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शनिवार, 29 जून 2013

पानी

-  डॉ. पीसीलाल यादव   -

नदिया - तरिया, कुंवा - बवली, चाहे होवय बादर।
पानी हवय त मान हवय, मनखे होय के सागर।
पानी राहय ले पानी हे, पानी बिन करलई।
पानी हे त परान घलो, रूखराई के सुघरई।
पानी बचा के राख बने, पानी ले हे जिन्दगानी।
पानी बिन नई ते तैं हर, होबे पानी - पानी।
पानी हवय त मनखेपन, अउ मनखे के मरजाद।
पानी हवय तभे तो भाई, ये दुनिया हे आबाद।
पानी के मोल समझ नई, ते होबे पानी- पानी।
करे लपरही जिनगी म त, उतर जाही सरी पानी।
कहूँ नूरछूर कहूँ मीठ हे, पानी आनी - बानी।
पानी बचा परानी तभे, तोर होही बड़ाई।
नई तो लगथे सिरतोन अब, पानी बर होही लड़ाई।
बूँद - बूँद पानी ह बंधुवा, जिनगी बर अमरीत बूँद।
अवइया पीढ़ी बर सोच तैं, आँखी ल झन मूँद।
चंदा म बस जा तैं चाहे, छू ले भले अगास।
पानी बिना गुजर कहाँ हे ? पानी म बूताही पियास।
पानी ले प्रकृति उज्जर अउ, प्रकृति ले हे पानी।
पानी के राहत ले पानी हे, नई ते दुनिया हर पानी।
मनखे अस मरजाद में रह, झन कर तैं मनमानी।
पानी के बानी समझ पगला, पानी ले चढ़थे पानी।
बूँद - बूँद पानी के मोल, समझ झन कर नादानी।
पानी म जहर झन घोर, पानी ल रहन दे पानी।
जादा अतलंग करे अबूझ, मुड़ ऊपर होही पानी।
तब कोन तोर गोहार सुनही ? पानी - पानी - पानी।
घर - खार, नरवा - नंदिया ले, सागर समाथे पानी।
ठऊर - ठऊर रोक पानी, बन धरती बर बरदानी।
हरियर जंगल, हरियर खेत, पानी ले सबे खेल।
पानी हे त जग परभूती, मनखे - मनखे के मेल।
पानी बचा के जिनगी बचा, कर पानी के मान।
नई ते पानी - पानी काहत, निकल जही तोर परान।
गाँव सहर, घरो - घर होवय, जल संरक्षण के जोखा।
जल हे त कल हे, नई ते, जिनगी अलहन धोखा।
ठऊर- ठऊर बंधना बांध, जतन कर ले पानी के।
तभेच साख रही अड़हा, जीव - जगत जिनगानी के।
प्रकृति के अनमोल देन, पानी बिसा पियत हस।
पईसा हे त पानी बजारू, को जिनगी जियत हस?
धन जमा करथस तईसे, पानी घलो जमा कर ले।
पानी जमा करके जग में, दुनिया के भला कर ले।
पानी म मोती हर मिलथे, पानी म मिलथे मान।
पानी बिन बिरथा मंदिर, बिरथा हवय भगवान।
पहार- परबत, जंगल- हरियर, पानी ले  हरियर परान।
हाँसत- खेलत दुनिया सुग्घर, पानी बिना समसान।
पानी बचा के धरम कमा, पुन के बन तैं भागी।
पानी बिना कईसे बुझाही, जरत पेट के आगी।
सजला जल हे पानी तब, लगे पानी ठट्ठा हाँसी।
पानी म परदूसन होही तब, बनही गर के फाँसी।
कोनो भला बतावय के, पानी के रंग हेे कईसन?
अरे जेला घोर दे पानी में, हो जथे पानी वइसन।
पानी के परपात पहिचान, पानी संग कर मितानी।
पानी संग घूर के तहूँ संगी, हो जा पानी- पानी।
पानी ले सिख तैं मनखे, मिलना अउ मिलाना।
पानी गंवागे जिनगी गंवागे, त जिनगी भर पछताना।
माढ़े पानी बोहावत पानी, पानी ह तो पानी।
पारा- पारा पानी बर देख, होवत गिध मसानी।
पानी ले हे बान मनुख के, पानी च ले हे बानी।
पानी उरकत सांस उरके, का पानी गाय दुहानी?
परन कर ले पानी बर तैं, पानी ल बचा संगवारी।
जग- जिनगी ह महमहाय, हांसय फूल- फूलवारी।
पानी बचा पानी बर अउ, पानी के खाले किरिया।
पानी- पानी हे जिनगानी, पानी के बन जा झिरिया।
पानी बिना धरती ह तिपे, तात हे पवन झकोरा।
पुरवाही के बदला म आथे, बिनास करइया बड़ोरा।
सुन सिरजन के गीत, गूँजे, पानी के लाहरा म।
ममता के मोती मिलथे, जिनगी के दाहरा म।
पानी के परछो मत ले, पानी के गा ले गीत।
पानी संग पिरित कर ले, पानी ल बना ले मीत।
पुरखा कइसे बचाय पानी, पुरखा के कुछ सीख।
नई बचाबे पानी त सोच, नई मिलही घलो भीख।
पाट- पाट के  हमन तरिया, बना डरेन घर- कुरिया।
कहां नंदा गे कोजनी छै आगर छै कोरी तरिया।
डबरी घोल नई दिखय अब, नई दिखे कहूँ डबरा।
बजबजावत नाली भरे हे, का होगेस मिठलबरा?
पुरखा कोड़ावय कुंआ बावली, अउ कोड़ावय तरिया।
चारों मुड़ा पानी च पानी, गाँव- खेत- खार- परिया।
कुँआ ह कचरा दान लहुट गे, अइसन हमर करम हे।
पुरखा के नाव बुड़ोवत हम, का इही हमर धरम हे?
घर के पानी घर में छेंकव, गाँव के पानी ल गाँव।
पानी पाही धरती ह तभे, मिलही ममता के छाँव।
सावन भादो सुक्खा परथे, जेठ कस तिपे घाम।
पानी बिन हा- हाकार होगे, लगथे पूर्ण बिराम।
बादर ले बरसथे पानी त,धर के तन हरियाथे।
रूखराई अउ चिरई- चिरगुन, जीव सरी मुस्काथे।
जीयत पानी मरत म पानी, पानी जिनगी के नाँव।
पानी ले परान हे सबो के, का सहर का गाँव?
पानी रही त मरे म बेटा, नाती ह देही पानी।
नई ते परलोक म घलो नई, मिलही तोला पानी।
धरती मन भर पानी पीही, तभे तो दीही पानी।
धरती रही पियासे तब तो, कहाँ के पाबे पानी?
ठाँव- ठाँव गिरमिट कस बोर, धरती ह बेधावथे।
पीरा के मारे धरती दाई, कलप- कलप गोहरावथे।
पानी बचा ले भविष्य बर, तैं धरती के संतान।
नई ते पानी बिना तोर, होही जी मरे बिहान।
पानी सकेल बचा ले बने, बाढ़ही तोरेच पुन।
ुपुरखा के करम करनी ल, तरिया काहथे सुन।
सरोवर ह धरोहर आय, कर पुरखा के मान।
तरिया कुंआ बउली के अब, झन होवय हिनमान।
पानी बिरथा बोहाय झन, पानी ल बने सकेल।
पानी आवय अमरित बूंद, पानी संग झन खेल।
गंगा भर ह गंगा नोहे, सबो जल आवय गंगा।
मान कर गंगा के मनुख, तन - मन रही तोर चंगा।
झिमिर - झिमिर पानी गिरय, बरसय अमरित धार।
नरवा - ढोड़गी ल बाँध के, पानी ल सकेल सम्हार।
उदीम करके बरसा के पानी, भुँइया भीतर ओइला।
नई ते कंचन काया ह तोर, हो जही संगी कोइला।
दिनों - दिन काबर कइसे के, पानी होत हे कमती ?
बाढ़त तोर सुख - सुभित्ता, तिसना होवत लमती।
भटगे कुँआ - भटगे बउली, भटगे तरिया - पंइठू।
अइसने तोरो जिनगी भटही, गरबी मनुख अइंठू।
कुंवा म काड़ी कचरा डारे, तोर इही का चिन्हारी ?
पुरखा के पुन म डामर पोते, रऊँदे फूल - फुलवारी।
रुख लगा के भूख भगा ले, रोक बरसा के पानी।
पानी बिना कइसन जिनगी, कइसे होही किसानी ?
सोंच - समझ के पानी बउर, रोज बचा तैं पानी।
जिनगी के नुकसानी आय, पानी के नुकसानी।
पानी बचा के पानी पलो, जिनगी राहय हरियर।
तभे आंखी में सपना के, फुलही फुलवा सुघ्घर।
पानी ये परान मान येला, बिरथा झन तैं बोहा।
पानी ये तुलसी के चौपाई, कबीरदास के दोहा।
पानी करे बरबाद त जान, दुख भोगे ल परही।
नहाय बर पानी कहां पाबे ? तेल कस चुपरे लगही।
नाहना खोरना, कपड़ा धोना, जेवन बर चाही पानी।
बिन पानी काम चलय न, पीये बर चाही पानी।
छानी - छप्पर छत के पानी, अंगना म तैं रोक।
गड्ढा खन के तोप ढांक, भुईया म पानी झोंक।
धरती दाई पानी ले जब, पेट भरहा अघाही।
तभे जग जिनगी के घलो, पियास बने बुताही।
बचा - बचा के निसदिन तैं, पानी ल बने बउर।
तभे से सब ल मिलही सुग्घर पानी ठउर - ठउर।
पानी घलो देवता धामी, पानी पोथी पुरान।
पानी बिन न मुक्ति मिले, न पानी बिन भगवान।
पानी राहय ले जिनगानी, इही पानी के परमान।
पानी उतरगे मान उतरगे, जिनगी के अवसान।
पानी उलच जिनगी उलचे, कइसन तोर करतूती ?
पानी बचा के राख रइही, मनखे तोर परभूति।
मरकी मरका, करसी - करसा, हउंला लोटा गिलास।
तोर आगू तोर करनी म, हवय निरजला उपास।
पानी के पाँव म बाँध ले, मया पिरित के डोरी।
बाँध बंधान नंदिया बने, गाँव खाल्हे के झोरी।
चेतकर मइलाय कभू झन, पानी अउ पुरवाही।
इंखरे भरोसा जग - जिनगी, इही बुताही हाही।
पानी - पानी रटत रहिबे नई, मिलही तोला पानी।
जे दिन सिराही पानी तोर, ते दिन खतम कहानी।
नरवा - ढोड़गा, नंदिया - तरिया, कुंवा मरे पियास।
बिन बरसे अउ बिन परसे, नाहकय हवय चम्मास।
पानी बिना न पूजा - पाठ, न पानी बिना अस्नान।
पानी रहत ले परान कइथे, गीता बाइबिल कुरान।
भविस्य ल सोच - समझ के बचा के राख पानी।
अवइया नवा पीढ़ी बर तैं लिख ले नवा कहानी।
घर बाहिर सबे ठउर कर, वाटरहार्वेस्टिंग के जोखा।
पानी बचा के लइका ल दे, भविस्य के भरोसा।
  • गण्डई - पण्डरिया, जिला - राजनांदगांव छ.ग.

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