प्रेमचंद की याद में
अब भी घटायें हैं घनी।
क्यों जल्द सिमटी रोशनी ?
हो प्रेमचंदी हर कलम ।
सब वो लिखें जो है धरम ।
लाओ कहीं से भी उसे ।
अब नीर आँखों से रिसे ।
धरती लहू से है सनी ।
क्यों जल्द सिमटी रोशनी।
यह आदमी जो आम है ।
देखो बिका बेदाम है ।
ऊँचा बड़ा , ओछा यहाँ।
इंसानियत खेई कहाँ ?
धनवान की भृकुटी तनी।
क्यों जल्द सिमटी रोश्ानी ?
जब पक्षपाती सब रहे ।
तो कौन सच को फिर कहे ?
खेती-हरों को दे मसल ।
कुछ लूटते इनकी फसल ।
पीड़ा सभी की सोचनी ।
अब भी घटायें हैं घनी।
क्यों जल्द सिमटी रोश्ानी ?
पदथामें कलम को वो चला ।
माँ शारदा का लाड़ला ।
गोदान जिसने था लिखा।
बस आदमी उसको दिखा ।
धनपत कथा सम्राट था ।
पीड़ा बहे वह घाट था ।
उसकी जरूरत है सदा ।
हर पल अभी भी आपदा ।
सब ओर कितनी है व्यथा ।
आ कर जरा लिख दे कथा ।
हर युग तम्हारी स्तुति करे ।
पर बिन तुम्हारे क्या करें ।
राम शर्मा ' कापरेन ' ( प्रसिद्ध कवि , नाटककार एवं अभिनेता )
सी-1 थर्ड टाईप , सी.ए.ड़ी. कोलोनी , कोटा ।
मो. 9413565957
मेल. ramsharma.kapren@gmail.com
अब भी घटायें हैं घनी।
क्यों जल्द सिमटी रोशनी ?
हो प्रेमचंदी हर कलम ।
सब वो लिखें जो है धरम ।
लाओ कहीं से भी उसे ।
अब नीर आँखों से रिसे ।
धरती लहू से है सनी ।
क्यों जल्द सिमटी रोशनी।
यह आदमी जो आम है ।
देखो बिका बेदाम है ।
ऊँचा बड़ा , ओछा यहाँ।
इंसानियत खेई कहाँ ?
धनवान की भृकुटी तनी।
क्यों जल्द सिमटी रोश्ानी ?
जब पक्षपाती सब रहे ।
तो कौन सच को फिर कहे ?
खेती-हरों को दे मसल ।
कुछ लूटते इनकी फसल ।
पीड़ा सभी की सोचनी ।
अब भी घटायें हैं घनी।
क्यों जल्द सिमटी रोश्ानी ?
पदथामें कलम को वो चला ।
माँ शारदा का लाड़ला ।
गोदान जिसने था लिखा।
बस आदमी उसको दिखा ।
धनपत कथा सम्राट था ।
पीड़ा बहे वह घाट था ।
उसकी जरूरत है सदा ।
हर पल अभी भी आपदा ।
सब ओर कितनी है व्यथा ।
आ कर जरा लिख दे कथा ।
हर युग तम्हारी स्तुति करे ।
पर बिन तुम्हारे क्या करें ।
राम शर्मा ' कापरेन ' ( प्रसिद्ध कवि , नाटककार एवं अभिनेता )
सी-1 थर्ड टाईप , सी.ए.ड़ी. कोलोनी , कोटा ।
मो. 9413565957
मेल. ramsharma.kapren@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें