इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

डॉ. सुशील गुरू के पाँच छंद


कथन
 
तुमने कहा था कि नयनों से चला आना तुम,
नयनों से आया तो पलकों में बंद हो गया ।
अंतर छुआ तो चित चातक सा प्यासा हुआ,
प्राणों को छुआ तो प्राणों की सुगंध हो गया।
बाइबिल और कुरान की आयतों को छुआ,
तो मन रामचरितमानस का एक छंद हो गया ।
अधरों पे आया तो थोड़ा सा थरथराया,
कुछ और गुनगुनाया तो मन गुरुग्रन्थ हो गया।

स्पर्श
 
तुमने छुआ तो मुझे  जाने क्या हुआ है,
हुए प्रज्वलित दीपक अनेक रोम रोम में ।
महासिन्धु रोशनी के झिलमिलाने से लगे हैं,
चाँदनी के पुष्प खिले अंतस के व्योम में ।
तन में प्रवाहित हुई गंगा की पवित्रधारा,
स्वांति नेह झलका नैनों के दृष्टिकोण में।
पलकों के पोरों पर, अधरों के कोरों पर,
आमन्त्रण स्वत: मुखर हुआ मौन में ।

दृष्टि
तुमने देखा तो मानो सुधियों के फूल खिले,
सतरंगी रंग गई धूप की चुनरिया ।
चन्दन सा तन हुआ, चांदनी सा मन हुआ,
रोशनी में नहा गयी जलभरी बदरिया ।
नयनों से नयनों ने बोले अनबोले बोल,
कानों पे रख के कचनार की भुजरिया।
नेह के बुलउआ मिले, गले मिले बिना मिले,
गुपचुप बातें हो गईं बीच बजरिया।

श्रवण
तुमने सूना है सही काले अक्षर कागज़ पै,
गोरे गोरे जीवन का चित्र खींच जाते हैं ।
नेह के सम्बन्ध अनोखा स्नेह पैदा करते हैं, 
चाँदनी उगाते हैं, चकोर रीझ  जाते हैं ।
लिख दिया रख दिया जैसे दिया आरती का,
कागज़ के संग उड़ जाना सीख जाते हैं ।
बांहों में झुलाते कभी, कांधे पै उठाते कभी,
बड़ी बड़ी  आँखों वाले नैना रीझ जाते हैं ।

सुगन्ध
 
तुमने सुगंध मली चन्दन के गंध वाली,
उबटन मला कचनार काए संदल का ।
ऊषा का वरण मला, चन्दा का तरल मला,
सुकुमार अंगराग मला  गंगाजल का।
केसरी बदन ने जो नदिया का जल छुआ,
पल में ही हो गया गुलाबी रंग जल का ।
फूलों जैसी रसवाली  हुई है तुम्हारी देह,
पैंजनी जो छनकी  गुलाबी रंग छलका ।

पता 
53- बी, इन्‍द्रपुरी, भोपाल - 426 021 
मोबाईल : 94250 25430

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