सुशील यादव
तिनका - तिनका तोड़ के,रख देता है आज
कहीं अकड़ की बस्तियां,फिजूल कहीं समाज
परिभाषा देशहित की, पूछा करता कौन
एक बहुत खर बोलता, दूजा रहता मौन
भव - सागर की सोचते, करने अब की पार
गिन - गिन अभी चुका रहे, सबके कर्ज उधार
माल्या गया लूट कर, हथिया के सब माल
किये हिफाजत लोग थे, चोर - चोर, चंडाल
देश कभी ये देखना, गति कितनी विकराल
जल्दी - जल्दी जीम के, खाली कर पंडाल
मुंह क्यों अब है फाड़ता, कमर तोड़ है दाम
किसको कहते आदमी, चुसा हुआ है आम
तिनका - तिनका तोड़ के,रख देता है आज
कहीं अकड़ की बस्तियां,फिजूल कहीं समाज
परिभाषा देशहित की, पूछा करता कौन
एक बहुत खर बोलता, दूजा रहता मौन
भव - सागर की सोचते, करने अब की पार
गिन - गिन अभी चुका रहे, सबके कर्ज उधार
माल्या गया लूट कर, हथिया के सब माल
किये हिफाजत लोग थे, चोर - चोर, चंडाल
देश कभी ये देखना, गति कितनी विकराल
जल्दी - जल्दी जीम के, खाली कर पंडाल
मुंह क्यों अब है फाड़ता, कमर तोड़ है दाम
किसको कहते आदमी, चुसा हुआ है आम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें