इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

सोमवार, 31 अगस्त 2009

छत्तीसगढ़ में नवधा रामायण

  • पल्‍लव शुक्‍ल 
रामचरित मानस के रचयिता यद्यपि उत्तर में पैदा हुए थे किंतु उनका जीवन दशर्न वैष्णव तंत्र के माध्यम से छत्तीसगढ़ में पर्याप्‍त सम्मानित हुआ. पंद्रहवीं शताब्‍दी के आरंभ से ही छत्तीसगढ़ में शाI और शैव तंत्र के ऊपर वैष्णव तंत्र का वचर्स्व होने लगा था. क्‍योंकि शांति और शैवों के पंच मकार साधना एवं आतंक तथा रहस्य  रोमांच  से आम लोग व्यथित हो चुके थे. दक्षिण, पश्चिम और पूर्व से रामानुजाचार्य, निम्बाकाचार्य और बभुभाचार्य के शिष्यों एवं अनुनायियों में निश्चल हृदय  वाले भक्‍तों के सरलतम मार्ग का अवलम्बन किये हुए ऐसा मार्ग प्रशस्त किया कि यहां के लोगों को वह अत्यंत अनुकूल जान पड़ा. इसी भाव भूमि पर तुलसी के आदर्श राम - राज्य  का स्वरूप सामने आया जिसे इस अंचल ने सहज ही स्वीकार कर लिया. व्‍यक्तिगत तौर पर और सामाजिक अनुष्‍ठान के रूप में उनके ग्रंथों का अध्ययन, मनन एवं अनुष्‍ठान होने लगा. नवधा भी उसी अनुष्‍ठान का एक अंग है एवं उस पर अनेकानेक विद्वान अपनी बुद्धि के अनुसार टीकाएं करते हैं .
फादर कामिल बुल्के का कथन है कि विश्व में कहीं भी आम लोग महाकाव्य  को पढ़ने का साहस नहीं जुटा पाते. किन्तु रामचरित मानस ऐसा महाकाव्य  है जो धर्मशास्‍त्र के समान लगता है. उसकी पंक्तियां इतनी लोकप्रिय हो गयी है कि लोग मुहावरे और लोकोक्तियों की तरह बात - बात में उसका उल्‍लेख करते हैं. जीवन के हर क्षेत्र में उनकी पंक्तियां दिशानिदेर्श करती है. इससे एक परेशानी भी लगातार पैदा होती जा रही है . आम लोग उसे महाकाव्य  न मानकर वास्तविक इतिहास मानने लगे हैं और उसकी पुष्टि के लिए तरह - तरह की काल्पनिक कथाएँ गढ़ते रहते हैं. इससे अंध श्रद्धा और रूढ़ि को बढ़ावा मिलता है. नवधा का अर्थ होता है - नौ दिनों में पूर्ण होने वाली कथा. कुछ लोग नवधा भक्ति को भी इसके साथ जोड़कर देखते हैं. रामचरित मानस शब्‍द छत्तीसगढ़ अंचल में कदाचित अपनी लम्बाई के कारण लोकप्रिय नहीं हो सका, इसलिए लोग रामायण शब्‍द का ही उपयोग करते हैं, जो महर्षि बाल्मीकि के रामकथा पर आधारित महाकाव्य  का नाम है. रामचरित मानस की भूमिका में तुलसी ने कथा की वैज्ञानिकता को विविध भाँति पुष्‍ट करने का प्रयास किया है. राम शब्‍द राम के जन्म के पूर्व भी बहुत लोकप्रिय हो चुका था. मंत्र की संज्ञा पा चुका था. तुलसी लिखते है -
महामंत्र जेहि जपत महेषु, रवि महेश निज मानस राखा ।।
दशरथ के ज्‍येष्‍ट पुत्र को उसके रूप, गुण, लक्षण एवं ज्योतिष के आधार पर इस नाम से गुरू वशिष्‍ट जैसे ऋषि ने रखा.ऋषि का कथन है - काल की परिभाषा बहुत जटिल है. राम कई बार हो चुके हैं और कई बार भविष्य  में होंगे. उन्हें हरि कहकर उनको और उनकी कथा को अनंत बताया गया है -
हरि अनंत हरि कथा अनंता ।
तुलसी विशिष्‍ट के अनुयायी थे और अवतार वाद पर विश्वास करते थे. इसीलिए उन्होंने रमा के अवतार के कई कारण बतायें हैं. गीता से मिलती - जुलती उनकी घोषणा है कि -
जब - जब होई धरम की हानि,
बाढ़हि असुर अधम अभिमानी,
तब - तब धरि प्रभु मनुज शरीरा ।
मनुष्य  का शरीर धारण करना एक नई परिकल्पना थी, क्‍योंकि इसके पहले ब्रम्‍ह्रा को अलग और जीव को अलग माना जाता था. शंकराचार्य ने दोनों को एक ही ब्रह्रा के रूप में घोषित किया था जो बुद्धि के स्तर पर सत्य  साबित होने पर ही भाव के धरातल पर हृदय ग्राही नहीं लगता. तुलसी ने व्यक्ति के समग्र व्‍यक्तितव का ध्यान रखते हुए बुद्धि और हृदय  दोनों का सामंजस्य स्थापित किया. उनके राम का नमा लेकर जहां भव भय  मिटता है वहीं उनका सम्पूर्ण चरित्र आदर्श मनुष्य  के सारे अंगों को संतुष्‍ट भी करता है. इसीलिए रामचरितमानस को प्रकाण्‍ड पंडित से लेकर अक्षर ज्ञान प्राप्‍त करने तक समान रूचि से अध्ययन, चिंतन एवं मनन करते हैं. अंतिम व्‍यक्ति भी पढ़कर आनंदित होता है. नवधा रामायण की लोकप्रियता का यह भी कारण है.
छत्तीसगढ़ अंचल में नवधा रामायण के माध्यम से वादन, गायन, शिल्प तथा स्थापत्य  कला को भी बढ़ावा मिलता है. सैकड़ों गाँवों की गायन मण्‍डलियाँ विविध राम - रागनियों के साथ मानस की पंक्तियों को अन्य  भजनों से तालमेल करते हुए गाते हैं. तरह तरह के वाद्य यंत्र बजाते हैं. मंडप को बहुत बड़ी राशि खर्च करके अलंकृत करते हैं. बड़े - बड़े विद्वान व्याख्या के दौरान अपने सम्पूर्ण ज्ञान को प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं. इस तरह  साहित्य , संगीत, चित्र नृत्य एवं स्थापत्य  इन पंच ललित कलाओं का एक जगह सम्य क निवार्ह देखने में आता है. नवधा रामायण का प्रारंभ इस अंचल में बहुत पुराना नहीं है. इसके पूर्व निम्बार्क सम्प्रदाय का हरि कीतर्न छत्तीसगढ़ अंचल में लोकप्रिय हो चुका था. आज भी नाम सप्‍ताह जो बाद में चलकर राम - सप्‍ताह हो गया के रूप में छत्तीसगढ़ के गांव में सात दिनों के लिए आयोजित होता है. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गायन होता था किन्तु अब भगवान के विविध अवतारों के लीलाओं का भी इसमें समावेश होने लगा है. इसी अनुष्‍ठान के आधार पर राम भक्ति शाखा के भक्‍तों ने नवधा को आयोजित किया है. तुलसी का रामचरित मानस जो आज बाजार में उपलबध है, उसमें नवान्ह परायण का विभाजन विधिवत् किया गया है. ऐसा कहा जाता है कि अपने जीवन काल में ही तुलसी ने राम - लीलाओं का आयोजन कराना प्रारंभ कर दिया था. वे चाहते थे कि आम लोगों के सम्पूर्ण जीवन  में रामकथा घूल मिल जाय . इसीलिए उन्होंने साहित्य  की विभिन्‍न विधाओं में जैसे - महाकाव्य , खंडकाव्य , गीतिकाव्य , मुक्‍त आदि में रामकथा को अनुस्युत किया है. इसी तरह जन्म (शोहर रामलला नहछू ) विवाह (पावर्ती मंगल), मिलन और विछोह (कवितावली और दोहावली), ज्योतिष (रामसलाका प्रश्न), पद ( विनय  पत्रिका ) आदि प्रस्तुत किया है. विनय  पत्रिका के एक पद में उन्होंने लिखा -
तोहि मोहि नाते अनेक,मानिबे जो भावै ।
ज्यों - त्यों तुलसी कृपालु ,चरन सरन पावै ।
अथार्त आम आदमी और राम के बीच  किसी भी प्रकार से हो, सम्बन्ध बनना चाहिए. इस बात की पुष्टि उनके रामचरित मानस की पंक्तियों में भी कही गई है -
भव कुभाव अनख आलसहूं ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूं ।।
शाक्‍ितांत्रिकों ने छत्तीसगढ़ क्षेत्र को मनोजगत में जीने का अभ्‍यास करा दिया था. भौतिक संपदा आती - जाती रहती है. बहुत कुछ संग्रह करने के बाद भी कई बार भीतर का जगत खाली ही पड़ा रहता है. इसीलिए साक्षात भाव से जीवन और  जगत को देखने का अभ्‍यास विविध तांत्रिक उपायों से कराया गया था. वैष्णव तंत्र ने इसमें भक्ति का रस घोल दिया. इसीलिए तुलसी का मानस इस उवर्र भूमि में सहज ही फल - फूल सका. नवधा के माध्यम से रात - दिन निरंतर अ¨यास से एक सम्मोहक वातावरण की सृष्टि करता है . इसका प्रभाव न केवल पढ़े लिखे लोगों तक अपितु श्रवण के माध्य म से निरक्षर जनजीवन पर भी पढ़ता है. शाक्‍ितंत्र में मांदल और झांझ जैसे सम्मोहक वाद्य यंत्रों का उपयोग कर वातावरण सृष्टि के महत्व को समझा गया था. कदाचि त इसके प्रभाव को स्वीकार किया गया. इस लघु शोध प्रबंध में छत्तीसगढ़ के जनजीवन पर इसी प्रभाव का अध्ययन करने का प्रयास किया जायेगा. जिसका साहित्‍ियक मूल्य  भी किसी तरह कम नहीं है.
  • बिलासपुर (छग)

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