कुंवर उदय
ज़िस्म देता है, जीस्त - औ - जलाल देता है,
अल्लाह ताला हमेशा बेमिसाल देता है।
बिगाड़ली है अपनी शक्¸ल - औ - सुरत कैसे?
खुदा तो तुममें भी खुद सा जमाल देता है।
मुन्तज़िर क्यूँ है, करामात का सब धोख़ा है,
हरेक ज़िस्म में वो सब कमाल देता है।
बहक ना जाये कहीं जीस्त,लड़खडाये ना,
रूह को वो ही तो उज़ले ख्¸याल देता है।
कहीं मैं भूल ना जाऊँ खुदी को दुनिया में,
नया ही रोज़ मुझे इक सवाल देता है।
ज़िस्म देता है, जीस्त - औ - जलाल देता है,
अल्लाह ताला हमेशा बेमिसाल देता है।
बिगाड़ली है अपनी शक्¸ल - औ - सुरत कैसे?
खुदा तो तुममें भी खुद सा जमाल देता है।
मुन्तज़िर क्यूँ है, करामात का सब धोख़ा है,
हरेक ज़िस्म में वो सब कमाल देता है।
बहक ना जाये कहीं जीस्त,लड़खडाये ना,
रूह को वो ही तो उज़ले ख्¸याल देता है।
कहीं मैं भूल ना जाऊँ खुदी को दुनिया में,
नया ही रोज़ मुझे इक सवाल देता है।
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