सुमति श्रीवास्तव
इन मुस्काते चेहरे में छिपे दर्द को,
भूख से पीले पड़े चेहरे सर्द को।
तुमने देखा नहीं या देख सके नहीं।।
मासूम जिंदगी को जिंदगी का बोझ ढोते हुए,
कहीं किसी कोने मे माँ को रोते हुए।
इन पीले चेहरे में खोये बचपने को,
मजबूर जरूरतों में खोये अपनें को।
क्यूँ तुम्हारे कदम नहीं रुके,
तुमने देखा नहीं या देख न सके।।
एक नन्हें रोटी के टुकड़े की मिट्टी झाड़,
खाना मलिन चेहरे की लेकर आड़।
तड़पती तन्हाईयों में मरना किसी जिंदगी का,
आँखों में आँसू लेकर सिसकना बंदगी का।
क्यों सर तुम्हारें वहाँ नहीं झुके,
तुमने देखा नहीं या देख न सके।।
गोद में हड्डियों का पिंजर लेकर,
जिंदगी तरस न खाती जीकर।
धँसी आँखों में रहम की आस,
बस दो जून की रोटी और जीने की प्यास।
क्यों कान बहरे हुए जमींदारों के,
क्यों बाहर फेंक दिए सामान हजारों के।।
मरते पिंजर भूख से,
तुमने देखा नहीं या देख न सके।।
जौनपुर
इन मुस्काते चेहरे में छिपे दर्द को,
भूख से पीले पड़े चेहरे सर्द को।
तुमने देखा नहीं या देख सके नहीं।।
मासूम जिंदगी को जिंदगी का बोझ ढोते हुए,
कहीं किसी कोने मे माँ को रोते हुए।
इन पीले चेहरे में खोये बचपने को,
मजबूर जरूरतों में खोये अपनें को।
क्यूँ तुम्हारे कदम नहीं रुके,
तुमने देखा नहीं या देख न सके।।
एक नन्हें रोटी के टुकड़े की मिट्टी झाड़,
खाना मलिन चेहरे की लेकर आड़।
तड़पती तन्हाईयों में मरना किसी जिंदगी का,
आँखों में आँसू लेकर सिसकना बंदगी का।
क्यों सर तुम्हारें वहाँ नहीं झुके,
तुमने देखा नहीं या देख न सके।।
गोद में हड्डियों का पिंजर लेकर,
जिंदगी तरस न खाती जीकर।
धँसी आँखों में रहम की आस,
बस दो जून की रोटी और जीने की प्यास।
क्यों कान बहरे हुए जमींदारों के,
क्यों बाहर फेंक दिए सामान हजारों के।।
मरते पिंजर भूख से,
तुमने देखा नहीं या देख न सके।।
जौनपुर
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