अनिल 'मानव'
(1)
यहाँ क़िस्सा है सारा बस मनी का।
कोई रिस्ता नहीं अब आदमी का।।
है बादल-सा सफ़र आवारगी का।
फ़कीरों को कहाँ डर है किसी का।।
करोगे याद मेरे दोस्त मुझको
निशां मैं छोड़ता हूँ दोस्ती का।।
वफ़ा की आस लेकर मत भटक तू,
नही है आदमी अब आदमी का।
गुमां किस बात का करते हो साहब
भरोसा क्या है बोलो ज़िन्दगी का।।
अग़र दिल को किसी के छू न पाये,
बता फिर क्या मज़ा है शायरी का?
हजारों ग़म लिए फिरता है 'मानव'
सबब मिलता नहीं कोई ख़ुशी का।।
(2)
मसाइल का कोई हल तो नहीं है।
मग़र कुछ भी मुसलसल तो नहीं है।।
बहुत संजीदा रहता है, हुआ क्या?
कहीं ज़ख्मी तेरा कल तो नहीं है।।
नशा तुझ पर मुहब्बत का है शायद,
हुआ तू यार पागल तो नहीं है।।
लड़ो हिम्मत से हर मुश्किल में भाई!
फ़क़त मरना कोई हल तो नहीं है।।
किया है चोट अक़्सर दिल ने दिल पर,
ये दिल ही दिल का मक़तल तो नहीं है।।
अचानक जल उठी लौ बुझते-बुझते,
ये उसका आख़िरी पल तो नहीं है?
अनिल 'मानव'
तिल्हापुर, कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)
पिन कोड-212218
मोबाइल नंबर- 7398120105
मेल : akmanav86@gmail.com
मेल : akmanav86@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें