- हरप्रसाद ' निडर ' -
अंतर्मन की साँसे रिमझिम, जग में यूँ बगराया।
तब छंदो ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
शब्द - शब्द है अर्थ घनेरे,
यादें बचपन की जिद्दी।
फुदक रही है मन अँगना,
डाल - डाल प्यारी पिद्दी।
जब - जब देखा उस अल्हड़ को, उसने खूब रुलाया।
तब छंदों ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
आस लगी है वह जीवन हो,
यह तो हो गया झमेला।
लौट न पाता पर बेचारा,
है लगता पड़ा अकेला।
फिर भी वह मौसम अलबेला, अपना कर्ज चुकाया।
तब छंदों ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
चंचल मन है बांध पखेरु,
यहाँ - कहाँ वो रुकने वाला।
उड़ चला विश्राम डगर पर,
देख इधर का गड़बड़ झाला।
रात कटी, पल गुजरा बरबस, सपन सलोने भुलाया।
तब छंदों ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
अंतर्मन की साँसे रिमझिम, जग में यूँ बगराया।
तब छंदो ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
शब्द - शब्द है अर्थ घनेरे,
यादें बचपन की जिद्दी।
फुदक रही है मन अँगना,
डाल - डाल प्यारी पिद्दी।
जब - जब देखा उस अल्हड़ को, उसने खूब रुलाया।
तब छंदों ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
आस लगी है वह जीवन हो,
यह तो हो गया झमेला।
लौट न पाता पर बेचारा,
है लगता पड़ा अकेला।
फिर भी वह मौसम अलबेला, अपना कर्ज चुकाया।
तब छंदों ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
चंचल मन है बांध पखेरु,
यहाँ - कहाँ वो रुकने वाला।
उड़ चला विश्राम डगर पर,
देख इधर का गड़बड़ झाला।
रात कटी, पल गुजरा बरबस, सपन सलोने भुलाया।
तब छंदों ने रस निचोड़कर, मुझको गीत सुनाया।
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