डॉ.सरला सिंह स्निग्धा
जीवन की बीती व्यथा सखी,
क्या कहूँ किसी से नहीं कही।
कंटक पथ पर चलते-चलते,
पुष्पों की यादें रूठ रहीं ।
तपते पथ पर चलते चलते ,
कब बीत गया जीवन का मग।
बीती उमर तब आया ध्यान ,
देखूं जलभर नयनों से जग ।
बीता वापस मिलता है कब,
आंखों के सपने टूट रहीं।
लगता मिल जाये वापस सब
जो जो खोया अब तक हमने।
फिर से जीवन आरम्भ करें ,
सब पूर्ण करें अपने सपने।
फिर से खुशियों को ले आयें,
हाथों से जो थी छूट रहीं।
अपने ही संग संग सबका ,
जीवन उपवन जगमग करदें।
विरान पड़े दिलों में फिर से,
निर्मल खुशियां सबके भर दें।
देखें फिर वो पुलकित चेहरा
निर्झर सी खुशियां फूट रहीं।
डॉ.सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
9650407240
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