इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

पीपल का पेड़

डॉ. गीता गीत

          आज धीरेन्द्र दा के सारे कार्यक्रम सम्पन्न हो गये। एक - एक करके सभी मेहमान जा चुके हैं। सबेरे पंकज भी परिवार सहित अपने मामा ससुर के घर चला गया है। पर जाते- जाते धीरा बौदी से बोल गया है- '' मां, तुम खूब सोच लो, मैं कल आऊंगा। मुझे तुम्हारे फैसले का इंतजार है। तुम सोच समझकर कल अपना फैसला बता देना। इक्का - दुक्का मिलने वालों का क्रम जारी है। फिर भी लग रहा है चारों ओर निस्तब्धता व्याप्त है। शाम घिर आयी है।''
          धीरा घर के आंगन के पीपल के पेड़ की घनेरी छाया तले बने चबूतरे पर बैठी अतीत की यादों में खोई हुई है। उसकी यादों के आकाश में घने बादल छाये हुये हैं। कभी -  कभी बूंदा - बांदी भी शुरू हो जाती है। साड़ी के पल्लू से उन्हें पोंछती हुई धीरा सोचती जा रही है।
पीपल का यह पेड़ धीरेन्द्र और धीरा के प्रेम, आनंद, खुशी और संघर्ष के एक - एक पल का साक्षी है।शादी की 25 वीं सालगिरह पर इस पेड़ पर रंगीन विद्युत झालरों से कितना सुंदर सजाया गया था। बहुत सारे लोगों को आमंत्रित किया गया था। धीरेन्द्र के बहुत सारे मित्र, पड़ोसी और धीरा की भी बहुत सी सहेलियों को बुलाया गया था। धीरा की रिश्ते की ननद काकूली मित्रा बहुत बड़ा केक लेकर आयी थी। सभी के आग्रह पर जब दोनों ने मिलकर केक काटा तब तालियों की गड़गड़ाहट से पीपल प्रांगण गूंज उठा था। धीरेन्द्र के दोस्तों ने दोनों के ऊपर चुनरी तान दी थी और शुभ दृष्टि कार्यक्रम के लिये मजबूर कर दिया। धीरेन्द्र धीरे से मुस्करा दिये और धीरा की ओर देखा- धीरा आज भी सकुचा रही थी ठीक पच्चीस साल पहले की तरह। परंतु दोस्त सहेलियां कहां मानने वाली थीं। ज्यों ही धीरा ने धीरेन्द्र की ओर देखा। सभी हा - हा करके हंस पड़े।
          पच्चीस साल पहले आज ही के दिन जब धीरेन्द्र पाल लंबा - सा टोपोर '' दूल्हे की टोपी'' लगाकर धोती - कुर्ता पहनकर धीरा मजूमदार को ब्याहने आए थे। तब धीरा दुल्हन बनी पान के पत्ते से चेहरा ढके, पटे पर बैठी थी और उसके जामाय बाबू ( जीजा जी) दादा ( बड़े भाई) और दादा के दोस्त लोग उसको मण्डप में लाये थे। धीरेन्द्र खड़े थे और सभी ने सात पाक ( सात फेरे ) करवाये थे। पान के पत्ते से चेहरा ढके धीरा को शुभ दृष्टि के समय धीरेन्द्र की ओर देखने के लिए कहा गया तो उसे बहुत संकोच हो रहा था परंतु पंडित जी बार - बार कह रहे थे कि शुभ दृष्टि है एक दूसरे की ओर देखो। जब उसने पान का पत्ता हटाकर धीरेन्द्र की ओर देखा तो धीरेन्द्र भी मधुर मुस्कान लिए उसी की ओर देख रहे थे। उसको हंसी आ गयी थी। सभी उपस्थित जन ताली बजा - बजाकर हंसन लगे थे हंसी का एक दौर - दौरा सा पड़ गया था।
         बिदाई की बेला में मां सपना और पिता सुजीत मजूमदारए काकूए जेठूए जेठी मांए दादाए जामाय बाबूए दीदी सभी से लिपटकर वह कितना रोई थीण् मायके से विदा होकर दूल्हे की कार जब चौरास्ते से ससुराल के लिए मुड़ी तब उसका रुदन भी थम गया था और वर ;दूल्हेद्ध के साथ ससुराल पहुंचने की खुशी चेहरे पर झलक आई थीण्
ससुराल पहुंचते ही घर के दरवाजे पर सर्वप्रथम बड़ी सी एक मछली के दर्शन कराये गये थेण् यह बंगालियों का एक नियम है कि प्रत्येक शुभ कार्य में मछली जरूर शामिल की जाती हैण् सासुड़ी मां उसे रसोई घर तक ले गई थीण् रसोई घर में सभी बर्तनों में खाद्य सामग्री भरी हुई थीण् गैस पर दूध चढ़ा था जो उफनकर गिर रहा थाण् सासुडी मां बोलीए ष्ष्बोऊमां उफनता दूध देखो.भगवान की कृपा से और तुम्हारे आगमन से हर चीज यहां उफान पर रहेण्ष्ष्
धीरा के आगमन के बाद ससुराल का कपड़े का व्यवसाय बहुत बढ़ाण् धीरेन्द्र के बड़े भाई रामेन्द्र का व्यवसाय थाए परंतु दोनों भाई मिलकर संभालते थेण् घर में सुख शांति थीण् सभी कुछ अच्छा चल रहा थाए तभी एक दिन धीरेन्द्र धीरा को लेकर अकेले ही पिक्चर देखने चले गयेण् जब टॉकीज से लौटकर घर आयेण् बड़े भाई ने डांट दियाण् थोड़ी कहासुनी होते.होते बात इतनी बढ़ गई कि धीरेन्द्र ने क्रोध में आकर घर ही छोड़ दिया और धीरा को लेकर जबलपुर आ गयेण्
कहां कलकत्ता महानगर और कहां यह छोटा सा नगरण् यहां किराए के दो कमरों के मकान में शिफ्ट हुएए एक छोटा कमरा जिसे रसोई घर बनाया गयाण् दूसरे कमरे में बैठक बनाई गई जो रात को बेडरूम बन जाता थाण् पीने के पानी के लिए सड़क के नल पर लंबी कतार पर खड़े होना पड़ता थाण्
धीरेन्द्र हर पल उसे दिलासा देते रहतेए ष्ष्धीरा रानी घबराना नहींण् एक दिन तुम्हारे लिए बहुत बड़ा आलीशन घर बनवाऊंगाण् चारों ओर पेड़ पौधे होंगेण् सामने बड़ा सा बागीचा होगाण् पेड़ पर झूले बंधे होंगेण् तुम झूले में झूलोगी और तुम्हें झूलता देखकर मुझे बहुत खुशी होगीण्ष्ष्
धीरेन्द्र ने कपड़े का धंधा शुरू कियाण् कलकत्ता के दोस्तों से सम्पर्क कर ट्रांसपोर्ट से कपड़े मंगाने लगाण् उसकी मितव्ययता से धंधा खूब चल निकला उसने एक दुकान खरीद लीण् धीरा भी
धीरेन्द्र के कामों में सहयोग करने लगीण्
खाली समय में धीरा और धीरेन्द्र समाज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतिए छोटे बच्चों के नाटकए नृत्यए बच्चों का मेकअपए ड्रेसअपए मंच संचालनए पारितोषिक वितरण दोनों की हॉबी बन गईण् बहुत से लोगों से उनका परिचय भी बढ़ गयाण् दोनों पति.पत्नी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गयेण् पंकज के रूप में घर में नए मेहमान ने जन्म लियाण् घर में नन्हीं किलकारियां गूंजने लगीण् पंकज के पहले जन्मदिन पर बहुत बड़ी पार्टी रखी गईण् कितना आनंद और उत्सव बनाया गया थाण् पंकज स्कूल जाने लायक हुआण् उसे शहर के सबसे अच्छे स्कूल में भर्ती कराया गयाण् वक्त गुजरता रहाण्
धीरेन्द्र ने एक बड़ा प्लाट खरीदाए धीरा को वह प्लाट दिखाने ले गयाण् प्लाट में पहले से ही एक पीपल का पेड़ लगा हुआ थाण् धीरेन्द्र ने कहाए ष्ष्इस पीपल के पेड़ को यहां से हटा देंगेण् काफी जगह निकल आएगीण्ष्ष् धीरा तुरंत बोल पड़ीए ष्ष्नहींए आप इस पेड़ को कदापि नहीं हटाऐंगेण् आप जानते हैं कि मेरी मां कहा करती थी कि पीपल पितृ दोष से मुक्त करता हैण् छत्तीस कोटि देवी देवता इस पेड़ पर विश्राम करते हैं और इसकी पत्तियां प्राण वायु देती हैंण् आपने वायदा किया थाए मकान बनवायेंगेए मकान के सामने बागीचा लगवायेंगे और पेड़ पर झूला डलवायेंगेण् मुझे झूला झूलता देख आपको खुशी होगी.देखिए आप अपने वायदे से मुकरना नहींण्ष्ष्
धीरेन्द्र ने बहुत आलीशान मकान बनवायाण् पीपल के पेड़ के चारों तरफ चबूतरा बनायाण् सामने शानदार बगीचाए बगीचे में ही एक तरफ मछली पालने के लिए हौदी बनवायी और पीपल के पेड़ पर झूला डलवा दिया गयाण्
बाउन्ड्री वाल के लिये जब खुदाई हो रही थीए तब नींव के नीचे से हनुमान जी की एक प्रतिमा निकलीण् धीरा.धीरेन्द्र बहुत खुश हुएण्

हनुमान जी की मूर्ति को मकान के अन्दर ही एक कमरे में स्थापित कर दिया गयाण् बहुत धूमधाम से मकान का उद्घाटन किया गयाण् हनुमान जंयती पर विशाल भंडारा रखा गयाण् यह क्रम हमेशा के लिये चालू हो गयाण् बच्चेए बूढ़े जवान सभी धीरेन्द्र को
धीरेन्द्र दा और धीरा को धीरा बौदी ;भाभीद्ध पुकारने लगेण्
पीपल के पेड़ पर झूला डाला गयाण् पंकज और उसका बच्चा पार्टी दिन भर पीपल के इर्द.गिर्द शोर मचातेए झूला झूलते रहतेण् धीरा भी कभी.कभी उनके साथ झूलतीण् उन बच्चों से उनकी ही भाषा में बात करतीण् बच्चों की धमा चौकड़ी उसे बहुत अच्छी लगती थीण्
एक दिन पंकज झूले से गिर गयाण् उसके माथे में बहुत चोट लगीण् न्यूरोसर्जन ने कहाए ष्ष्हम इलाज कर रहे हैं आप दुआ मांगियेण्ष्ष् दोनों पति.पत्नी कितना डर गये थेण् रात.भर दोनों हनुमान जी की स्तुति करते रहेण् सुबह डॉक्टर ने बताया था.पकंज खतरे से बाहर हैण् तब जान में जान आई थीण्
पंकज पढ़ाई में तेज थाण् बारहवीं में जब वह मैरिट लिस्ट में आयाए पंकज के साथ ही माता.पिता की तस्वीर भी दैनिक अखबार में छपी थीण् धीरेन्द्र जहां कहीं भी जातेए अखबार बैग में रख ले जातेण् लोगों को गर्व से दिखाते.देखो यह मेरा बेटा पंकज हैए मैरिट में पास हुआ हैण् लोग ष्मिठाई खिलाओष् कहते और तुरन्त ही बैग से निकालकर मिठाई भी खिलातेण्
पंकज आगे की पढ़ाई के लिये पूना जाना चाहता थाण् धीरा.
धीरेन्द्र दोनों इकलौते बेटे को बाहर नहीं भेजना चाहते थेण् धीरेन्द्र दा ने कहा.ष्ष्बेटा घर की दुकान हैण् मैं कब तक अकेले काम करूंगाण् तुम यहीं रहकर कुछ करोष्ष्.पंकज बोला.ष्ष्बाबा यह कस्बाई शहर हैए यहां कोई स्कोप नहीं है आगे बढ़ने के लियेण् मुझे बाहर जाना ही होगाण्ष्ष् पंकज पूना चला गयाण्
जिस दिन पंकज पूना के लिये रवाना हुआए सारा दिन दोनों पीपल के पेड़ के नीचे बैठे रहेण् धीरेन्द्र ने दुकान तक नहीं खोलीए कई दिनों तक उनसे खाना तक ठीक से नहीं खाया गयाण् पीपल तले बैठकर पंकज की शरारतों को याद कर कभी हंसते और कभी रोने लगते थेण्
पंकज ने पूना से पीण्ईण्टीण् के बाद एम टेक किया और वहीं एक अच्छी कंपनी में चुन लिया गयाण् कंपनी की तरफ से उसे आस्ट्रेलिया भेज दिया गयाण् अब फोन पर ही बातें हो पातीए वह भी बहुत कमय क्योंकि पंकज को काम से फुरसत ही नहीं मिलती थीण् वह हमेशा व्यस्त रहता थाण् धीरा बौदी और धीरेन्द्र दा ने अपना मन अब बेसहारा अनाथ बच्चों की देखरेख और उनकी सहायता में बिताना आरम्भ कियाण् जिस दिन दुकान की छुट्टी रहतीए दोनों ग्रामीण अचलों की ओर निकल जातेण् जहां तक हो सकता जरूरतमंदों की सहायता करतेण् इसी को जीवन का उद्देश्य बना लियाण् अब मन में कोई क्लेश नहीं रहता थाण् सुख और संतोष थाण्
पीपल के पेड़ के पुराने पत्ते पीले होकर झड़ गये हैंण् नई.नई कोपलें फूटी हैंत्र पूरा पेड़ हरियाली से सज गया हैण् ठंडी.ठंडी हवा के झोंके चल रहे हैंण् धीरा बौदी और धीरेन्द्र यादों में खोये हुये हैंण् तभी धीरेन्द्र दा के मोबाइल की घंटी बजीण् साथ की दुकान का अजय भौमिक का फोन थाण् अजय बोला.ष्ष्दादा मेरे साथ एक बच्ची हैण् मैं बहुत परेशानी में हूं आपसे मिलना चाहता हूंण्ष्ष्
धीरेन्द्र दा जानते थे कि अजय भौमिक सज्जन आदमी हैंए सो उन्होंने उसे घर बुला लियाण् अजय भौमिक थोड़ी ही देर में बारह तेरह वर्षीय एक बालिका को लेकर उपस्थित हुआण् उसने संक्षेप में उसकी जो कहानी सुनाई उसे सुनकार धीरेन्द्र दा द्रवित हो गये और उस लड़की को एक रात के लिये अपने घर पर पनाह देने के लिए राजी हो गएण्
रात अधिक हो चुकी थी अजय भौमिक उस लड़की को जिसका नाम सोमा थाए धीरेन्द्र दा के घर छोड़कर चला गयाण्
सुबह नाश्ते के बाद उस लड़की सोमा ने अपनी जो करुण कहानी सुनाई वह रोंगटे खड़ेकर देने वाली थीण्
सोमा के पिता हरियाणा में एक किसान थेण् पांच भाई.बहनों में वह चौथे नम्बर की थीण् गांव के स्कूल में पांचवीं कक्षा में पढ़ती थीण् इस साल फसल अच्छी हुई थीण् पिता ने सोचा था बड़ी बेटी की शादी कर देंगेए तभी बेमौसम की बरसात ने सारी फसल खराब कर दीण् कहीं से कोई सहायता या मुआवजा न मिलने के कारण सोमा के पिता ने आत्महत्या कर लीण् बड़ी बेटी ने कुएं में कूदकर जान दे दीण् सौतेली मां ने कुछ दिनों बाद सोमा को एक बिहारी सेठ के हाथों बेच दियाण् बिहारी उसे बिहार ले गयाण् बिहारी की पत्नी उससे दिन भर काम करवाती थी और भरपेट खाना भी नहीं देती थीण् बिहारी का जवान बेटा सोमा पर बुरी नजर रखता था और उससे छेड़खानी करता रहता थाण् एक दिन मौका पाकर वह वहां से भाग गईण् स्टेशन में एक कोने में दुबकी बैठी थीए तभी एक उत्तर प्रदेशी उसे बहला.फुसलाकर दिल्ली ले गयाण् दिल्ली में सोमा के साथ जो कुछ हुआए उसे बताने की आवश्यकता नहीं हैण् हमारी सरकार बालिका शिक्षा और बालिका रक्षा का डिंडोरा भर पीटती हैण् वास्तव में लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैंण् दिल्ली से एक बदमाश सोमा को यहां ले आयाण् उसने उसे चहारदवारी में कैद करके रख दियाण् दिनभर वह घर का काम करती और रात को आदमी अपनी मनमानी करताण् एक दिन शाम को मौका पाकर सोमा दीवाल फांदकर वहां से भागीण् मोहल्ले के आवारा लड़कों की नजर उस पर पड़ गईण् वे उसके पीछे दौड़ेण् भागते.भागते वह अजय भौमिक की दुकान में छुप गईण् अजय को देख उसने मुंह पर ऊंगली रखकर चुप रहने का इशारा कियाण् थोड़ी देर में लड़के भी पीछा करते हुये आ पहुंचेण् उन्होंने अजय से पूछा कि किसी लड़की को देखा हैण् अजय पूरा माजरा समझ गये थेण् उसने आगे की ओर इशारा कर दियाण् लड़के आगे भाग गयेण् अजय ने सोमा की कहानी सुनी और उसे धीरेन्द्र दा के पास ले गयाण्
कुछ दिनों बाद धीरेन्द्र दा ने पुलिस एवं कोर्ट की कार्यवाही पूर्ण कर सोमा को अपनी मानस पुत्री बना लियाण् अब धीरेन्द्र दा के घर सोमा पारिवारिक सदस्य जैसी रहती हैण् वह इस घर से और धीरा बौदी से इतना घुलमिल गई है कि कोई कह नहीं सकता सोमा इस परिवार की बेटी नही हैण् उसने बंगला बोलना भी सीख लिया हैण्
एक दिन धीरेन्द्र दा तीन दिन के एक शिशु बालक को घर ले आयेण् पता चला धीरेन्द्र दा के दोस्त के बेटे ने अस्पताल खोला हैण् कोई मां किसी मजबूरी में अपने दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर भाग गई हैण् सोमा और धीरा बौदी उसे सहर्ष रखने के लिये तैयार हो गयेण् उस बच्चे को भी कानूनी प्रक्रिया पूरी कर गोदनामा ले लिया गयाण्
उस बच्चे का नामकरण संस्कार आयोजन किया गयाण् उसका नाम रखा गया अजितोषण् सभी उसे जीत कहकर पुकारने लगेण् दोनों बच्चों की परवरिश अच्छे से होने लगीण् पंकज को फोन कर सभी बातों से अवगत करा दिया गयाण् पकंज ने सहर्ष स्वीकृति दे दीण् कहां.ष्ष्मां.बाप आप लोग अकेले थेण् अच्छा हुआ आपको सहारा मिल गयाण्ष्ष्
पंकज की शादी को लेकर दोनों चिंतित हैंण् एक अच्छे घराने की पढ़ी.लिखी संस्कारी लड़की के घरवालो से बातचीत चल ही रही थी कि पंकज का फोन आ गयाण्
आस्ट्रेलिया में ही उसकी मुलाकात नीलिमा से हुईण् नीलिमा भी उसी कंपनी में काम करती है जहां पंकज हैण् दोनों ने प्रेमविवाह कर लिया हैण् धीरेन्द्र थोड़े विचलित जरूर हुए परंतु पंकज से बोलेए ष्ष्एक बार आकर बहू दिखा जाओण्ष्ष्
शादी के दो साल बाद पंकज आयाण् तब तक नीलिमा की गोद में धीरेन्द्र दा की पोती मोना आ चुकी थीण् एक सप्ताह की छुट्टी दोस्तों से मिलने मिलाने में निकल गयीण् फिर जाने वाला दिन भी आ गयाण् पंकज नीलिमा और मोना को लेकर चला गयाण् जितना समय भी मिलाए दोनों दादा.दादी ने मोना को बहुत प्यार कियाण्
सोमा अब पच्चीस साल की हो चुकी हैण् जीत ष्ष्अजितोषष्ष् भी छ: साल का हो गया हैण् जीत क्लास वन पास करके क्लास टू में गया हैण् देखने में बहुत प्यारा हैण् पढ़ने में तेज है धीरेन्द्र दा को वह बाबा और धीरा बौदी को मां कहता हैण् सोमा भी मां.बाबा कहकर ही सम्बोधित करती हैण् घर से बाहर निकलने में अभी सोमा डरती हैण् बाहर सभी लोग उसे भेड़िया जैसे नजर आते हैंण् इसलिये उसे घर पर ही पढ़ाया जाता हैण्
इसी बीच पकंज की एक बेटी टीना ने जन्म लिया हैण् पंकज सबकी फोटो वाट्सअप पर भेज देता हैण् मां.बाबा फोटो देखकर ही संतोष कर लेते हैंण् दोनों पोतियां मोनाए टीना बहुत प्यारी और सुन्दर हैंण् दोनों पंकज पर गई हैंण्
हनुमान जयंती करीब आ गई हैए इसलिये दोनों पति.पत्नी कार्यक्रम संबंधी योजना बना रहे हैंण् एकाएक धीरेन्द्र दा.धीरा बौदी से बोलेए ष्ष्सुनो धीरा एक पते की बात तुमसे कह रहा हूंण् जीवन में सबसे बड़ी खुशी उस काम को करने से होती है जिसे लोग कहते हैं कि तुम कर नहीं पाओगेण् दूसरी बातए साहस और दृढ़ निश्चय जादुई ताबीज हैए जिसके आगे कठिनाइयां दूर हो जाती हैं और बाधाएं उड़न छू हो जाती हैंण् प्रत्येक व्यक्ति को हर परिस्थितियों का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहियेण् फिर धीरा को समझाते हुये बोले.देखो जीवन का समापन एक दिन होना ही है.चाहे हम हों या तुम होए दुनिया से जाना ही पड़ता हैण् प्रत्येक व्यक्ति यहां चिंरजीवी होकर नहीं आया हैण् मृत्यु जीवन की अंतिम सच्चाई हैण्ष्ष्
अब तक सुनते.सुनते धीरा का धैर्य जवाब दे गयाण् वह तुनककर बोलीए ष्ष्आज आपको क्या हो गया हैण् इस तरह की बातें क्यों कर रहें होघ् आपकी तबियत तो ठीक हैघ्ष्ष्
ष्ष्हांए मैं ठीक हूं परन्तु तुम्हें कुछ बहुत जरूरी बातें समझाना चाहता हूंण् मैंने वसीयतनामा तैयार कर लिया हैण् तीन लाख रुपये सोमा के नाम के फिक्स कर दिया हैण् जीत के नाम दो लाख फिक्स किया हैण् सोमा की तुम शादी कर देनाण् जीत के बड़े होने तक रुपया कई गुना बढ़ जायेगाण् वह पढ़ाई पूरी कर अपने पैर पर खड़ा हो जायेए मैं यही सोचता हूंण्
ष्ष्पंकज हमारा इकलौता लाड़ला बेटा हैए इसलिये मैंने पूरी जायदाद और दुकान उसके नाम कर दी हैण् मकान तुम्हारे नाम से रहेगाए तुम्हारे बाद पंकज का हो जायेगाण्ष्ष् तभी जीत दौड़कर बाहर आयाण् हाथ पकड़कर दोनों से बोलाए ष्ष्मां.बाबाए आप कितनी रात तक पीपल के नीचे बैठोगेए चलो खाना खाकर सोयेंगेण्ष्ष् जीत की बातों को सुनकर धीरेन्द्र दा बोलेए ष्ष्इसे हमारी कितनी चिंता हैण् चलोण्ष्ष् अंदर जाते हुये पुन: वे धीरा से बोलेए ष्ष्देखोए किसी भी हाल में तुम हनुमान जी का भंडारा नहीं रोकनाण्ष्ष्
उसी रात को धीरेन्द्र दा को ब्रेन हेमरेज का अटैक आ गयाण् उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा बहुत से लोग अस्पताल देखने पहुंचेण् ऐसा लग रहा था जैसे मिनी बंगाल बन गया है अस्पतालण् दो दिन बाद धीरेन्द्र की थोड़ी हालत सुधरीण् हनुमान जयंती का भंडारा धीरा बौदी ने कराया और इसी दिन धीरेन्द्र दा को नागपुर भी ले जाया गयाण् जाने क्यों लोगों के मन में यह विश्वास जड़ जमा चुका है कि नागपुर ले जाने से हर बीमारी का अच्छा इलाज हो जाता हैण् धीरेन्द्र दा कुछ.कुछ अच्छे हो गयेण् उन्हें घर लाया गयाण् मिलने जुलने वालों में से किसी ने कहा.ष्ष्हनुमान जी की प्रतिमा को घर के बाहर मंदिर बनाकर रखना चाहियेण्ष्ष् धीरा बौदी ने वही कियाण् हनुमान जी के मंदिर को बाहर पीपल के पेड़ के सामने बनवा दियाण् देखते.देखते एक साल बीत गयाण् पुन: हनुमान जयंती आ गईण् पर दो दिन पहले पुन: धीरेन्द्र दा को अटैक आ गयाण् धीरेन्द्र दा को अस्पताल में भर्ती कर दिया गयाण् धीरा बौदी ने अब भी धीरज नहीं खोयाण् हनुमान जी का भंडारा धूम धाम से कियाण् दो.तीन दिन बाद धीरेन्द्र दा ने यह असार संसार छोड़ दियाण् पंकज एक दिन पहले आ चुका था पिता का क्रियाकर्म उसी ने कियाण् तेरहवीं के कार्यक्रम के बाद वह धीरा से बोला.ष्ष्मां अब तुम यहां अकेले रहकर क्या करोगीघ् मकान.दुकान सब कुछ बेच दो और मेरे साथ पूना चलोण् तुम्हारी बहूमां की भी यही इच्छा है
धीरा रोते हुए बोली.ष्ष्बेटा मैं ष्सोमा और जीतष् को छोड़कर कैसे जा सकती हूंण् तुम्हारे पिता ने उनकी जिम्मेदारी मुझको सौंपी हैण् कहो तो उन्हें भी ले चलते हैंण्ष्ष् पंकज ने कहाए ष्ष्नहीं मां हम उन्हें अपने साथ नहीं रख सकतेण् हमारी स्वयं की दो बेटियां हैंण्क्या आपको अपनी पोतियों से प्यार नहीं हैघ्ष्ष् धीरा बौदी बोली.ष्ष्क्यों नहींए तुम हमारे इकलौते बेटे होण् तुमसे हम बहुत प्यार करते हैं और तुम्हारी बच्चियां हमारी पोतियां हैण् तुम जानते हो नघ् मूलधन से ब्याज ज्यादा प्यारा होता हैण्ष्ष् पंकज बोलाए ष्ष्फिर ये दोनों तुम्हारे कोई नहीं हैंण् ये अनाथ हैंण् मैं सोमा को नारी निकेतन में और जीत को बालनिकेतन में छोड़ आता हूंण् मां तुम कल तक सामान समेटो और हमारे साथ चलोण्ष्ष् धीरा चुप बैठी थी पंकज बोलाए ष्ष्मां तुम्हें एक दिन का समय देता हूंण् आज मैं नीलिमा के मामा के घर जा रहा हूंण् तुम कल अपना फैसला सुना देनाण्ष्ष्
पंकज की बातें सुनकर धीरा अवाक् थीण् उसका दिल बैठा जा रहा थाण् जिस सोमा को कुछ देर न देखने से बैचेनी लगने लगती हैए जिस जीत को खिलाये बिना कौर गले से नहीं उतरताए उन्हें कैसे आश्रम भिजवायेगीण्
पंकज के पास घर.द्वारए नौकरीए संपत्तिए बीबी.बच्चे सब कुछ हैए परंतु सोमा और जीत का उसके सिवाय कोई नहीं हैण् एक.से.एक तूफानी हवा चलने लगीण् धीरा घर के अंदर चली गईण् सोमा और जीत उसका बिस्तर में इंतजार कर रहे थेण् सोते.सोते धीरा ने अपने आप से कहा.ष्ष्वह बहादुर है और लोगों जैसी डरपोक नहींण् तमाम धमकियों और चेतावनियों के बावजूद वह वही काम करेगी जो उसे सही लगता हैण्ष्ष्
सुबह मुंह धोकर जब वह पीपल के पेड़ वाले चबूतरे पर बैठी थीए तभी गेट के पास कार आकर रुकीण् गेट खोलकर पंकज मां के पास आयाण् बोलाए ष्ष्हां मां क्या फैसला लिया तुमनेए शीघ्र बताओघ् तत्काल की टिकिट लेना है ग्यारह बजे की गाड़ी हैण्ष्ष्
धीरा बौदी ने खामोशी तोड़ते हुए कहा.ष्ष्बेटा तुम हमारी एक मात्र संतान होण् तुम्हारे पिता ने पूरी संपत्ति तुम्हें दे दी हैण् तुम हमारी पूरी दुनिया होए पूरा ब्रह्मांड होण् तुम्हारे बिना हमें और किसी चीज से लगाव नहीं हैए परन्तु बेटा ब्रह्मांड और ईश्वर एक दूसरे के पूरक हैंण् ईश्वर के बिना ब्रह्मांड अधूरा हैण् बेटा इन दोनों बच्चों में मुझे ईश्वर दिखाई देते हैंण् मुझे ब्रह्मांड नहीं मिल पायेगा कोई बात नहींण् पर मैं ईश्वर को नहीं छोड़ सकतीण् यही मेरा फैसला है और यह पीपल का पेड़़ इसे भी छोड़कर मैं नहीं जा सकतीण् इस पेड़ में मैं तुम्हारे बाबा की छवि रोज.रोज देखती हूंण्ष्ष्
पंकज गेट खोलकर गाड़ी स्टार्ट करके चला गयाण् धीरा उसे जाता हुआ देख रही थीण् उसकी आंखों से दो बूंद अश्रु जल गिरेण् तभी सोमा और जीत पीपल के पेड़ में डले झूले में झूलने लगेण् जीत पुकारने लगाए ष्ष्मां आओ नाए झूला झूलेंण्ष्ष् धीरा गई सोमा और जीत के साथ झूला झूलने लगीण् मंदिर की घंटी बजीए कई दर्शनार्थी हनुमान जी के दर्शन को आये थेण् दर्शन के बाद वे पीपल के पेड़ के पास आये और बोले.ष्ष्धीरा बौदी आप हिम्मत और साहस रखना हम सब आपके साथ हैंण्ष्ष्
धीरा बौदी ने हनुमानजी और पीपल के पेड़ के दर्शन किये और सेामा और जीत को लेकर घर के भीतर चली गयीण् बाहर पीपल के पत्ते हिलडुलकर संगीत पैदा कर रहे थेण् धीरा के दिल में भी एक संगीत सा बज रहा थाण् जिसक वाद्य यंत्र सोमा और जीत थेण् आज वह उनकी सगी मां बन गयी थी और पीपल का वह पेड़ मानो बाबा बनकर मुस्करा रहा थाण्

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