उनका दुख मुझसे कहीं से कम नहीं।
गोद में बालक सर पर बोझ देखकर,
भला किसकी आंखें होती नम नहीं।
नंगे पांव तपते सड़क बच्चे चल रहे,
देखकर किसका कलेजा फटता नहीं।
दिन-रात सभी चलते जा रहे सरपट,
रास्ता इतनी लंबी है कि कटता नहीं।
दाने-दाने को जो हो रहे मोहताज,
उन्हें देखने का मुझमें हिम्मत नहीं।
उन्हें एक घूंट पानी पिलाने के लिए,
आज उठा रहा कोई जहमत नहीं।
पूरे मुल्क में जिधर भी देखता हूं मैं,
मेरे गम से किसी का गम कम नहीं।
हर शख्स आज दर्द से तड़प रहा है,
किसी का भी दर्द मुझसे कम नहीं।
सभी की आंखें बह रहीं हैं झर-झर,
किसी के भी आंसू गिरती कम नहीं।
हर इंसान आज बेबस लाचार हुआ,
किसी की लाचारगी हमसे कम नहीं।
कैसा बेदर्द हो गया शहंशाह ए मुल्क,
उसे गरीबों पर दिखता सितम नहीं।
सड़क पर इंसानियत दम तोड़ रहा है,
पर उसे इसका तनिक भी इल्म नहीं।
गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
देवदत्तपुर दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार
9507341433
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