विनय कुमार शुक्ल
दिसंबर मास की शीतरात्रि 11 बजे का समय।
मैं द्वारावती नगर के बाहर सागर के समीप अंतरिक्ष अनुसंधान कालोनी के अपने सरकारी आवास में गहरी निद्रा में सोया हुआ था। लगातार बजती मोबाइल की घंटी ने मुझे जगा दिया फोन पर विनय थे। प्रातः कालीन भ्रमण के साथी मित्र। कोई 2 वर्ष पूर्व ग्राम्य विकास विभाग से सेवानिवृत होकर अपने गांव से बहुत दूर आकर थोड़ी दूर पर बने अरुण भवन में फ्लैट लेकर रह रहे थे। अकेले थे। कभी गंभीर, कभी वाचाल प्रकृति के व्यक्ति।
अरुण - भवन रिकॉर्ड कम समय लगभग 1 वर्ष में बनी हुई इमारत थी । 15000 स्कुयर फुट में फैली हुई गोलाकार इमारत। इसका व्यास 138 फुट का था। चार मंजिला भवन जिसमें अनेक फ्लैट थे। अधिकांश में परिवार रहने लगे थे। रोचक बात यह थी कि फ्लैट बहुत सस्ते दरों पर बेचे गए थे। रात में यह भवन नीली रोशनी में नहाया हुआ रहस्यमय सा लगता था जैसे विशाल नीलमणी।
बहरहाल मैंने फोन रिसीव किया तो विनय की बहुत घबराई हुई आवाज कानों में पड़ी। तत्काल अपने पास बुला रहे थे। इतनी रात गए, क्या बात हो सकती है, जानना चाहा तो उनके मुंह से साफ बात नहीं निकल पा रही थी।
मैं जैसे - तैसे तैयार होकर स्कूटी स्टार्ट कर तेजी से अरुण भवन की ओर भागा । पास पहुंचा तो घोर आश्चर्य अरुण भवन कहां गया? चाँदनी रात में एक विशाल गोलाकार गड्ढे के पास अकेले खड़े थे विनय। चेहरे पर भय और आतंक की छाप थी। शरीर हल्के से कांप रहा था।
- '' क्या हुआ? बिल्डिंग कहां गई? मेरे मुंह से निकला। विनय कुछ बोल ना सके केवल हाथ से ऊपर की ओर इशारा किया। मैंने कहा उड़ गई क्या? '' जवाब था - '' हां, उड़ गई।'' मैं 10 फीट ऊपर से कूदकर निकल आया। -'' हल्की चोट भी आई है। पर बाकी सब चले गए। वह लोग उन सब को ले गए।''
- '' इसने मेरी जान बचा ली।'' यह कहते हुए विनय ने अपना दायां हाथ सामने कर दिया। मैंने देखा हाथ में अपनी छोटी सी प्यारी बरेटा पिस्तौल लिए थे। इसे मैं देख चुका था। कोई 35 साल पुरानी इटालियन बरेटा 20 कैलिबर की गन थी जिसमें आठ बुलेट रहती थी। विनय कहने लगे आज हड़बड़ी में तीन फायर किए ग्राउंड डोर का लॉक तोड़कर निकला हूँ।
मैंने विनय का हाथ पकड़ा स्कूटी पर बिठाकर वापस अपने आवास पर आया। दो कप काफी तैयार की। हम दोनों आराम से बैठ गए और काफी पीने लगे कुछ देर की चुप्पी के बाद मैंने कहा कि शुरू से बताओ आखिर हुआ क्या और कैसे हुआ।
अब तक अपने को पूरी तरह संभाल चुके विनय ने कहा कि अभी रात का खाना खाकर मैं सीढ़ियों से नीचे जा रहा था कि कुछ चहलकदमी हो जाए। तभी सामने दीवार में एक दरवाजा नजर आया जिसे पहले कभी देखा नहीं था। थोड़ी उत्सुकता हुई तो दरवाजे के पास चला गया। तभी अचानक दरवाजा खुल गया और अंदर प्रवेश कर गया। वहाँ भी सीढ़ी थी परंतु पैर रखते ही एस्केलेटर की तरह चल पड़ी। नीचे जाकर देखा तो बड़ा सा हाल था जो अनेक खंभों पर टिका था। हाल में तमाम यंत्र लगे हुए थे जैसे कोई प्रयोगशाला हो। सामने दीवार पर महाकवि जयशंकर प्रसाद की पंक्तियां चमक रही थी.. शक्ति के विद्युत कण जो व्यस्त, विकल बिखरे हैं हो निरुपाय। समन्वय उनका करे समस्त, विजयिनी मानवता हो जाय।।
हाल के मध्य में शिवलिंग के आकार की विशाल रचना थी जो पाइपों से घिरी हुई थी। लगता था कि ड्यूटीरियम ऑक्साइड है। एक कोने में गाइगर मूलर काउंटर नामक उपकरण लगा था। अरे! याद आया यह तो परमाणु उत्सर्जन ( रेडिएशन) नापने का यंत्र है और भी बहुत सारे यंत्र वहां थे। मन में बात आई कि कोई छोटा सा एटॉमिक रिएक्टर तो नहीं। वहाँ प्रणोदक यंत्र ( प्रोपेलर) जैसी रचनाएं भी थी।
तभी मुझे दो आदमी दिखाई पड़े जो अंतरिक्ष सूट जैसा पहने थे। कुछ आपस में बात कर रहे थे। मैं एक खंभे की ओट में छिप गया। तभी दीवार पर लगी एक स्क्रीन चमकने लगी और उस पर संस्कृत में कुछ निर्देश छपने लगे। वह दोनों आदमी तेजी से एक वीथिका (गैलरी)में चले गए।
मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि यह सब यहां क्या हो रहा है। यह तो आवासीय भवन है फिर यहां चोरी - छिपे कुछ किया जा रहा है। मैं वापस आने के लिए पीछे मुड़ा तो सीढ़ियां कहीं नजर नहीं आ रही थी। थोड़ी आशंका लिए हाल से सटे एक कमरे में प्रवेश कर गया। कमरे के फर्श पर आपात द्वार लिखा हुआ दरवाजा देखा जो लॉक था। मैं सोच में पड़ गया कि क्या करूं। तभी ऐसा लगा कि जैसे अनेक इंजन स्टार्ट हो गए हों उनसे मक्खियों के भिनभिनाने जैसी आवाज आने लगी जो कुछ ही पलों में तेज शोर में बदल गई। अचानक वह कमरा कंपन करने लगा जो बढ़ता ही गया।
मैं बड़े ही ध्यान से विनय की बातें सुन रहा था। विनय बोलते जा रहे थे। विनय ने बताया कि जैसे छठी इंद्रिय जाग पड़ी हो ऐसे मैंने जेब में रखी अपनी पिस्तौल निकाली और ताबड़तोड़ आपात द्वार के लाक पर तीन फायर कर डाले। उसी समय एक तेज भूकंप महसूस हुआ और पूरी इमारत हिलने लगी। ऐसा लगा कि भवन ऊपर की ओर उठ रहा है। गोलियों के असर से दरवाजा बाहर की ओर लटक गया और मैं बिना सोचे समझे कूद पड़ा। एक धमाके की आवाज हुई और फिर अरुण भवन में रह रहे लोगों की चीख - पुकार सुनाई पड़ने लगी। देखते ही देखते पूरी इमारत आकाश की ओर तेजी से उठने लगी। एक नीला प्रकाश फैल गया। चंद पलों में समूचा अरुण भवन आकाश में गायब हो गया।
अब जाकर विनय रुक गए। उनकी सांसें तेज चल रही थीं।
-'' श्रीमान जी, इसके आगे बताने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है।'' मेरी बात ध्यान से सुन रहे अंतरिक्ष अनुसंधान आयोग के अध्यक्ष पुंडरीक जी एवं दो अन्य सदस्यगण कुछ देर तक सोचते रहे। फिर पुंडरीक जी मुझे संबोधित कर कहने लगे। राजेश जी, यह प्रकरण मेरी समझ में आ गया है।
वास्तव में यह अरुण - भवन अरुण ग्रह यूरेनस से आए लोगों ने यहां के स्त्री - पुरुष बच्चों व कुछ वस्तुओं को अपने ग्रह पर ले जाने के लिए ही बनाया था। इसीलिए उन्होंने बहुत सस्ती दरों पर फ्लैट दिए। लोग लालच में आकर बहुत जल्दी फ्लैट ले लिए। किसी ने भी ना कोई आशंका की और ना ही कोई पड़ताल की। उनकी तकनीकी अभी हमारी तकनीकी से बहुत उन्नत है। संभव है कि भारत में उनकी खास रुचि हो। ऐसा भी हो सकता है कि प्राचीन भारत में जब भारतीय अंतरग्रही यात्राएं करने में सक्षम थे तब से हमारा उनका कोई संबंध रहा हो।
अब डर इस बात का है कि जिन मनुष्यों को वह साथ ले गए हैं उनके साथ क्या करेंगे। क्या उन पर ’ गिनी पिग’ की तरह प्रयोग तो नहीं करेंगे। गिनी पिग से आशय उन प्राणियों से है जिन पर सर्जरी, औषधियों और गुरुत्वाकर्षण बल, भारहीनता, वायुदाब आदि के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए उनके शरीर का प्रयोग किया जाता है। इसमें उन्हें पीड़ा व मृत्यु का सामना करना पड़ता है।
- '' राजेश जी, अब आप जा सकते हैं। इस विषय में हमें गहन अनुसंधान की आवश्यकता है।''
मैंने मीटिंग से बाहर निकलने के लिए कदम बढ़ाया ही था कि आँख खुल गई। सपना टूट गया। सुबह हो चुकी थी। मोबाइल बज रहा था। प्रधानमंत्री आवास पाने का इच्छुक लाभार्थी फोन कर रहा था।
ग्राम विकास अधिकारी
गैसड़ी ,बलरामपुर (उत्तर प्रदेश )
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