अविनाश ब्यौहार
हवाओं के
बुलंद हौसले।
हो रही है तबाही
आया सैलाब।
बिखरे हैं मनका से
हारिल से ख्वाब।।
सुख पखेरू
से उड़े
घायल हैं घोंसले।
सिमटे हुए कछुआ से
खोल में लोग।
समाज में फैला है
पैसों का रोग।।
देखते ही बनते
आदमी के
चोंचले।
जबलपुर (म.प्र.)
हवाओं के
बुलंद हौसले।
हो रही है तबाही
आया सैलाब।
बिखरे हैं मनका से
हारिल से ख्वाब।।
सुख पखेरू
से उड़े
घायल हैं घोंसले।
सिमटे हुए कछुआ से
खोल में लोग।
समाज में फैला है
पैसों का रोग।।
देखते ही बनते
आदमी के
चोंचले।
जबलपुर (म.प्र.)
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