अनिता त्रिपाठी
जिन्दगी एक सूखी नदी बन गयी
प्रीत के स्रोत सारे कहीं खो गये ।
वो मचलती, उमड़ती उमंगों भरी
चाल भूली, कदम दर्द से सो गये।।
आज किसको पुकारूँ बियाबान में
मेरी प्रतिध्वनि ही कानों में आने लगी।
धुँधली पड़ने लगी रोशनी आस की
कालिमा मन को रह रह डराने लगी।।
एक लम्बी निराशा भरी अब निशा
दूर तक जिसमें पौ कोई फटती नहीं।
कोई दीपक नहीं दृष्टि के साथ को
जुगनुओं से अगम रात कटती नहीं ।।
बढ़ रही यन्त्रणा दुख हताशा लिए
मुक्ति पथ दृष्टि में कोई आता नहीं ।
मिल सकेगी कभी रोशनी की किरण
टूटा दिल अब तो ढाँढस बँधाता नहीं।।
थिगलियाँ दर्द की जुड़ रहीं नित नई
ज़िन्दगी की ये चादर पुरानी हुई।
मुफ़लिसी झेलते दौर गुजरा बहुत
कहते सुनते ये लम्बी कहानी हुई।।
जिन्दगी एक सूखी नदी बन गयी
प्रीत के स्रोत सारे कहीं खो गये ।
वो मचलती, उमड़ती उमंगों भरी
चाल भूली, कदम दर्द से सो गये।।
आज किसको पुकारूँ बियाबान में
मेरी प्रतिध्वनि ही कानों में आने लगी।
धुँधली पड़ने लगी रोशनी आस की
कालिमा मन को रह रह डराने लगी।।
एक लम्बी निराशा भरी अब निशा
दूर तक जिसमें पौ कोई फटती नहीं।
कोई दीपक नहीं दृष्टि के साथ को
जुगनुओं से अगम रात कटती नहीं ।।
बढ़ रही यन्त्रणा दुख हताशा लिए
मुक्ति पथ दृष्टि में कोई आता नहीं ।
मिल सकेगी कभी रोशनी की किरण
टूटा दिल अब तो ढाँढस बँधाता नहीं।।
थिगलियाँ दर्द की जुड़ रहीं नित नई
ज़िन्दगी की ये चादर पुरानी हुई।
मुफ़लिसी झेलते दौर गुजरा बहुत
कहते सुनते ये लम्बी कहानी हुई।।
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