सुशील भोले
चलो गांव की ओर जहां सूरज गीत सुनाता है
तारों के घुंघरू बांध, चंद्रमा नृत्य दिखाता है ..
अल्हड़ बाला - सी इठलाती, नदी जहां से बहती है
मंद महकती पुरवाई, जहां प्रेम की गाथा कहती है
बूढ़ा बरगद पुरखों की, झलक जहां दिखलाता है ..
रिश्ते - नाते जहां अभी भी मन को पुलकित करते हैं
दादी - नानी के नुस्खे, जीवन में रस - रंग भरते हैं
पूरा कस्बा परिवार सरीखा जहां अभी भी रहता है ..
भाषा जिसकी भोली - भाली, तुतलाती बेटी - सी प्यारी
जहां संस्कृति पल्लवित होती जैसे मालिन की फुलवारी
धर्म जहां हिमालय जैसा, अडिग आशीष लुटाता है ..
सांझ ढले जब ग्वाले की, बंशी की तान बजती है
गो- धूली गुलाल सरीखी, जब माथे पर सजती है
तब पूरा परिवेश जहां का, गोकुल - सा बन जाता है ..
संजय नगर, रायपुर ( छ.ग.)
मो.नं.- 98269 92811
चलो गांव की ओर जहां सूरज गीत सुनाता है
तारों के घुंघरू बांध, चंद्रमा नृत्य दिखाता है ..
अल्हड़ बाला - सी इठलाती, नदी जहां से बहती है
मंद महकती पुरवाई, जहां प्रेम की गाथा कहती है
बूढ़ा बरगद पुरखों की, झलक जहां दिखलाता है ..
रिश्ते - नाते जहां अभी भी मन को पुलकित करते हैं
दादी - नानी के नुस्खे, जीवन में रस - रंग भरते हैं
पूरा कस्बा परिवार सरीखा जहां अभी भी रहता है ..
भाषा जिसकी भोली - भाली, तुतलाती बेटी - सी प्यारी
जहां संस्कृति पल्लवित होती जैसे मालिन की फुलवारी
धर्म जहां हिमालय जैसा, अडिग आशीष लुटाता है ..
सांझ ढले जब ग्वाले की, बंशी की तान बजती है
गो- धूली गुलाल सरीखी, जब माथे पर सजती है
तब पूरा परिवेश जहां का, गोकुल - सा बन जाता है ..
संजय नगर, रायपुर ( छ.ग.)
मो.नं.- 98269 92811
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