। आज भी देख रहे थे।
वह
शांत रहता था। घर-गृहस्थी के मामले में टांग कम ही अड़ाता था। बीवी पर
भरोसा था उसे। परिवार की देखभाल अच्छी तरह कर लेती थी। लेकिन आज उसकी आवाज
में तल्खी आ गयी-' सावधान इण्डिया देखेंगी! सावधानी बरतनी भी आनी चाहिए। '
रिमोट
हाथ में लेकर बीवी टीवी आन करने जा रही थी कि तमक उठी-' आप किस सावधानी की
बात कर रहे हैं जी? दफ्तर के काम और यह जो आप कम्प्यूटर पर अंगुलियां
चलाते रहते हैं इसके सिवा क्या घर की तरफ भी ध्यान देते हैं?
- '' सारा कुछ मैं संभाल रही हूँ।''
आवाज में स्त्री सुलभ रुआंसा पन आ जाना स्वाभाविक था। वह आवा ज से तल्खी हटाते हुए कहा-'
इसके लिए शुक्रगुजार हूं आप का लेकिन आजकल देख ही रही हैं, समाज कितना
विषाक्त हो गया है। नाबालिक बच्चियाँ तक महफ़ूज नहीं। आये दिन की घटनायें
देख-सुन कर कलेजा चाक हो जाता है।'
-' आप का इशारा समझ रही हूं मैं। आप निश्चिंत रहिए, मेरी निगाहें बेटी पर पर बराबर रहती हैं। उसके एक एक हरकत का पता होता है मुझे।'
-'
और बेटे का?' फिर तल्खी आ गयी उसकी आवाज में-' बेटे पर नजर है आप की। देख
रही हैं उसकी हरकत? जनाब देर से घर लौटने लगे हैं। कभी पूछा आप ने?'
-'
अरे वो!' पत्नी उसकी गम्भीर बात को लापरवाही की झोंके से उड़ाती हुई
बोली-' वो तो बेटा है। अभी उम्र ही क्या हुई है? आप उस पर शक करते हैं?'
-' शायद निर्भाया काण्ड को भूल गयी हैं आप।' वह लैपटॉप के की बोर्ड पर उंगली चलाते हुए बोला।
एक
कहानी के अंत की चंद शब्द लिखने थे उसे। वह खो गया उसमें कि तभी दरवाजा
खोलने के साथ साथ 'तड़ाक्...तड़ाक्...तड़ाक्' की आवाज सुनकर वह चैतन्य हुआ ।
मुस्कान की हल्की रेखा खिंच आयी उसके चेहरे पर। उसने अपनी कहानी समाप्त करते हुए लिखा-' द बिगनिंग'
आड़
- अरे, थोड़ी देर बैठो। कहाँ जा रही हो? लॉकडाउन में ही तो अवसर मिला है साथ बैठने का। सारी जिंदगी आरजू और इंतजार में ही कट गई।
- बैठने से घर का काम हो जाएगा? कितना सारा काम पड़ा है। पत्नी जूठे कप प्लेट समेट रही थी।
मैं
चौक उठा -" वो कहाँ गई जिसे लॉक डाउन में अपने पास रख ली है कि घर का
सारा काम कर दिया करेगी। कहीं बाहर नहीं जाएगी। यहीं रहेगी।"
- रही तो। लेकिन आज तड़के ही चली गई यह कहकर कि आज वट सावित्री का पर्व है। पति के पास जाएगी। व्रत करेगी।
- वट-सावित्री??
- इतने बड़े विद्वान हो। वट-सावित्री नहीं जानते।
पत्नी
मुझे चिंतन सागर में डुबो कर चली गई। मैं सोचने लगा- वट मतलब बर। बर मतलब
दूल्हा, पति। सावित्री का पति सत्यवान। तात्पर्य यह कि पति के दीर्घायु
होने के लिये पूजा।
- समझे कुछ?
-
समझ गया। औरतों के हिस्से में एक और व्रत। मर्दों को पूजो। लेकिन तुमने तो
कभी व्रत नहीं रखा। मेरे दीर्घायु होने के लिए पूजा नहीं की।
- हाँ, नहीं की, तो? तुमने कभी मेरे दीर्घायु होने के लिए व्रत रखा? पूजा की?
- मर्दों के लिये ऐसा विधान बना ही नहीं। मैं जरा झेंप गया।
- विधान बनाने वाले कौन थे?
- कौन थे?
- मर्द। ....खैर छोड़ो, इन ढकोसलों में मेरा मन नहीं रमता।
पत्नी गंदे कपड़े समेट कर चली गई।
-
ठीक कहती है। मैं छींक भी दूँ तो आसमान सर पर उठा लेती है। यह काढ़ा पी लो।
दूध में हल्दी डली है, पी जाओ। लाओ, सिर में तेल डाल डाल दूँ। और न जाने
क्या क्या।
मेरी फिक्र इतनी पर
कोई उपवास व्रत नहीं। और पड़ोसन को देखो। पति को पैर की जूती बराबर भी नहीं
समझती। सुनते हैं, मारती-पिटती भी है। लेकिन क्या मजाल कि कोई भी पर्व
त्योहार छूट जाय। नए वस्त्र धारण कर, गहनों से लदकर भर मांग सिंदूर लगाती
है। दिखती तो ऐसी है कि कोई नई नवेली है।
- क्या सोचने लगे? कोई कहानी वगैरह जन्म ले रही है क्या?
- नहीं। मैंने पत्नी की आंखों को देखा जहां हमेशा स्वच्छ ,साफ-सुथरे विचारों का सागर हिलोरें लेता रहता है।
-
तुम एंटी माइंडेड लेखकों को मैं अच्छी तरह जानती हूँ। जब सोचोगे तो
सामाजिक परम्परा के विपरीत। आस्था को भी तर्क के चाकू से चिर फाड़ करोगे।
- तुम अडोसन-पड़ोसन के बारे में सोच रहे हो न, सामने वाली के बारे में सोचा।
- अरे वो कंजुसाधिराज। जो अपने चप्पल में दस बारह चिप्पी चिपकाए फिरता है।
-
हाँ, वही। अगर उसकी बीवी तीज-त्योहार नहीं करे तो उसे भी साड़ी में कई
पैबंद लगवाना पड़े। पर्व के बहाने उस बेचारी को नए कपड़े नसीब होते हैं। थोड़ा
सजने संवारने का मौका मिलता है। समझ में आया।
-
समझ गया। लेकिन अब तुम समझाओ। यह जो तुम्हारी प्रिय गृह सेविका है जिसका
पति निहायत गैरजिम्मेदार, ओछी मानसिकता वाला, एक नम्बर का पियक्कड़ है।
हमेशा पीकर टर्र रहता है। बेशर्म इतना कि जिस बीवी की कमाई पर मौज मनाता
है उसी की कुटाई भी करता है। वह वट सावित्री व्रत करने गई है। यानी कि अपने
निकम्मे, पियक्कड़, मार कुटाई करने वाले पति की दीर्घायु होने के लिये
पूजा करने गई है। क्यों? समझाओ। अब इधर- उधर क्यों देखने लगी? समझाओ न।
- चलो, उठो। सवेरे से उठकर बिछावन पर पड़े-पड़े लेक्चर झाड़ रहे हो। जाओ बाथरूम। फ्रेश-व्रेश होओ।
मेरे
बाथरूम में घुसने के पहले वह बोली- सुनो, स्त्री के जीवन में पति न हो तो
वह खुले लिफाफे की तरह हो जाती है जिसे हरकोई पढ़ना चाहता है । इससे बेहतर
है किसी एक का होकर बंधी रहे चाहे वह जैसा हो, निकम्मा हो या बेकार।
लेखक परिचय
नाम : कृष्ण मनु
लेखन विधा : लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, कविता.
प्रकाशित पुस्तकें १.पांचवां सत्यवादी और मुट्ठी में आक्रोश(लघुकथा संग्रह), २.कोहरा छटने के बाद और आसपास के लोग (कहानी संग्रह),
३..बीसवीं सदी का गदहा, प्रीति की वापसी और बीरू की वीरता(बालकथा सं.)
संपादन - स्वातिपथ लघु पत्रिका और लघुकथा संग्रह ‘हम हैं,यहाँ हैं.
सम्मान - विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सात बार सम्मानित.
मेल पता - kballabhroy@gmail.com
मोबाइल न. - 9939315925
डाक का पता -
‘शिवधाम’, पोद्दार हार्डवेयर स्टोर के पीछे, कतरास रोड, मटकुरिया,
धनबाद-८२६००१, ( झारखण्ड )
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