युद्धवीर टण्डन
मानव के द्वारा इस धरा पर प्रकट होने बाद अगर कोई सबसे बड़ी उपलब्धि है तो वो है भाषा का विकास अगर एक भाषा को हम मानव जीवन से कुछ समय के लिए हटा लें तो बाकि केवल शून्य ही शेष रह जायेगा। यानि बिन भाषा के बाकि सब कुछ अस्तित्व हीन है। हम देखते हैं कि संसार के हर प्राणी में भाषा के स्वरूप को लेकर विभिन्नताएं हैं। भाषा की लिपि की बात करें या फिर भाषा के प्रयोग की हर पक्ष में विभिन्नता है। लेकिन एक बात है जो की भाषा को लेकर हर जगह पर एकसमान है। वो है भाषा का प्रभाव, हर जगह पर वहाँ की भाषा की भाषा विशेष का गजब का प्रभाव है। कहते हैं बंदूक से निकली गोली व मुंह से निकली बोली दोनों का ही एक समान असर व्यक्ति पर होता है।
जहाँ कहीं पर भी सकारात्मक भाषा का बहुतायत में प्रयोग होता है वो जगह ही सकारात्मक हो जाती है। उदाहरण के लिए हम किसी भी धार्मिक स्थल को ले लें किसी विद्यालय को ले लें किसी पुस्तकालय को ले लें या फिर कोई भी अन्य सकारात्मक स्थल। इन सब में हम देखेंगे कि कैसे सकारात्मक भाषा पुरे स्थान को सकारात्मक कर देती है। ठीक इसी प्रकार सकारात्मक भाषा से एक व्यक्ति के जीवन को भी सकारात्मक बनाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर आप महान वैज्ञानिक आइंस्टीन की माता जी को लें बचपन में आइंस्टीन के अध्यापक में उनकी माँ को एक नोट लिख कर दिया जिस पर लिखा था कि आपका बेटा कभी पढ़ नहीं पाएगा। जब बेटे ने माँ से पूछा कि अध्यापक ने क्या लिखा है तो माँ ने जबाब दिया कि आपके अध्यापक का कहना है कि आप काफी बद्धिमान हो इसलिए वे आपको नहीं पढ़ा पाएंगे अतः आज से मैं ही तुम्हें पढ़ाऊँगी। यही सकारात्मक शब्द जो आइंस्टीन की माता जी ने कहे नन्हें आइंस्टीन का होंसला टूटने से बचा गये।
यानि सकारात्मक भाषा का महत्त्व आज के समय में बहुत ही ज्यादा है। एक और जहाँ देश में स्वच्छता अभियान चला हुआ है वहीं दुसरी और आज स्वच्छ भाषा अभियान की भी जरूरत है। इस दिशा में आज तक नाममात्र लोगों का ही ध्यान गया है। लेकिन पिछले दो वर्षों से एक संस्था सुभाषी फाउन्डेशन इस दिशा में निरंतर प्रयासरत है। पुरे देश में लोगों को सकारात्मक भाषा का महत्त्व बताने व अपने व्यवहारिक जीवन में स्वच्छ भाषा को अपनाने के लिए सुभाषी फाउन्डेशन निरंतर प्रयत्नशील है। ऐसे प्रयास समाज को नई दिशा देते हैं। लोगों को अच्छे नागरिक बनने के लिए प्रेरित करते हैं। सही गलत में भेद करनेए विवेक शक्ति के प्रयोग करने में सहायता करते हैं।
विज्ञान की दृष्टि से कहें तो उर्जा कभी समाप्त नहीं की जा सकती इसे केवल परिवर्तित किया जा सकता है एक रूप से दुसरे रूप मेंद्य हमारे मुख से निकलने वाली वाणी भी एक उर्जा ही तो है। यह भी कभी समाप्त नहीं होती बल्कि इस संसार में ही विचरण करती रहती है। अतः हमारी हर बात जो हम बोलते है वो कहीं न कहीं से मुड़कर हम तक जरुर वापिस आती है। ऐसे में अगर हम सकारात्मक भाषा बोलेंगे तो हम तक सकारात्मक शब्द ही आएंगे।
हर प्रकार के प्रयोजनों की सिद्धि में सकारात्मक भाषा की अहम भूमिका रहती है। चाहे प्रयोजन अपने घर में परिवारिक सदस्यों के साथ तालमेल का हो। चाहे प्रयोजन गावं - शहर - नगर में एक दुसरे के साथ सौहार्दपूर्ण जीवन जीने का हो या फिर एक देश को अन्य देशों के साथ सामरिक, आर्थिक या राजनितिक सम्बन्धों को लेकर हो। देश के निर्माण में भी सकारात्मक भाषा का एक महत्त्वपूर्ण योगदान है। राष्ट्र निर्माण उस राष्ट्र के लोगों की सकारात्मकता पर भी बहुत हद तक निर्भर करता है। नागरिक सकारात्मक होंगे तो पुरे देश में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का माहोल बनता है। जिससे देश आगे बढ़ता है। ये वही बात है कि अगर देश के एक सौ करोड़ से ज्यादा नागरिक यदि एक साथ एक एक कदम भी आगे बढ़ाते हैं तो देश भी सो कदम आगे बढ़ जाता है।
वैसे तो अच्छी बातें व सुविचार दीवारों पर भी लिखे होते हैं लेकिन इससे दीवार महान नहीं बनती लेकिन यदि उन अच्छी बातों या सुविचारों में से एक को भी हम अपनाते हैं तो हम जरुर महान बन सकते हैं। ठीक इसी प्रकार सकारात्मक होने से नहीं बल्कि सकारात्मक बोलने से ही हमारा लाभ हो सकता है। बच्चों को छोटी आयु से ही ऐसे संस्कार घुट्टी की तरह शिक्षा के काढ़े में पिला देने चाहिए। इससे बच्चे के जीवन में जो स्वाद आएगा वो ताउम्र उस पर से उतर नहीं पाएगा। सुभाषी फाउन्डेशन देश भर के अध्यापकों के साथ मिलकर इसी प्रकार से निरंतर कार्य कर रही है।
लेकिन केवल मात्र एक संस्था पुरे देश में यह सकारात्मक भाषा की लहर नहीं ला पायेगी या अगर भी लायेगी भी तो उसमें काफी समय लग जाएगा। अतः यह हम सभी नागरिकों का परम दायित्त्व बन जाता है कि हम भी इस दायित्त्व के भोझ को अपना कंधा दें। सुभाषी के इस अभियान का हिस्सा बनकर सर्वप्रथम स्वयं सुभाषी बने और फिर दूसरों को भी सुभाषी बनाएं। समाज में बदलाव लाना है भाषा की सकारात्मकता एक उत्तम तरीका है। कबीर जी ने भी भाषा को बहता नीर बताया है। यानि अगर हम इस बहते नीर में सकारात्मकता का सर मिला दें तो पूरा देश इस बहते नीर से सकारात्मक हो सकता है।
सकारात्मक भाषा के महत्त्व को बताते हुए कबीर जी लिखते हैं -
'' गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच।
हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।।''
स्टेट अवार्डी 2019
78072236834
कनिष्ठ अध्यापक
राजकीय प्राथमिक पाठशाला अनोगा
गावँ तेलका डाकघर मौड़ा
तहसील सलूणी
जिला चम्बा ( हिमाचल प्रदेश ) 176312
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