संगीता गांधी
अपने अलाने जी ने एलान किया - अब से अपने दल के सभी बड़े बुजुर्ग फलाने मार्गदर्शक मंडल में जाएंगे।
सारे फलाने यूँ तड़प उठे मानों पजामे में चींटी घुस गयी हो।
- ये तो गलत है। अलाने जी, हम सब तो अभी जिंदा हैं! हमें मूर्तियाँ काहे बना रहे हैं?
- मार्गदर्शक मंडल में भेज रहे हैं, मरने के बाद आप लोगों की मूर्तियाँ भी बनवा देंगें।
अलाने जी ने खीसें निपोरते हुए कहा।
- ये क्या बात हुई, हम क्या समझते नहीं! मार्गदर्शक मंडल का मतलब मूर्ति बनाकर एक साइड पर बिठा देना ही है।
एक सबसे बुजुर्ग फलाने जी फट पड़े।
- बुजुर्ग फलाने जी चुप रहिए, जो बनाया जा रहा है, बन जाइये! दूसरे दल में देखिए बुजुर्ग अध्यक्ष को दफ्तर से उठा कर बाहर पटक दिया गया था।
एक मैडम ने सारे दल को मूर्ति बनाकर रखा है! प्रधान सेवक तक मूर्ति को बना दिया!
आप लोगों को तो सम्मान से मार्गदर्शक मंडल दिया जा रहा है।
अब उसमें आप खुद को मूर्ति समझें या जिंदा इंसान ये आप लोगों की मर्जी!
अलाने जी ने दो टूक फैसला सुना दिया।
सारे फलाने चुप हो गए। एक बोला - हमें कहीं का राज्यपाल ही बना दें।
अलाने जी ठहाका मार कर हँसे - भाई फलाने, वो भी तो मूर्ति ही होता है। हाँ, चलिये जो ज्यादा तड़प रहे हैं,उन्हें पूर्ण राज्यों का राज्यपाल बना देते हैं। मूर्ति बनकर वहाँ बैठे रहें।
पर अपने सबसे तेज तर्रार फलाने को हम एक केंद्र शासित प्रदेश का राज्यपाल बनाएंगे। कारण उधर का मुख्यमंत्री बहुत धरना देता है। उसके धरने को जो धर दे वो बन्दा चाहिए।
- हम मार्गदर्शक मंडल की मूर्ति ही रहेंगे क्या? बुजुर्ग फलाने फिर तड़पे!
- फलाने जी, जिस धरने वाले कि बात कर रहे हैं, उसने अपने दल के सारे पुराने माल को बाहर फेंक दिया है। हम आप लोगों को स्टोर रूम में सहेज रहें हैं! शुक्र मनाइये!
अलाने जी ने जबरदस्त जुमला उछाला।
- चलिए अलाने जी, हम मार्गदर्शक मंडल की मूर्ति बनने को तैयार हैं। पर इस स्टोर रूम की मूर्ति को कभी - कभी बाहर निकाल कर कोई उदघाटन, फीता कटवाने का काम तो करवा लीजिएगा!
- हाँ, ये बात मान लेते हैं, वैसे भी आप तो जिंदा मूर्ति हैं। इस देश में तो कई सदियों पुरानी मूर्तियों पर भी राजनीति हो जाती है।
सारी मूर्तियाँ जोर से हा हा हा करने लगीं।
सारे फलाने यूँ तड़प उठे मानों पजामे में चींटी घुस गयी हो।
- ये तो गलत है। अलाने जी, हम सब तो अभी जिंदा हैं! हमें मूर्तियाँ काहे बना रहे हैं?
- मार्गदर्शक मंडल में भेज रहे हैं, मरने के बाद आप लोगों की मूर्तियाँ भी बनवा देंगें।
अलाने जी ने खीसें निपोरते हुए कहा।
- ये क्या बात हुई, हम क्या समझते नहीं! मार्गदर्शक मंडल का मतलब मूर्ति बनाकर एक साइड पर बिठा देना ही है।
एक सबसे बुजुर्ग फलाने जी फट पड़े।
- बुजुर्ग फलाने जी चुप रहिए, जो बनाया जा रहा है, बन जाइये! दूसरे दल में देखिए बुजुर्ग अध्यक्ष को दफ्तर से उठा कर बाहर पटक दिया गया था।
एक मैडम ने सारे दल को मूर्ति बनाकर रखा है! प्रधान सेवक तक मूर्ति को बना दिया!
आप लोगों को तो सम्मान से मार्गदर्शक मंडल दिया जा रहा है।
अब उसमें आप खुद को मूर्ति समझें या जिंदा इंसान ये आप लोगों की मर्जी!
अलाने जी ने दो टूक फैसला सुना दिया।
सारे फलाने चुप हो गए। एक बोला - हमें कहीं का राज्यपाल ही बना दें।
अलाने जी ठहाका मार कर हँसे - भाई फलाने, वो भी तो मूर्ति ही होता है। हाँ, चलिये जो ज्यादा तड़प रहे हैं,उन्हें पूर्ण राज्यों का राज्यपाल बना देते हैं। मूर्ति बनकर वहाँ बैठे रहें।
पर अपने सबसे तेज तर्रार फलाने को हम एक केंद्र शासित प्रदेश का राज्यपाल बनाएंगे। कारण उधर का मुख्यमंत्री बहुत धरना देता है। उसके धरने को जो धर दे वो बन्दा चाहिए।
- हम मार्गदर्शक मंडल की मूर्ति ही रहेंगे क्या? बुजुर्ग फलाने फिर तड़पे!
- फलाने जी, जिस धरने वाले कि बात कर रहे हैं, उसने अपने दल के सारे पुराने माल को बाहर फेंक दिया है। हम आप लोगों को स्टोर रूम में सहेज रहें हैं! शुक्र मनाइये!
अलाने जी ने जबरदस्त जुमला उछाला।
- चलिए अलाने जी, हम मार्गदर्शक मंडल की मूर्ति बनने को तैयार हैं। पर इस स्टोर रूम की मूर्ति को कभी - कभी बाहर निकाल कर कोई उदघाटन, फीता कटवाने का काम तो करवा लीजिएगा!
- हाँ, ये बात मान लेते हैं, वैसे भी आप तो जिंदा मूर्ति हैं। इस देश में तो कई सदियों पुरानी मूर्तियों पर भी राजनीति हो जाती है।
सारी मूर्तियाँ जोर से हा हा हा करने लगीं।
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