निधी नित्या
मुझे पसर जाना है, हर उस कागज़ पर
जिस पर प्रेम लिखा हो,
जिस पर प्रेम लिखा हो,
मुझे बन जाना है बूंद
हर उस स्याही की
जो इश्क़ लिखती हो,
हर उस स्याही की
जो इश्क़ लिखती हो,
शेक्सपियर के पात्रों की
प्रेम पगी आवाज़ो में ,
मुझे दाना दाना समा जाना है,
प्रेम पगी आवाज़ो में ,
मुझे दाना दाना समा जाना है,
रवीन्द्र के संगीत की
प्रेम खुमारी पर
सुर सुर बिखर जाना है,
प्रेम खुमारी पर
सुर सुर बिखर जाना है,
मुझे नाप लेने हैं वो सारे नदी ,ताल
जिन पर प्रेमी जोड़े पैर डालकर
समय को बहाते हैं
जिन पर प्रेमी जोड़े पैर डालकर
समय को बहाते हैं
मुझे उतराना है
दून के पहाड़ों से लेकर
नीदरलैंड के झरनों तक
सर्द हवा बनकर
दून के पहाड़ों से लेकर
नीदरलैंड के झरनों तक
सर्द हवा बनकर
मुझे आकाश ,और धरती को
बांध देना है एक रेशमी गांठ में
जिससे आकाश का रंग हरा
और धरती नीली हो जाए
बांध देना है एक रेशमी गांठ में
जिससे आकाश का रंग हरा
और धरती नीली हो जाए
मुझे समेट लेनी है
वो सारी देह गंध
और सिसकियां ,
बिस्तर की सिलवटें और
उतरती रात की खुमारी ,जो
प्रेमी जोड़ों को बेचैन करती
वो सारी देह गंध
और सिसकियां ,
बिस्तर की सिलवटें और
उतरती रात की खुमारी ,जो
प्रेमी जोड़ों को बेचैन करती
चिनार के चौड़े सीने के
पीछे छिपकर तुम्हें
देना है नर्म होठों का स्पर्श
हरसिंगार के पेड़ के तले
निर्वस्त्र लेटना है तुम्हारे साथ
और रात भर गिरते हुए फूलों के
नीचे छुप जाना है तुम्हारे संग
पीछे छिपकर तुम्हें
देना है नर्म होठों का स्पर्श
हरसिंगार के पेड़ के तले
निर्वस्त्र लेटना है तुम्हारे साथ
और रात भर गिरते हुए फूलों के
नीचे छुप जाना है तुम्हारे संग
मुझे करनी है बगावत
समाज से, धर्म से ,चेहरे से
रंग से, उम्र से और हर सोच से
वो जो प्रेम को बाँचते हैं
प्रेम को बाँधते हैं देह से
समाज से, धर्म से ,चेहरे से
रंग से, उम्र से और हर सोच से
वो जो प्रेम को बाँचते हैं
प्रेम को बाँधते हैं देह से
मुझे दाग देना है प्रेम को
हर मन पर ,हर आत्मा पर
ठीक उस तरह जैसे
आसमान पर दागे गए थे
हज़ारों तारे और
मेरे तन पर तुमने
हज़ारों चुंबन टांके थे
हर मन पर ,हर आत्मा पर
ठीक उस तरह जैसे
आसमान पर दागे गए थे
हज़ारों तारे और
मेरे तन पर तुमने
हज़ारों चुंबन टांके थे
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